यूनिफॉर्म सिविल कोड के खिलाफ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, HC में दाखिल की याचिका
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर सभी नागरिकों के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड की मांग वाली याचिका में पार्टी बनने की मांग की है।
नई दिल्ली, जेएनएन। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर सभी नागरिकों के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड की मांग वाली याचिका में पार्टी बनने की मांग की है। मामले की अगली सुनवाई 27 अगस्त को होगी। हाई कोर्ट ने अभी हाल में ही यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर केंद्र सरकार और लॉ कमीशन को एक शपथ पत्र दाखिल करने को कहा था।
दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई है जिसमें केंद्र सरकार को समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि देश की अखंडता और एकता के लिए यह बेहद जरुरी है। याचिकाकर्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय का आरोप है कि सरकार समान नागरिक संहिता लागू करने में विफल रही है जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 44 में प्रावधान है।
क्या है समान नागरिक संहिता ?
दरअसल, समान नागरिक संहिता में धार्मिक मान्यताओं से जुड़े कानूनों को समाप्त करने और इसकी जगह पर एक समान कानून लागू करने का प्रस्ताव है। भारत में विभिन्न धर्म और संप्रदाय के लोगों के अपने निजी धार्मिक कानून हैं। समान नागरिक संहिता केवल शादी, तलाक, संपत्ति, उत्तराधिकार, बच्चा गोद लेने और गुजारा भत्ता जैसे मुद्दों पर लागू होगी। देश में विभिन्न धर्म को मानने वाले अपनी धार्मिक मान्यताओं, संस्कृति और रीति-रिवाजों के आधार पर शादी, संपत्ति, तलाक और बच्चा गोद लेने के फैसले कर सकते हैं। अगर इसमें कोई विवाद पैदा हो जाए तो इसके लिए कोई कानून नहीं होता है।
क्यों विरोध कर रहा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड?
संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 अल्पसंख्यकों को अपनी संस्कृति, धार्मिक रीति-रिवाज के संरक्षण का अधिकार सुनिश्चित करते हैं। वे अपने धर्म के हिसाब से शिक्षण संस्थानों का संचालन कर सकते हैं। अपने धर्म, रीति रिवाज और मान्यताओं का अनुसरण कर सकते हैं। जबकि समान नागरिक संहिता को इन अधिकारों पर खतरे के तौर पर देखा जा रहा है।
निजी और नागरिक संहिता खासतौर पर शादी, संपत्ति के अधिकार और बच्चा गोद लेने के मुद्दे को लेकर अलग है। पुरुषों के प्रभुत्व वाला ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तीन तलाक मामले में कोई बदलाव नहीं चाहता था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट इसे खत्म करने का फैसला सुनाया और सरकार ने इसके खिलाफ कानून बना सदियों की कुप्रथा का अंत किया। यह मुस्लिम संगठन बहुविवाह की परंपरा को भी जारी रखना चाहता है।