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SC के फैसले पर बोले अरुण जेटली, दिल्ली सरकार को नहीं मिला तबादले का अधिकार

अरुण जेटली ने कहा कि दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच मतभेद की स्थिति में अंतिम फैसला सुनाने का हक अब भी राष्ट्रपति के माध्यम से केंद्र सरकार के पास है।

By JP YadavEdited By: Published: Fri, 06 Jul 2018 06:07 AM (IST)Updated: Fri, 06 Jul 2018 06:07 AM (IST)
SC के फैसले पर बोले अरुण जेटली, दिल्ली सरकार को नहीं मिला तबादले का अधिकार
SC के फैसले पर बोले अरुण जेटली, दिल्ली सरकार को नहीं मिला तबादले का अधिकार

नई दिल्ली (जेएनएन)। केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से दिल्ली सरकार की संवैधानिक स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ दिल्ली की संवैधानिक स्थिति को स्पष्ट कर दिया है। इससे न तो दिल्ली सरकार को किसी मामले में जांच एजेंसी गठित करने का अधिकार मिलता है और न ही यूटी कैडर के अधिकारियों के तबादले का अधिकार मिलता है।

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अरुण जेटली ने कहा कि दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच मतभेद की स्थिति में अंतिम फैसला सुनाने का हक अब भी राष्ट्रपति के माध्यम से केंद्र सरकार के पास है। फेसबुक पर अपने पोस्ट में जेटली ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विस्तार से विश्लेषण किया है। उनके अनुसार अदालत ने साफ तौर पर दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी होने के नाते विशेष दर्जे की स्थिति को स्वीकार किया है। फैसले के अनुसार पुलिस पर दिल्ली सरकार का कोई अधिकार नहीं होगा। पुलिस पर अधिकार नहीं होने का मतलब है कि दिल्ली सरकार को कोई जांच एजेंसी गठित करने का अधिकार नहीं होगा। जैसा कि पहले करने की कोशिश की गई थी। यानी किसी मामले की जांच करने या नहीं करने का फैसला दिल्ली पुलिस स्वतंत्र रूप से लेगी।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अधिकारियों के तबादले के अधिकार मिलने के केजरीवाल सरकार के दावे को भी जेटली ने खारिज कर दिया है। जेटली के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के फैसले में साफ कहा गया है कि दिल्ली की तुलना दूसरे राज्यों से नहीं की जा सकती है। इससे यह निष्कर्ष निकालना उचित नहीं होगा कि केंद्र शासित क्षेत्र (यूटी) कैडर के अधिकारियों को दिल्ली सरकार के मातहत कर दिया गया है। पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने एकमत से फैसला दिया था कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता।

संवैधानिक प्रावधानों की पुष्टि करता है सुप्रीम कोर्ट का फैसला

जेटली ने कहा कि यह फैसला संविधान के पीछे के लोकतांत्रिक मूल्यों की विस्तार से व्याख्या करता है। संवैधानिक प्रावधानों की पुष्टि भी करता है। इससे न तो राज्य सरकार या केंद्र सरकार के अधिकारों में इजाफा हुआ है और न ही किसी के अधिकारों में कटौती हुई है। यह फैसला चुनी गई सरकार के महत्व को रेखांकित करता है। सामान्य तौर पर लोकतंत्र तथा संघीय राजनीति के हित में उपराज्यपाल को राज्य सरकार के काम करने के अधिकार को स्वीकार करना चाहिए। लेकिन, यदि कोई ऐसा मामला है, जिसमें असहमति का ठोस आधार है तो उपराज्यपाल उसे विचार के लिए राष्ट्रपति यानी केंद्र सरकार को भेज सकते हैं, जिससे मतभेद को दूर किया जा सके। ऐसे मामलों में केंद्र का निर्णय उपराज्यपाल और दिल्ली की निर्वाचित सरकार दोनों को मानना होगा। इस तरह दिल्ली में केंद्र को ऊपर रखा गया है।


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