वर्ल्ड हेरिटेज वीकः ढह रहीं हैं देश की धरोहरें, एएसआइ का सारा जोर टॉयलेट बनाने पर
अंतिम मुगल बादशाह द्वारा बनवाए गए जफरमहल में भी लंबे समय से संरक्षण कार्य नहीं कराया गया है। यह जुआरियों का अड्डा बन गया है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। धरोहर के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) में नई तरह की संस्कृति देखने को मिल रही है। अब स्मारकों में संरक्षण पर कम और पर्यटकों को सुविधाएं उपलब्ध कराने पर अधिक ध्यान है। संरक्षण का कार्य बहुत कम हो गया है। अब स्मारकों में फर्श बनाने से लेकर शौचालयों को संवारने पर अधिक ध्यान है। स्मारकों के संरक्षण के लिए लड़ाई लड़ रहे अधिवक्ता लखविंदर सिंह कहते हैं कि स्मारकों में पर्यटकों को सुविधाएं उपलब्ध कराना गलत नहीं है। मगर संरक्षण कार्य पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। वहीं इस बारे में एएसआइ के प्रवक्ता डॉ. डी. एन.डिमरी कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि संरक्षण कार्य रोक दिया गया है। जहां जरूरत है संरक्षण का काम भी कराया जा रहा है।
धरोहर के संरक्षण को लेकर उदासीनता की बात करें तो दिल्ली में 1200 के करीब स्मारकों में से 174 ही एएसआइ के पास संरक्षित हैं। जबकि 250 को दिल्ली सरकार ने संरक्षित करने की तैयारी शुरू की है। जबकि 776 ऐसे स्मारक हैं जिसकी सुध कोई नहीं ले रहा। इनमें से कई हवेलियां भी पुरातात्विक धरोहर की सूची में हैं। मगर इन्हें तोड़ने का सिलसिला जारी है।
लाल किला के कुछ भागों में है यह हाल
एएसआइ का लाल किला में पूरा ध्यान संग्रहालय बनाने पर है। इसके अलावा खाली मैदानों में पार्क बनाए गए हैं। सेना के समय के निर्माण तोड़े गए हैं। शौचालय बनाए जा रहे हैं। मगर मुख्य निर्माण पर ध्यान नहीं है। दिल्ली गेट से घुसने पर दाहिनी ओर 10 मीटर चलने पर इमारत का बुरा हाल है।
कई माह से गिरा हुआ है सलीमगढ़ किला का पीछे का हिस्सा
लाल किला के पीछे स्थित सलीमगढ़ किला का रिंग रोड की तरफ वाला एक हिस्सा पिछले कई माह से क्षतिग्रस्त हो चुका है। पत्थर निकल कर बिखरे हुए हैं।
नहीं पूरा हो सका गेट के संरक्षण का काम
मथुरा रोड स्थित राष्ट्रीय महत्व के स्मारक शेरशाह सूरी गेट पर पांच साल से एएसआइ का ताला लगा हुआ है। इसके ठीक सामने पुराना किला में व्यवस्थाएं बहाल करने पर करोड़ों की योजना पर काम किया गया है। मगर इसका संरक्षण नहीं करा सका है।
लालकोट की दीवार पर किसी को ध्यान नहीं
महरौली स्थित लालकोट की दीवार कहने के लिए एएसआइ के पास संरक्षित है। मगर दीवार अभी तक जमीन में ही दबी है। संजय वन के दूसरे भाग में स्थित इस दीवार का कुछ हिस्सा दिखता भी है।
जफर महल बना जुआरियों का अड्डा
अंतिम मुगल बादशाह द्वारा बनवाए गए जफरमहल में भी लंबे समय से संरक्षण कार्य नहीं कराया गया है। यह जुआरियों का अड्डा बन गया है। यह महल उपेक्षा का शिकार है। इसके मुख्य गेट के साथ ही अंदर के भागों में भी बहुत कार्य कराने की जरूरत है।
तिलंगानी का मकबरा अवैध कब्जे का शिकार
यह मकबरा निजामुद्दीन बस्ती के कोर्ट क्षेत्र में स्थित है। यहां पहुंचने के लिए टेढी-मेढ़ी तंग गलियों से गुजरना पड़ता है। मकबरे में आधा दर्जन से अधिक परिवार रहते हैं। विशाल मकबरा के अंदर कई कब्रें थीं जो गायब कर दी गई हैं। यह मकबरा फिरोजशाह तुगलक (1351-88) के वजीरे-आजम खाने जहां तिलंगानी का है। जिनका असली नाम खाने जहां मकबूल खां था।
विक्रमजीत सिंह रूपराय (हेरिटेज एक्टिविस्ट) ने कहा कि एएसआइ की लापरवाही से स्मारकों पर कब्जे हुए हैं। तिलंगानी के मकबरे सहित अन्य कई मकबरों पर लोगों का कब्जा है। सरकार को चाहिए कि ऐसे मामलों को गंभीरता से लिया जाए।