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दिल्ली के प्रदूषण को लेकर AIIMS भी चिंतित, मंडराया कई खतरनाक बीमारियों का खतरा

संस्थान के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने पीएम 2.5 से भी छोटे प्रदूषक तत्वों की निगरानी करने और प्रदूषण को कम करने के लिए कारगर कदम उठाने की जरूरत बताई है।

By Edited By: Published: Tue, 30 Oct 2018 10:09 PM (IST)Updated: Wed, 31 Oct 2018 10:10 AM (IST)
दिल्ली के प्रदूषण को लेकर AIIMS भी चिंतित, मंडराया कई खतरनाक बीमारियों का खतरा
दिल्ली के प्रदूषण को लेकर AIIMS भी चिंतित, मंडराया कई खतरनाक बीमारियों का खतरा

नई दिल्ली, जेएनएन। दिल्ली-एनसीआर की जहरीली होती हवा पर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने भी चिंता जाहिर की है। एम्स के डॉक्टर कहते हैं कि लोग यह न समझें कि प्रदूषण से सिर्फ सांस व हृदय की बीमारियां होती हैं, इससे दीर्घकालिक तौर पर कई खतरनाक बीमारियां भी हो सकती हैं। गर्भवती महिलाओ पर भी प्रदूषण की गंभीर मार पड़ सकती है और गर्भस्थ शिशु का विकास प्रभावित हो सकता है।

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संस्थान के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने पीएम 2.5 से भी छोटे प्रदूषक तत्वों की निगरानी करने और प्रदूषण को कम करने के लिए कारगर कदम उठाने की जरूरत बताई है। उन्होंने कहा कि प्रदूषण का शुरुआती असर सांस की नली और फेफड़े पर होता है, क्योंकि यह हवा के शरीर में प्रवेश करने का मार्ग होता है।

वातावरण प्रदूषित होने पर पीएम 2.5 से छोटे कण पीएम-1, पीएम 0.1 जैसे सूक्ष्म कणों की मात्रा भी बहुत बढ़ जाती है। ये सूक्ष्म कण सांस के जरिये फेफड़े में, फेफड़े से खून में और खून के साथ महत्वपूर्ण अंगों तक पहुंच जाते हैं। इसका दुष्प्रभाव कुछ सालों बाद देखने को मिल सकता है। सिगरेट पीने से सिर्फ फेफड़े का ही कैंसर नहीं होता बल्कि शरीर के 10 अंगों के कैंसर होते हैं।

सामान्य दिनों में भी आठ सिगरेट पीने के बराबर प्रदूषित होती है दिल्ली
डॉ. गुलेरिया ने कहा कि दिल्ली में सामान्य दिनों में ही हवा छह से आठ सिगरेट पीने के बराबर प्रदूषित होती है। प्रदूषण के कारण गर्भस्थ बच्चे कुपोषित हो सकते हैं, क्योंकि उनका वजन सामान्य से कम रहने का खतरा रहता है। इसलिए एम्स गर्भवती महिलाओं पर प्रदूषण के दुष्प्रभाव का अध्ययन कर रहा है। प्रदूषण के दुष्प्रभाव से गर्भपात का भी खतरा रहता है। इसके अलावा बच्चों में ब्लड कैंसर भी हो सकता है।

29 फीसद बढ़ जाता है लकवा का खतरा
एम्स के न्यूरोलॉजी विभाग के डॉक्टरों द्वारा किए गए अध्ययन में यह पाया गया है कि हवा में कार्बन मोनो आक्साइड व नाइट्रस ऑक्साइड की मात्रा बढ़ने पर लकवा का खतरा 29 फीसद तक बढ़ जाता है। केंद्र सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने यह अध्ययन कराया है।

न्यूरोलॉजी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. अवध किशोर पंडित ने बताया कि जनवरी 2012 से अक्टूबर 2017 के बीच लकवा से पीड़ित होकर अस्पताल में पहुंचे 692 मरीजों पर यह अध्ययन किया गया है। इनमें 72.5 फीसद मरीज मतिष्क के नसों में ब्लॉकेज के कारण लकवा से पीड़ित हुए थे जबकि 27.5 फीसद मरीज ब्रेन हेमरेज से पीड़ित थे।

अध्ययन में हमने देखा कि जिस दिन पीड़ितों को लकवा हुआ, उस दिन 24 घंटे प्रदूषण का औसत स्तर क्या था। इसके अलावा लकवा होने से तीन दिन पहले की क्या स्थिति थी। उसका तुलनात्मक अध्ययन किया गया।

अध्ययन में पाया गया कि कॉर्बन मोनो आक्साइड (सीओ) व नाइट्रस ऑक्साइड (एनओ-2) की मात्रा बढ़ने पर लकवा का खतरा बढ़ जाता है। न्यूरोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. कामेश्वर प्रसाद ने कहा कि यदि किसी को पहले से मधुमेह, ब्लड प्रेशर, उच्च कोलेस्ट्रॉल व मोटापा की समस्या है तो प्रदूषण बढ़ने पर लकवा होने की आशंका बढ़ जाती है।


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