केजरीवाल से दूर हुए खेतान, facebook पर लिखा- भारत प्रगति के रास्ते पर है, निभाऊंगा जिम्मेदारी
आशुतोष के बाद अब आशीष खेतान ने भी पार्टी को अलविदा कह दिया है। खेतान की आप के प्रमुख नेताओं में गिनती होती थी।
नई दिल्ली [राज्य ब्यूरो]। दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी (आप) के मुखिया अरविंद केजरीवाल को सप्ताह भर के भीतर एक और जोरदार झटका लगा है। आशुतोष के बाद अब आशीष खेतान ने भी पार्टी को अलविदा कह दिया है। खेतान की 'आप' के प्रमुख नेताओं में गिनती होती थी। निजी कारणों का हवाला देते हुए उन्होंने ईमेल से 15 अगस्त को पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल को इस्तीफा भेज दिया था। हालांकि, आशुतोष की तरह खेतान का इस्तीफा भी केजरीवाल ने मंजूर नहीं किया है और वह उन्हें भी मनाने में जुटे हैं।
सक्रिय राजनीति का हिस्सा नहीं
खेतान ने ट्वीट कर स्वीकार किया है कि वह अब सक्रिय राजनीति का हिस्सा नहीं हैं। वह वकालत पर ध्यान देना चाहते हैं। खोजी पत्रकार के रूप में पहचान बनाने वाले खेतान ने 2013 में 'आप' से नाता जोड़ा था। वह केजरीवाल के करीबी साथियों में माने जाते रहे हैं, इसीलिए उन्हें दिल्ली सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना दिल्ली डायलॉग एंड डेवलपमेंट कमीशन का उपाध्यक्ष भी बनाया गया था।
पार्टी में उपेक्षित महसूस कर रहे थे
सूत्रों के मुताबिक खेतान पिछले कुछ दिनों से पार्टी में उपेक्षित महसूस कर रहे थे। ऐसा कहा जा रहा है कि वह फिर से नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहते थे, जबकि केजरीवाल यहां से किसी पंजाबी प्रत्याशी को उम्मीदवार बनाना चाह रहे हैं। इसी लोकसभा क्षेत्र से खेतान ने 2014 में भी चुनाव लड़ा था, लेकिन भाजपा की मीनाक्षी लेखी से 1.6 लाख मतों से हार गए थे।
दिल्ली डायलॉग कमीशन के उपाध्यक्ष पद से दिया था इस्तीफा
उल्लेखनीय है कि उपराज्यपाल अनिल बैजल ने इसी वर्ष अप्रैल में दिल्ली सरकार द्वारा नियुक्त नौ सलाहकारों की नियुक्ति रद कर दी थी। इसके बाद खेतान ने दिल्ली डायलॉग कमीशन के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था। उस समय भी वकालत करने और बार काउंसिल में रजिस्ट्रेशन कराए जाने को ही इस्तीफे का कारण बताया गया था।
फेसबुक पर आशीष खेतान ने ये लिखा
मैं एक पत्रकार हूं और हमेशा खुद को एक नागरिक के तौर पर व्यस्त रखकर अच्छा महसूस करता हूं। इसी उद्देश्य के साथ समाज में एक सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए मैं पहले राजनीति में आया और फिर दिल्ली सरकार का हिस्सा बना। गत दो वर्षो से मैं लगातार इस संशय में था और खुद से सवाल कर रहा था कि मैं निर्वाचित राजनीति में आगे बने रहना चाहता हूं या नहीं। मैंने अपने करीबी दोस्तों व परिजनों से लगातार इस संबंध में चर्चा करने के बाद इस वर्ष की शुरुआत में तय किया कि मैं अब सक्रिय राजनीति में नहीं रहूंगा। हालांकि, पार्टी व सरकार के काफी समय से एक के बाद एक कई गंभीर मुद्दों पर घिरे होने के कारण मैं लंबे समय से अपने फैसले को औपचारिक रूप से घोषित करने के लिए मौके का इंतजार कर रहा था। मैंने अपने फैसले के संबंध में पार्टी नेतृत्व को पहले भी बता दिया था। यही वजह है कि मैंने अपनी वकालत दोबारा से नियमित शुरू करने के लिए अप्रैल में ही दिल्ली डायलॉग एंड डेवलपमेंट कमीशन छोड़ दिया था। मैंने यह निर्णय आम जन के हित में लिया है और इसे आगे भी जारी रखूंगा। मैं वकालत करने के साथ ही अपने लेखन में वापसी करूंगा। जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में दिल्ली सरकार को कई अधिकार दिए हैं और इससे पार्टी की ताकत बढ़ेगी। पार्टी व निर्वाचित राजनीति से अलग होने का यह मेरा व्यक्तिगत निर्णय है और इसे किसी और दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। मुझे पार्टी व कार्यकताओं से सिर्फ प्यार और सम्मान मिला है और मैं इसके लिए सभी का शुक्रगुजार हूं। जैसा कि अफवाह है कि मेरा यह निर्णय किसी सीट के लिए है तो मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि ऐसा कुछ नहीं है। पार्टी ने मुझे आगामी लोकसभा चुनाव में लड़ने के लिए कहा था, लेकिन मैंने इससे इन्कार किया है। अगला चुनाव लड़ना मुझे फिर से राजनीति की दुनिया में लेकर जाएगा और मैं इस समय ऐसा नहीं चाहता। मैं अपने सभी पूर्व पार्टी साथियों को उनके भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता हूं। भारत प्रगति के रास्ते पर है और मैं अपनी तरह से इसमें अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करता रहूंगा।