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कांग्रेस को SC ने दिया बड़ा झटका, 10 साल बाद मानेसर जमीन घोटाले में घिरी कांग्रेस

मामला गुरुग्राम जिले में पड़ने वाली मानेसर, लखनौला और नौरांगपुर की 688 एकड़ जमीन के अधिग्रहण का है।

By JP YadavEdited By: Published: Tue, 13 Mar 2018 08:27 AM (IST)Updated: Tue, 13 Mar 2018 08:55 AM (IST)
कांग्रेस को SC ने दिया बड़ा झटका, 10 साल बाद मानेसर जमीन घोटाले में घिरी कांग्रेस
कांग्रेस को SC ने दिया बड़ा झटका, 10 साल बाद मानेसर जमीन घोटाले में घिरी कांग्रेस

नई दिल्ली (जेएनएन)। अधिग्रहण की आड़ में बिल्डरों को लाभ पहुंचाने को धोखाधड़ी और शक्तियों का बेजा इस्तेमाल करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मानेसर भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया वापस लेने का हरियाणा सरकार का 24 अगस्त, 2007 और 29 जनवरी 2010 का आदेश रद कर दिया है।

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सुप्रीम कोर्ट ने भूस्वामी किसानों को बड़ी राहत देते हुए कहा है कि जिन लोगों ने अधिग्रहण के दबाव में अपनी जमीनें बिल्डरों या निजी व्यक्तियों को बेची हैं, उन मामलों में जमीन का अधिग्रहण पूरा और अवार्ड घोषित माना जाएगा।

जिन लोगों ने अपनी जमीनें किसी को स्थानांतरित नहीं की थीं, उनकी जमीनें उनके पास बनी रहेंगी, उन पर ये आदेश लागू नहीं होगा। कोर्ट ने बिल्डरों की परियोजनाओं में फ्लैट और भूखंड बुक कराने वालों का भी ख्याल रखा है, वे लोग अपने फ्लैट या पैसा वापस ले सकते हैं।

इस मामले में सीबीआइ जांच जारी रखने का आदेश देते हुए अदालत ने राज्य और केंद्र सरकार से कहा है कि अधिग्रहण की आड़ में पैसा बनाने वाले बिचौलियों की जांच कर उनसे वसूली की जाए। इस जमीन पर बिल्डरों की कई रिहायशी परियोजनाएं लंबित हैं।

मामला गुरुग्राम जिले में पड़ने वाली मानेसर, लखनौला और नौरांगपुर की 688 एकड़ जमीन के अधिग्रहण का है। हरियाणा सरकार ने 27 अगस्त, 2004 को गुड़गांव में चौधरी देवीलाल इंडस्टि्रयल टाउनशिप बसाने के लिए 912 एकड़ जमीन के अधिग्रहण की अधिसूचना जारी की थी। बाद में इसमें से 224 एकड़ जमीन छोड़ दी गई और बाकी रह गई 688 एकड़ भूमि।

किसानों के मुताबिक, अधिसूचना निकलने के बाद बिल्डरों के बिचौलिए अधिग्रहण में कम पैसे पर जमीन जाने का भय दिखाकर किसानों को उन्हें जमीन बेचने के लिए तैयार करने लगे। किसानों ने अधिग्रहण के दबाव में 25 लाख से 80 लाख प्रति एकड़ की दर से बिल्डरों को जमीनें बेंच दीं।

हरियाणा सरकार ने अवार्ड घोषित होने की तारीख 26 अगस्त, 2007 से दो दिन पहले 24 अगस्त, 2007 को जमीन अधिग्रहण प्रक्रिया वापस लेने की घोषणा कर दी। राज्य सरकार ने कहा कि उसने जमीन अधिग्रहीत नहीं करने का फैसला लिया है।

इस बीच ज्यादातर जमीन बिल्डरों को बिक चुकी थी। राज्य सरकार ने बिल्डरों को उनकी परियोजनाओं के लिए लाइसेंस भी दे दिए। बिल्डरों की परियोजनाओं में लोगों ने अपने फ्लैट और भूखंड भी बुक करा दिए। अवार्ड से ठीक दो दिन पहले अधिग्रहण प्रक्रिया वापस लेने पर किसानों ने याचिका दाखिल की।

वकील रणवीर सिंह यादव की दलील थी कि सरकार ने बिल्डरों के साथ मिलकर उनसे धोखाधड़ी की है। हाई कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद किसान सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। किसानों की इसी अपील पर जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यूयू ललित ने ये फैसला सुनाया है।

बताते चलें कि इस मामले में कई मोड़ आए। वर्तमान मनोहर लाल खट्टर सरकार ने बिल्डरों के साथ अधिकारियों की मिलीभगत की जांच सीबीआइ को सौंप दी थी जो अभी जारी है। जांच के फेर में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी फंसे हैं।

इसके अलावा मानेसर की इसी से लगी हुई दूसरी जमीन गुरुग्राम मानेसर अर्बन काम्प्लेक्स की जांच के लिए हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एसएन ढींगरा की अध्यक्षता में एक जांच आयोग गठित किया है।

इसकी जांच को पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने हाई कोर्ट में चुनौती दे रखी है। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट दो महीने में निपटारा करने का आदेश दिया है।


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