घातक साबित हो सकती है लापरवाही, 'बीपी, मधुमेह को नियंत्रित कर करें दिल का बचाव'
दिल की बीमारियों से जुड़े जोखिम भरे कारकों को नजर अंदाज करना घातक साबित हो सकता है। इसलिए बीपी (ब्लड प्रेशर), मधुमेह हो तो उसे नियंत्रित रखें और नियमित दवा का इस्तेमाल करें।
नई दिल्ली (राज्य ब्यूरो)। दिल की बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं, युवा भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। कम उम्र के लोग कार्डियक अरेस्ट (अचानक धड़कन रूक जाना) की बीमारी से पीड़ित हो रहे हैं। इसके मद्देनजर डॉक्टर कहते हैं कि दिल की बीमारियों से जुड़े जोखिम भरे कारकों को नजर अंदाज करना घातक साबित हो सकता है। इसलिए बीपी (ब्लड प्रेशर), मधुमेह हो तो उसे नियंत्रित रखें और नियमित दवा का इस्तेमाल करें।
दो तिहाई लोगों को बीमारी का पता ही नहीं होता है
डॉक्टर कहते हैं कि ब्लड प्रेशर हृदय की बीमारी का एक बड़ा कारण है। दिक्कत यह है कि दो तिहाई लोगों को यह मालूम ही नहीं होता कि उन्हें यह बीमारी भी है। सिर्फ एक तिहाई लोगों को ही बीमारी के बारे में पता होता है। इसमें से 15-20 फीसद लोग ही नियमित दवा लेते हैं। इस तरह ब्लड प्रेशर की बीमारी से पीड़ित ज्यादातर लोग इलाज नहीं करा पाते, जो बाद में हृदय की गंभीर बीमारी या हार्ट अटैक का कारण बनता है। मधुमेह के कारण भी हृदय की बीमारियां होती हैं।
ब्लड प्रेशर व शुगर नियंत्रित रखना जरूरी
एम्स के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. अंबुज रॉय ने कहा कि दिल की बीमारी से बचाव के लिए ब्लड प्रेशर व शुगर नियंत्रित रखना जरूरी है। जिन्हें ब्लड प्रेशर व मधुमेह की बीमारी हो, उन्हें नियमित दवा लेनी चाहिए। इससे गंभीर बीमारियों की रोकथाम की जा सकती है।
आशा वर्करों को किया जाएगा प्रशिक्षित
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने ब्लड प्रेशर की स्क्रीनिंग के लिए कार्यक्रम शुरू किया है। इसके तहत आशा वर्करों को प्रशिक्षित किया जाएगा। वे 30 से अधिक उम्र के लोगों की ब्लड प्रेशर व शुगर जांच करेंगी। यदि कोई मरीज पाया जाता है तो आशा वर्कर उसे अस्पतालों में इलाज के लिए भेजेंगी। डॉक्टर कहते हैं कि दिल की बीमारियों से बचाव के लिए व्यायाम जरूरी है।
नई तकनीकों से आसान हो रहा इलाज
एम्स के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. संदीप मिश्रा ने कहा कि दिल की बीमारियों के इलाज के लिए कई नई तकनीक आई हैं, जिससे इलाज आसान हो गया है। उन्होंने कहा कि अब सर्जरी के बगैर वॉल्व बदलना भी संभव है, लेकिन अभी यह तकनीक महंगी है। इसी तरह नेक्स्ट जेनरेशन का बायोडिग्रेडेबल स्टेंट आ गया है। उन्होंने कहा कि पहले जो बायोडिग्रेडेबल स्टेंट इस्तेमाल हो रहे थे, उससे एंजियोप्लास्टी करने में तकनीकी दिक्कतें आ रहीं थीं। इसलिए वह बंद हो गया। तकनीकी सुधार के बाद बायोडिग्रेडेबल स्टेंट दोबारा आ गया है।