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Safe Spine Surgery: ट्रिपल एस तकनीक की मदद से मिलेगी अर्थराइटिस के दर्द में राहत

Safe Spine Surgery दिल्‍ली के स्पाइन सर्जन डॉ. सुदीप जैन ने बताया कि ओपेन सर्जरी के मुकाबले अधिक कारगर है सेफ स्पाइनल सर्जरी। इसमें समय लगता है कम और नहीं रहना पड़ता है बेड रेस्ट पर और उसका प्राकृतिक लचीलापन भी बना रहता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 05 Jan 2021 04:08 PM (IST)Updated: Wed, 06 Jan 2021 09:12 AM (IST)
Safe Spine Surgery: ट्रिपल एस तकनीक की मदद से मिलेगी अर्थराइटिस के दर्द में राहत
ट्रिपल एस (सेफ स्पाइनल सर्जरी) तकनीक ऐसे मरीजों को राहत दे रही है।

नई दिल्‍ली, जेएनएन। ठंड का मौसम आते ही चिकित्सकों के पास गर्दन या कमर दर्द की समस्या से जूझ रहे मरीजों की संख्या बढ़ने लगती है। इन मरीजों को दवाइयों और व्यायाम से कुछ राहत तो मिल जाती है, लेकिन पूरी तरह आराम मिल जाए, यह संभावना कम ही रहती है। लंबे समय तक दर्द के प्रति लापरवाही और अनियमित जीवनशैली लोगों को अर्थराइटिस की समस्या का शिकार बना रही है।

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तकनीकी संसाधनों के प्रयोग और लंबे समय तक काम करने की आदत ने स्पाइनल अर्थराइटिस को गंभीर समस्या बना दिया है, लेकिन प्रचलित मान्यताओं के विपरीत यह बीमारी लाइलाज नहीं है। ट्रिपल एस (सेफ स्पाइनल सर्जरी) तकनीक ऐसे मरीजों को राहत दे रही है।

प्रमुख लक्षण

  • गर्दन में अकड़न होना
  • हाथ-पैरों का सुन्न होना
  • हाथ-पैरों में झनझनाहट
  • हमेशा कमजोरी महसूस करना
  • कमर का लचीलापन कम होना
  • थोड़ा भी काम करने में थकावट लगना

स्पाइनल अर्थराइटिस के कारण

  • अनियमित जीवनशैली
  • लंबे समय तक डेस्क वर्क
  • खानपान में अनियमितता
  • शरीर का अत्यधिक वजन
  • गलत मुद्रा में बैठने की आदत
  • काम के कारण अत्यधिक तनाव
  • लंबे समय तक सफर करना, गाड़ी चलाना
  • टीवी देखना, कंप्यूटर या लैपटॉप पर काम करना

क्या है ट्रिपल एस तकनीक: रोगियों में इस स्पाइनल सर्जरी को लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं। लोग यह मान बैठते हैं कि स्पाइनल सर्जरी बेहद जटिल होती है और इसमें सफलता भी बेहद कम मिलती है। जबकि चिकित्सा विज्ञान की प्रगति ने इस सर्जरी को बहुत आसान बनाया है। ट्रिपल एस यानी कि सेफ स्पाइन सर्जरी वह तकनीक है, जिसमें ओपेन सर्जरी जैसा कुछ नहीं किया जाता, बल्कि एक बारीक छेद की मदद से पूरा ऑपरेशन किया जाता है।

ऑपरेशन के दौरान इंट्रा ऑपरेटिव, पोलोरोस्कोपी और सीटी स्कैन की मदद से बेहद सटीक तरीके से इस सर्जरी को अंजाम दिया जाता है। इतना ही नहीं, सर्जरी में लेजर का इस्तेमाल किया जाता है ताकि नॉर्मल हड्डी और डिस्क को किसी प्रकार की क्षति न पहुंचे। ऐसे में हड्डी का मूल ढांचा बरकरार रहता है और उसका प्राकृतिक लचीलापन भी बना रहता है।

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