Delhi MCD Merger: खराब वित्तीय स्थिति से पार पाना होगी सबसे बड़ी चुनौती, राजस्व से ज्यादा हैं खर्च
MCD Merger समय से वेतन जारी न होने पर निगम को हड़ताल का सामना करना पड़ सकता है। दरअसल खराब आर्थिक स्थिति के कारण पूर्वी नगर निगम में कर्मचारियों को 5 माह से वेतन नहीं मिला है जबकि उत्तरी निगम के कर्मचारियों को तीन माह से वेतन की दिक्कत है।
नई दिल्ली [निहाल सिंह]। राजधानी के तीनों नगर निगम (उत्तरी, पूर्वी और दक्षिणी) रविवार से तो एक हो जाएंगे, लेकिन एकीकृत निगम के सामने चुनौतियां ढेरों होंगी। सबसे बड़ी चुनौती खराब आर्थिक स्थिति से उबारना होगा, क्योंकि वर्तमान में तीनों निगमों में राजस्व के मुकाबले खर्च अधिक हैं। सालाना नौ हजार करोड़ रुपये तो निगमकर्मियों के वेतन पर ही खर्च हो जाते हैं, जबकि निगम का पूरा राजस्व महज नौ हजार करोड़ है।
इतना ही नहीं, ठेकेदारों की भी 1,600 करोड़ की देनदारी है। डेढ़ लाख कर्मचारियों को समय पर वेतन देना और विकास कार्यो को फिर से शुरू करना अपने आप में बहुत बड़ी चुनौती होगी। समय से वेतन जारी न होने पर निगम को हड़ताल का सामना भी करना पड़ सकता है। दरअसल, खराब आर्थिक स्थिति के कारण पूर्वी नगर निगम में कर्मचारियों को पांच माह से वेतन नहीं मिला है, जबकि उत्तरी निगम के कर्मचारियों को भी तीन माह से वेतन की दिक्कत है।
दक्षिणी निगम में भी एक माह की देरी से कर्मचारियों को वेतन मिल रहा था। तीनों नगर निगम बंटे हुए थे तो कभी पूर्वी में वेतन की दिक्कत होती थी तो कभी उत्तरी में। ऐसे में कर्मचारी संगठन भी बंटे हुए थे। कभी भी हड़ताल का ऐलान होता था तो वह ज्यादा प्रभावी नहीं हो पाती थी। एकीकृत निगम में कर्मचारी यूनियन मजबूत हो जाएगी। किसी भी विभाग या श्रेणी के कर्मचारियों ने हड़ताल का आह्वान किया तो इसका प्रभाव पूरी दिल्ली पर पड़ना भी तय है।
बढ़ाना होगा राजस्व
नगर निगमों को खराब आर्थिक स्थिति से उबारने के लिए निगम का राजस्व बढ़ाना होगा। हालांकि, एकीकृत निगम में तीनों निगमों का राजस्व एक हो जाएगा तो एक हद तक समस्या कम होगी, पर इसका स्थायी समाधान राजस्व बढ़ोतरी से ही होगा। इसके लिए करों में वृद्धि के साथ कुछ नए कर भी लगाए जा सकते हैं।
पूर्व में तीनों निगमों के आयुक्त हर वर्ष करों में वृद्धि के साथ पेशेवर कर जैसे नए कर लगाने का प्रस्ताव करते थे, लेकिन राजनीतिक हस्तक्षेप की वजह से स्थायी समिति और सदन से मंजूरी नहीं मिल पाती थी। चूंकि फिलहाल की गई व्यवस्था में विशेष अधिकारी और आयुक्त को सीधे अधिकार होगा। साथ ही उनके साथ सीधे तौर पर कोई राजनीतिक हस्तक्षेप भी नहीं होगा तो ऐसे में लोगों पर नए कर भी थोपे जा सकते हैं।
जनता की दैनिक समस्याओं का समाधान भी चुनौती
दिल्ली नगर निगम में वार्डो के परीसीमन और चुनाव होने तक विशेष अधिकारी की व्यवस्था रहेगी। महापौर के स्थान पर एक तरह से विशेष अधिकारी काम करेंगे। ऐसे में इस बीच पार्षद नहीं होंगे। जबकि, हर पार्षद के घर पर दैनिक आधार पर 100-150 लोग अपनी समस्याओं के हल की उम्मीद में आते हैं।
अब पार्षद न होने पर लोग कहां शिकायत करेंगे और इनके समाधान का तरीका क्या होगा, इसकी व्यवस्था करना भी चुनौती होगा। पार्षद मानवीय आधार पर नियमानुसार होने वाली कार्रवाई को भी रुकवाते थे। अब ऐसी समस्याओं को भी देखना होगा।
बिना कर्मचारियों को नाराज किए प्रशासनिक सुधार
तीनों निगम एक होने से बहुत सारे पद खत्म हो जाएंगे। ऐसे में कई अधिकारियों और कर्मचारियों में नाराजगी हो सकती है। ऐसे में इन कर्मचारियों से काम भी लेना है और प्रशासनिक सुधार भी करना है। निगम कर्मचारियों में नाराजगी ज्यादा न हो, इसलिए सर्वमान्य फैसले लेने होंगे।