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देश्‍ के 18 लाख बच्‍चों को खाना खिलाने वाली संस्‍था अब दिल्‍ली में हजारों बच्‍चों को खिलाएगी खाना

ऐसी संस्था है जो न केवल लाखों लोगों का पेट भरती आ रही है साफ-सफाई और गुणवत्ता के मामले में भी उसका कोई जवाब नहीं।

By Prateek KumarEdited By: Published: Sun, 09 Feb 2020 10:46 PM (IST)Updated: Sun, 09 Feb 2020 10:47 PM (IST)
देश्‍ के 18 लाख बच्‍चों को खाना खिलाने वाली संस्‍था अब दिल्‍ली में हजारों बच्‍चों को खिलाएगी खाना
देश्‍ के 18 लाख बच्‍चों को खाना खिलाने वाली संस्‍था अब दिल्‍ली में हजारों बच्‍चों को खिलाएगी खाना

नई दिल्ली [रितु राणा]। स्कूलों में छात्रों की अधिक से अधिक उपस्थिति दर्ज हो, वे शिक्षित होकर स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकें इसके लिए सरकारी स्कूलों में मिड डे मील यानी मध्याह्न् भोजन की व्यवस्था की गई। लेकिन, खराब गुणवत्ता और लगातार मिल रही शिकायतों की वजह से अब बच्चे मिड डे मील खाने से कतराने लगे हैं।

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वहीं दूसरी तरफ एक ऐसी संस्था है जो न केवल लाखों लोगों का पेट भरती आ रही है, साफ-सफाई और गुणवत्ता के मामले में भी उसका कोई जवाब नहीं। भूख के कारण कोई बच्चा शिक्षा से वंचित न रह जाए कुछ इसी उद्देश्य के साथ करीब 20 वर्ष पहले इस संस्था की नींव रखी गई थी। हम बात कर रहे हैं अक्षय पात्र फाउंडेशन की, जो देशभर के सरकारी स्कूलों में करीब 18 लाख बच्चों को शत-प्रतिशत शुद्ध व गुणवत्तायुक्त भोजन परोस रही है। इस उपलब्धि के कारण फाउंडेशन का नाम 2001 में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज किया जा चुका है। यही वजह है कि अब दिल्ली के छात्रों को पोषण से भरपूर भोजन परोसने की जिम्मेदारी भी इसी फाउंडेशन के हाथों में सौंप दी गई है।

75 हजार बच्चों को मिल रहा पौष्टिक आहार

दिल्ली में मोहन एस्टेट, जहांगीरपुरी, समयपुर बादली व गोल मार्केट में संस्था के तहत किचन खोले गए हैं। जहां मिड डे मील बनाकर स्कूलों तक पहुंचाया जा रहा है। इसमें 60 फीसद हिस्सेदारी सरकार की होती है और 40 फीसद खर्च संस्था उठाती है। दिल्ली के आठ हजार स्कूलों में करीब 75 हजार बच्चों को संस्था मिड डे मील पहुंचा रही है।

गुणवत्ता व मात्रा से समझौता नहीं

बच्चों को स्वच्छ व पौष्टिक तत्वों से भरपूर भोजन उपलब्ध हो सके इसके लिए हर दिन के हिसाब से उन्हें तरह-तरह के भोजन परोसे जाते हैं। खाने में चावल, दाल, मिक्स वेजिटेबल, छोले, मिक्स दाल, आलू चना, आलू मटर, कढी आदि दिए जाते हैं। हफ्ते में चार दिन केले व दो दिन मौसमी फल भी दिए जाते हैं। बच्चों को समय पर भोजन उपलब्ध हो सके इसलिए सुबह चार बजे से भोजन बनना शुरू होता है, जो साढ़े आठ बजे तक बन कर तैयार हो जाता है। साढ़े आठ से साढ़े नौ के बीच इंसुलेटेड बर्तनों में खाना पैक कर स्कूलों में पहुंचाया जाता है।

साफ-सफाई का रखा जाता है पूरा ध्यान

अक्षय पात्र के किचन में प्रवेश करने से पहले प्री-प्रोसेसिंग एरिया में सभी कर्मचारी सात स्टेप में हाथ धोने की प्रक्रिया पूरी करते हैं। उसके बाद ड्रायर से हाथ सुखाते हैं। फिर गम बूट व सेफ्टी बूट पहनकर ही कर्मचारी अंदर प्रवेश करते हैं। यहां सब्जी धोने से लेकर खान पकाने तक सभी काम के लिए मशीनें लगाई गई हैं। हरी सब्जियों से रसायन का प्रभाव खत्म करने के लिए क्लोरिनेशन कर उसे साफ किया जाता है। मच्छर, मक्खी आदि किचन में प्रवेश न सक सके इसके लिए फ्लाई कैचर लगाया गया है। जहां खाना बनकर तैयार होता है वहां 500 लीटर के दो ड्रैग कूकर चावल बनाने के लिए व 1200 लीटर का एक कुकर दाल बनाने के लिए है, जिसमें 42 मिनट में भोजन तैयार हो जाता है।

हर महीने पोषण मूल्य की जांच

मिड डे मील में शामिल होने वाली डिश का हर महीने पोषण मूल्य (एनवी) जांचा जाता है। पहले सैंपल की जांच बेंगलुरु स्थित विभाग के न्यूटिशनिस्ट करते हैं। उसके बाद बाहर लैब से भी खाने का ट्रायल होता है। दोनो रिपोट्र्स के आधार पर ही फल या सब्जी आदि रॉ मेटेरियल को भोजन में शामिल किया जाता है। यही वजह है कि दिल्ली सरकार ने 40 संस्थाओं में से अक्षय पात्र को बच्चों का मिड डे मील तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी है।

कर्नाटक से हुई शुरुआत

गोल मार्केट स्थित अक्षय पात्र फाउंडेशन किचन के प्रमुख अजरुन कहते हैं कि बेंगलुरु स्थित इस्कॉन मंदिर के अध्यक्ष पद्मश्री मधु पंडित दास ने अक्षय पात्र की शुरुआत की थी। दरअसल उन्होंने देखा कि रोजाना दोपहर में स्कूल के कुछ बच्चे संस्था में आते और पांच छह पत्तल खाना खा जाते। जब उन्होंने बच्चों से इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा हम पास के स्कूल से आए हैं। हम लोग गरीब परिवार से हैं। हमें भरपेट भोजन यहीं मिलता है। यह बात उनके मन को लग गई और उन्होंने अक्षय पात्र फाउंडेशन की शुरुआत की।


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