बिहार, झारखंड समेत दिल्ली में भी बढ़ रहा है छठ पूजा का चलन
मिट्टी के दीयों की झिलमिलाहट...केले के पेड़ से की गई साज-सज्जा। रंग-बिरंगी रोशनी में घाटों की अद्भुत छटा देखते ही बन रही है। दिल्ली में भी छट पूजा का चलन देखने को मिल रहा है।
नई दिल्ली [संजीव कुमार मिश्र]। मिट्टी के दीयों की झिलमिलाहट...केले के पेड़ से की गई साज-सज्जा। रंग-बिरंगी रोशनी में घाटों की अद्भुत छटा देखते ही बन रही है। लाउड स्पीकर पर बजते छठ के गीत मन में ऊर्जा का संचार कर रहे हैं। घर की महिलाएं ठेकुआ बनाने और सूप दौरा सजाने में व्यस्त हैं तो पुरुष मौसमी फल और अर्घ्य देने के लिए सामान की खरीदारी के लिए दौड़ भाग कर रहे हैं। उत्साह के साथ बेदियों के इर्दगिर्द महिलाओं और बच्चों के समूह हैं। दिल्ली में छठ की रौनक देख ऐसा लगता है मानो यह बिहार के रंग में रंग गई हो। हालांकि चंद सालों पहले तक दिल्ली में छठ को लेकर ऐसी छठा नहीं थी।
विगत 20 सालों में बढ़ा चलन
इतिहासकार आरवी स्मिथ कहते हैं कि दिल्ली में उत्तर प्रदेश, बिहार समेत विभिन्न राज्यों के लोग रहते हैं। हो सकता है पहले भी छठ मनाया जाता रहा हो, लेकिन विगत 20 साल से यह ज्यादा चलन में आया है। पुरानी दिल्ली के सीताराम बाजार में छठ मना रही कामिनी देवी कहती हैं कि वह सन् 1983 से यहां छठ मना रही हैं। तब पुरानी दिल्ली के लोग छठ से बिल्कुल अंजान थे। बाद के वर्षों में हमने मिंटो रोड सी ब्लॉक पर छठ मनाना शुरू किया। उस समय हम अकेले ही थे। अब तो 250 से ज्यादा परिवार मनाते हैं।
बिहार से सामग्री लाकर मनाते थे छठ
पुरानी सीमापुरी के कुछ लोगों ने मिलकर 1975 में यमुना बाजार स्थित यमुना घाट पर छठ पूजा की शुरुआत की। सीमापुरी छठ पर्व आयोजन समिति के अध्यक्ष विद्यानंद ठाकुर कहते हैं कि 1970 के आसपास 10 से 15 परिवार बिहार से आकर सीमापुरी में बसे। सीमापुरी में कोई ऐसी जगह नहीं थी, जहां छठ पूजा की जा सके। सीमापुरी से 214 और 216 नंबर डीटीसी बस यमुना बाजार होते हुए नई दिल्ली जाती थी, छठ मनाने वाले सभी लोग इन बसों से यमुना बाजार पहुंचते और वहां से घाट तक पैदल जाते थे। 1990 तक इसी तरह लोग छठ मनाते रहे। उस दौरान छठ सामग्री एकत्रित करना भी चुनौती थी। ट्रेन से बिहार से सूप, मिट्टी के बर्तन व अन्य पूजन सामग्री मंगवाई जाती थी।
ठेकुए का प्रसाद होता है खास
आस्था के महापर्व छठ पर ठेकुआ सबसे प्रमुख प्रसाद है। खरना के दिन महिलाएं एकांत में बैठकर पूरी शुद्धता और पवित्रता के साथ अघ्र्य पर चढ़ाने के लिए ठेकुआ बनाती हैं। गेहूं के आटे में गुड़ और दूध मिलाकर सांचे पर ठेकुए का आकार दिया जाता है फिर उसे देसी घी में पकाया जाता है। अघ्र्य पर चढ़ाने के लिए ठेकुआ वैसे तो महिलाएं अपने घरों में ही पकाती हैं, लेकिन दिलशाद गार्डन मैत्रयी छठ पूजा समिति पिछले 20 सालों से डियर पार्क में धूमधाम से छठ मनाती आ रही है।
इस दौरान समूह से जुड़ी महिलाएं सामूहिक रूप से ठेकुआ का प्रसाद पकाती हैं, जिसे पारन के दिन सूर्य को अघ्र्य देने के बाद लोगों में वितरित किया जाता है। यह प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर पकाया जाता है। छठ पूजने वाले सभी लोगों के घरों में ठेकुआ का प्रसाद बनता है। महिलाएं एकांत जगह पर बैठकर प्रसाद पकाती हैं। इस दौरान वह पूरी तरह मौन रहती हैं ताकि प्रसाद अशुद्ध न हो। परवैतिन के साथ ठेकुआ पकाने वाले स्थान पर केवल परिवार का वही सदस्य रहता है, जो प्रसाद बनाने में उसकी मदद करे।
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