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Nirbhaya Case Verdict: जेल नंबर-3 में 22 जनवरी को फांसी पर लटकाए जाएंगे निर्भया के गुनहगार

Nirbhaya Case Verdict दिल्ली कोर्ट के फैसले के मुताबिक चारों दोषियों को 22 जनवरी को सुबह सात बजे तिहाड़ जेल में फांसी दे दी जाएगी।

By JP YadavEdited By: Published: Wed, 08 Jan 2020 07:44 AM (IST)Updated: Wed, 08 Jan 2020 10:30 AM (IST)
Nirbhaya Case Verdict: जेल नंबर-3 में 22 जनवरी को फांसी पर लटकाए जाएंगे निर्भया के गुनहगार
Nirbhaya Case Verdict: जेल नंबर-3 में 22 जनवरी को फांसी पर लटकाए जाएंगे निर्भया के गुनहगार

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। Nirbhaya Case Verdict : निर्भया के सामूहिक दुष्कर्म और हत्याकांड में दिल्ली की अदालत ने आखिरकार मंगलवार को चारों दोषियों के खिलाफ डेथ वारंट जारी कर दिए। चारों दोषियों को 22 जनवरी को सुबह सात बजे तिहाड़ जेल में फांसी दे दी जाएगी। कोर्ट के आदेश के बाद निर्भया की मां ने कहा कि दोषियों को फांसी से लोगों का कानून में विश्वास बढ़ेगा। हालांकि दोषियों के पास उपचारात्मक याचिका (क्यूरेटिव पिटिशन) दायर करने का विकल्प खुला है। यह याचिका फांसी की सजा देने से एक दिन पहले तक सुप्रीम कोर्ट में दायर की जा सकती है। दोषी पक्ष के अधिवक्ता एपी सिंह ने कहा है कि 22 जनवरी से पहले ही हम क्यूरेटिव पिटिशन दायर करेंगे। सूत्रों की मानें तो चारों को फांसी जेल नंबर-3 में दी जाएगी। हालांकि चार में से तीन को अभी जेल नंबर-2 और एक को जेल नंबर-4 रखा गया है। जेल प्रशासन दोषियों को फांसी पर चढ़ाने के लिए मेरठ के जल्लाद से संपर्क करेगा।

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और कितना समय दें

अदालत में पीड़िता की मां की अर्जी पर बहस शुरू हुई तो दोषियों के वकील ने कहा कि कुछ समय दिया जाए। दोषियों की तरफ से क्यूरेटिव पिटिशन दायर करने की प्रक्रिया जारी है। इस पर जज ने कहा-‘और कितना समय दिया जाए आपको? मामला पहले ही काफी लटक चुका है।’ वहीं, पीड़िता के वकीलों ने अदालत में सुप्रीम कोर्ट के कई आदेशों का हवाला देते हुए कहा कि दोषियों को डेथ वारंट जारी होना चाहिए। इसके बाद भी उनके पास 14 दिन का समय है, जिसमें बचे हुए कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल किया जा सकता है।

तकनीकी खराबी से हुई कुछ देरी

फैसला दोषियों के सामने सुनाया जाना था। चारों दोषी मुकेश (32), पवन गुप्ता (25), विनय शर्मा (26) और अक्षय कुमार सिंह (31) को वीडियो कांफ्रेंसिंग (वीसी) के जरिये अदालत में पेश किया गया। हालांकि कुछ तकनीकी खराबी के चलते वीसी करीब चार बजे शाम से शुरू हो सकी। करीब 40 मिनट की सुनवाई के बाद डेथ वारंट का आदेश दिया गया। इससे पहले करीब एक घंटे तक दोनों पक्षों के बीच जोरदार बहस हुई, जबकि डेथ वारंट जारी करने का आदेश सिर्फ इस केस से जुड़े लोगों की मौजूदगी में सुनाया गया। मीडिया को कोर्ट रूम में रहने की अनुमति नहीं थी।

वारदात ने हिला दिया था पूरा देश

दिल्ली में 16-17 दिसंबर, 2012 की रात एक चलती बस में 23 वर्षीय पैरामेडिकल छात्रा से छह लोगों ने बर्बर सामूहिक दुष्कर्म किया और उसे बुरी तरह घायल करने के बाद बस से बाहर सड़क पर फेंक दिया था। 29 दिसंबर, 2012 को इलाज के दौरान सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ हॉस्पिटल में पीड़िता की मौत हो गई थी। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। वारदात के 90 दिन बाद पटियाला हाउस कोर्ट ने चारों दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी। मुख्य आरोपित राम सिंह ने ट्रायल के दौरान ही जेल में फांसी लगा ली थी और एक अन्य नाबालिग साबित हुआ था। उसे तीन साल तक सुधार गृह में रखने के बाद रिहा किया जा चुका है। 2014 में हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने भी फांसी की सजा को कायम रखा। इसके बाद दोषियों की रिव्यू पिटिशन भी खारिज हो गई थी।

दोषियों को मिला पर्याप्त मौका

पटियाला हाउस कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सतीश कुमार अरोड़ा ने अपने आदेश में कहा कि दोषियों को कानून के तहत उपलब्ध सभी उपायों का इस्तेमाल करने का मौका दिया गया। अब डेथ वारंट जारी करने में देरी करने जैसा कुछ नहीं है। जेल अधीक्षक को निर्देश जारी किए जाते हैं कि 22 जनवरी 2020 को सुबह सात बजे दोषियों की फांसी की सजा दी जाए।

ये हैं दोषी

नाम: राम सिंह (बस चालक), निवासी दिल्ली। तिहाड़ में 11 मार्च 2013 को खुदकशी कर ली

नाम: मुकेश कुमार (ड्राइवर कम हेल्पर) निवासी दिल्ली। राम सिंह का भाई है।

नाम: अक्षय कुमार सिंह (बस हेल्पर) वर्तमान निवासी दिल्ली, मूल निवासी औरंगाबाद, बिहार

नाम: पवन गुप्ता (फल विक्रेता) निवासी दिल्ली

नाम: विनय शर्मा (जिम में हेल्पर) निवासी दिल्ली

नाबालिग (बस क्लीनर) निवासी: बदायूं (उप्र) । वारदात के समय 17 साल छह महीने 11 दिन का था, 31 अगस्त 2013 को बाल न्यायालय ने हत्या में तीन साल की सजा सुनाई। सजा काटने के बाद दिसंबर 2015 में रिहा हो गया

-सितंबर, 2013 : ट्रायल कोर्ट ने चारों को फांसी की सजा सुनाई

-मार्च, 2014 : हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले की पुष्टि की

-मई, 2017 : सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा बरकरार रखी


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