रायपुर के बाद अब गाजियाबाद में छात्रों ने नाले की गैस से बनाई चाय
कॉलेज प्रबंधन का दावा है कि छात्रों ने वर्ष 2014 में तकनीक विकसित कर ली थी। हालांकि सामाजिक सरोकार के चलते कॉलेज प्रबंधन ने इसका पेटेंट नहीं करवाया।
गाजियाबाद (जेएनएन)। रायपुर के बाद अब गाजियाबाद में दो छात्रों ने नाले की गैस से चाय बनाई है। छात्रों ने बृहस्पतिवार को कॉलेज में इसका प्रस्तुतिकरण रखा। इस दौरान कॉलेज के शिक्षकों व अधिकारियों के अलावा जिला प्रशासन के अधिकारी भी मौके पर मौजूद रहे। छात्रों की इस उपलब्धि को बड़ी कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है। छात्रों ने नाले की गैस का रसोई चूल्हे में इस्तेमाल कर चाय बनाने का ये कमाल साहिबाबाद औद्योगिक क्षेत्र स्थित इंद्रप्रस्थ कॉलेज में किया है।
मालूम हो कि वर्ल्ड बायोफ्यूल डे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नाले से बायो गैस पैदा करने की तकनीक का जिक्र किया था। उन्होंने अपने भाषण में रायपुर के मैकेनिकल कांट्रेक्टर कॉन्ट्रैक्टर श्याम राव शिरके का जिक्र किया था। इसके बाद श्याव राय रातों-रात मीडिया में छा गए थे। श्याम राव ने अपनी इस तकनीकी को दस वर्ष के लिए ग्लोबली पेटेंट भी करा रखा है।
उनकी खबर सामने आने के बाद गाजियाबाद के छात्रों ने भी उत्साहित होकर इस तकनीक की न केवल प्रदर्शनी लगाई बल्कि प्रदर्शनी में शामिल लोगों को उसी गैस पर चाय बनाकर भी पिलाई। प्रदर्शनी में छात्रों ने शाहदरा नाले में प्लांट लगाकर बायो गैस का उपयोग किया ।
कॉलेज प्रबंधन ने बताया कि कॉलेज के मैकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्र अभिनेंद्र पटेल और अभिषेक वर्मा ने प्रो. ओपी शर्मा के निदेशन में गंदे नाले के आसपास अध्ययन कर मीथेन गैस की मौजूदगी को दर्ज किया था। इस गैस का ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने के लिए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय को एक प्रोजेक्ट बनाकर भेजा गया।
मंत्रालय से वित्तीय सहायता मिलने के बाद छात्रों ने इस पर काम शुरू कर दिया और नाले की गैस को ईंधन में तब्दील कर दिया। कॉलेज प्रबंधन का दावा है कि उनके छात्रों ने वर्ष 2014 में ही यह तकनीक विकसित कर ली थी। हालांकि सामाजिक सरोकार के चलते कॉलेज प्रबंधन ने इसका पेटेंट नहीं करवाया और कॉलेज के पास ही इसे जरूरतमंद को उपयोग करने को दे दिया।
ऐसे काम करती है ये तकनीक
छात्र अभिषेक वर्मा ने बताया कि शाहदरा से आने वाले गंदे नाले में औद्योगिक क्षेत्र से रसायन, पानी में घुलकर आता है। सूक्ष्म जीवों द्वारा पानी में घुले रसायनों के साथ अभिक्रिया करने से उसमें मीथेन गैस बनती है। इसे संग्रहित करने के लिए नाले में बड़े ड्रम डाल दिए जाते हैं। कुछ घंटों में नाले में बनने वाली गैस ड्रमों में इकट्ठी होने लगती है जो बाद में ड्रम में लगे पाइपों के माध्यम से सीधी गैस चूल्हे में चली जाती है। इस प्लांट को बनाने में अधिक आर्थिक लागत की जरूरत नहीं होती है।