CAIT के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने कहा- आंदोलन नहीं, बल्कि किसानों के साथ है दिल्ली के व्यापारी
लोकतंत्र में सभी वर्गों के लोगों को अपनी बात रखने का पूरा अधिकार हमारे संविधान ने दे रखा हैं। सभी को लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बात रखनी चाहिए लेकिन ऐसे में चक्का जाम करना या फिर ऐसा कोई भी कदम उठाना जिससे प्रशासनिक कार्य प्रभावित हो वह जायज नहीं हैं।
राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर गत 2 सप्ताह से किसानों का आंदोलन चल रहा है। इसकी वजह लोगों को यातायात की समस्या के साथ कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। हिमाचल, पंजाब और हरियाणा से आने वाली जरूरी वस्तुओं की आपूर्ति तो प्रभावित हो ही रही है वहीं यहां से दूसरे राज्यों में जाने वाला सामान भी समय से नहीं पहुंच पा रहा है। इसकी वजह से व्यापार भी प्रभावित हो रहा है। व्यापारियों की इन समस्याओं को लेकर कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल से निहाल सिंह ने विस्तृत बातचीत की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश...
किसान आंदोलन और अर्थव्यवस्था को आप किस तरह देखते हैं नए कृषि कानूनों से अर्थव्यवस्था को क्या लाभ होगा?
किसान और अर्थव्यवस्था एक दूसरे के पर्याय है। भारत एक कृषि प्रधान देश हैं और यह हमारे लिए बहुत महत्व रखता है। रोजगार का सबसे बड़ा क्षेत्र भी कृषि है। जहां तक कि किसान आंदोलन का सवाल है तो उसमें मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि अगर उनकी मांगे जायज हैं तो उन मांगों को माना जाना चाहिए लेकिन, अभी तक इसका कोई हल दिखाई नहीं पड़ रहा है। इसकी वजह से दिल्ली के व्यापार को भी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए किसान और सरकार को चाहिए कि वह आपस में मिलकर एक दूसरे को अपनी बातें समझानी चाहिए और इसका समाधान करना चाहिए।
किसान आंदोलन की वजह से दिल्ली की सीमाएं बंद हो गई हैं, वाहनों की आवाजाही बहुत ज्यादा प्रभावित हो रही है इसका दिल्ली के बाजारों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है ?
देखिए जैसा कि मैंने आपसे पहले ही कहा कि आंदोलन की वजह से दिल्ली का व्यापार प्रभावित हो रहा है। कैट के साथ इंडियन ट्रांसपोर्ट वेलफेयर एसोसिएशन मिलकर पूरे देश में इस आंदोलन की वजह से किसी ट्रक संचालक को परेशानी न हो और किसी तरह का नुकसान न पहुंचे इसके लिए मदद कर रहा है।
बार-बार चक्का जाम करने की बातें आंदोलन के लोगों द्वारा की जा रही है। आप इसे किस तरह से देखते हैं ?
मेरा यह मानना है कि लोकतंत्र में सभी वर्गों के लोगों को अपनी बात रखने का पूरा अधिकार हमारे संविधान ने दे रखा हैं। सभी को लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बात रखनी चाहिए लेकिन, ऐसे में चक्का जाम करना या फिर ऐसा कोई भी कदम उठाना जिससे प्रशासनिक कार्य प्रभावित हो वह जायज नहीं हैं। किसानों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके आंदोलन से देश में किसी भी व्यक्ति को कोई तकलीफ न पहुंचे। मैं यह भी मानता हूं कि किसान आंदोलन का नेतृत्व अगर किसान ही करें तो ज्यादा बेहतर होगा।
किसान आंदोलन में भारत बंद का आह्वान किया गया था। व्यापारी इसमें शामिल नहीं हुए और दिल्ली के बाजार खुले रहे। तो क्या यह माना जाए कि व्यापारी किसानों के साथ नहीं है?
जिस दिन भारत बंद होने का आह्वान किया था हमने उस दिन भी स्पष्ट किया था और आज मैं फिर आपके माध्यम से स्पष्ट कर रहा हूं कि जब किसानों और सरकार के बीच बातचीत चल रही हैं तो ऐसे बीच किसी भी तरह का बंद करना ठीक नहीं है। जहां तक व्यापारियों का किसानों के साथ का सवाल हैं तो हम निश्चित रूप से इस बात से सहमत है किसानों को कोई समस्या हैं तो सरकार इसकी ¨चता करें और उनके जो भी विषय हैं उन पर चर्चा करके उन विषयों को समाप्त करना चाहिए। व्यापारी वर्ग किसान आंदोलन के साथ नहीं है लेकिन किसानों के साथ जरूर खड़ा है।
नए कृषि कानूनों से व्यापार को किस तरह की मदद मिलेगी। दावा किया जा रहा है कि नए उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा ?
आजादी के बाद से हमने देखा हैं कि किसान अपना कृषि उत्पाद मंडी में ही बेचता हुआ आया है। केंद्र सरकार के मंत्रियों ने भी यह कहा है कि कृषि कानूनों से किसानों को मंडी के अलावा निजी क्षेत्र में भी अपने कृषि उत्पाद बेचने की सुविधा मिलेगी। यह नया बदलाव विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर देगा। चाहे वह कोल्ड स्टोरेज हो या फिर ट्रांसपोर्ट हो। देश में फिलहाल निजी क्षेत्र में कृषि व्यापार का ढांचा नहीं हैं। वह ढांचा विकसित होगा तो रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। इसमें सरकार के ऊपर एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकल फॉर वोकल को लागू किया जाना सुनिश्चित किया जाए। ऐसा न हो कि विदेशी और बढ़ी कंपनियां इसका फायदा उठा ले। इसलिए नए स्टार्टअप की भागीदारी इसमें सुनिश्चित की जानी चाहिए।
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