बेकार न करें गर्मी की छुट्टियां, इन बातों पर दिया ध्यान तो यादगार बन जाएंगे ये दिन
किताबों से बाहर इस गर्मी की छुट्टी बच्चों को मिला है बचपन को जीने का अवसर। आइये जानें, कहां-कहां बसा है बचपन का ये खजाना।
नई दिल्ली (संजीव कुमार मिश्र)। बचपन की दौलत वो बेहिसाब सी गलतियां होती हैं...जो सबक देती हैं बार-बार। बचपन की दौलत नानी-दादी की कहानियां होती हैं...मां-पापा से मिले छोटे-बड़े खिलौने होते हैं...दीदी-भैया की टोका-टाकी होती है...बचपन की असल दौलत किताबों के बाहर होती है...। वहां न दिमाग की चिकल्लस होती है...मन के पीछे बेहिसाब चटपटी सी खुशियां होती हैं...। हंसी-ठिठोली होती है...यारी दोस्ती पल में बनती-बिगड़ती है। किताबों से बाहर इस गर्मी की छुट्टी बच्चों को मिला है बचपन को जीने का अवसर। आइये जानें, कहां-कहां बसा है बचपन का ये खजाना।
कंधों को कुछ दिन राहत रहेगी। बस्ते के बोझ से निजात जो मिलेगी...। पड़ गईं हैं ग्रीष्मकाल की छुट्टियां। अब तो हर दिन दोस्तों के संग धमाचौकड़ी खूब मचेगी। फिर अचानक याद हो आती है वो शायरी, 'खाली पड़ा है मेरे पड़ोस का मैदान...एक मोबाइल बच्चों की गेंद चुरा ले गया'। आज के बालमन से खो गए बचपन के खजाने का आइना है यह शायरी। इन दिनों बचपन की खुशियों के वायर तकनीक के प्लग से जुड़ गए हैं। जहां तकनीक अपने आगे-पीछे बचपन को नचाती है। भीड़ से बचाती है तो अंधेरे में ले जाती है। लेकिन इस गर्मी की छुट्टी के सुनहरे अवसर को बच्चों को जीने का मौका दीजिए...एक ऐसी दुनिया जो कभी आपने जी थी...आपके बड़ो ने जी थी...।गुदगुदाएगी आपको भी वो बचपन की यादें जब बच्चों के संग इन आयोजन में जाएंगे।
गर्मी की इन छुट्टियों में पहले नानी के घर जाकर ना केवल समय गुजारते थे बल्कि प्रकृति संग मीठे रिश्ते भी प्रगाढ़ होते थे। आम के पेड़ों पर चढ़कर फल तोड़ना। गांव की गलियों में वो धमा चौकड़ी, भला उन शरारत और ठिठोली को कोई भूल सकता है क्या...।
चलो पेड़ों संग दोस्ती करें
आपको भी बचपन याद हो आएगा जब पार्क में पेड़ पर चढ़कर फल तोड़ते थे और माली डंडा लेकर पीछे भागता था...इसी बचपन को जीने का अपने बच्चों को भी अवसर दीजिए। जीं हां, ट्री क्लाइम्बिंग इसी सोच के साथ आयोजित किया जा रहा है। नई दिल्ली नेचर सोसायटी द्वारा समर कैंप के तहत प्रत्येक सप्ताह रविवार को आयोजित किया जाता है। जिसमें ना केवल दिल्ली बल्कि नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम, फरीदाबाद के बच्चे अपने अभिभावकों संग हिस्सा लेते हैं।
आयोजकों की मानें तो पहले लोदी गार्डन में यह आयोजन होता था। फिलहाल नेहरू पार्क में बच्चों को पेड़ पर चढ़ना सिखाया जाता है। 20 बच्चों का समूह होता है। बच्चों के लिए ऐसे पेड़ों का चयन किया जाता है जिसकी शाखाएं ज्यादा निकली होती हैं। बच्चों को विशेषज्ञों की निगरानी में पेड़ों पर चढऩे का प्रशिक्षण दिया जाता है। आयोजक कहते हैं कि पेड़ पर चढ़ना ही नहीं, बल्कि हम पेड़ों पर चढ़े बच्चों को कहानी, कविता सुनाते हैं। उन्हें बताते हैं कि यह पेड़ चमगादड़, गौरैया, तोता समेत कई अन्य पक्षियों का
ठिकाना है। एक पेड़ काटने से कई पशु-पक्षी बेघर हो जाते हैं। इस तरह उनमें यह भाव जगाया जाता है कि वो ना केवल पौधरोपण करें बल्कि पेड़ों की हिफाजत भी करें।
मस्ती की पाठशाला
गर्मी की छुट्टियों में कई बार अभिभावक सिर्फ इस वजह से परेशान हो जाते हैं कि बच्चे को क्या क्या सिखाया जाए। अभिभावकों की इस टेंशन का एक मात्र समाधान है राष्ट्रीय बाल भवन। समर फिएस्टा के तहत 5 से 10 साल के बच्चों के लिए यहां सीखने को बहुत कुछ है। 10 हजार से ज्यादा बच्चों को यहां शिल्प गांव में हथकरघा
के बारे में भी प्रशिक्षित किया जाएगा। इसके अलावा बंबू क्राफ्ट, मिट्टी के बर्तन बनाना, मेंहदी डिजाइनिंग सिखाया जाएगा। साथ ही चारकोल स्केच बनाना, वाटर कलर से रंगों की दुनिया भी सजा सकते हैं। आदी मानव की कहानी सुनाने के साथ ही पहली बार करेंसी की कहानी भी बच्चों को सुनाई जाएगी। बच्चे दिव्यांगों का मर्म
समझें, इसके लिए पहली बार एक अनूठी पहल की गई है। ब्लाइंड वॉक कराया जाएगा। बच्चों को प्राकृतिक चीजों से संगीत बनाने का गुर भी सीख सकेंगे। प्रकृति के संरक्षण की बाबत भी बच्चों को जागरूक किया जाएगा। प्रत्येक शनिवार को 2500 बच्चे सामूहिक नृत्य, संगीत पेश करेंगे।
मन के भावों को शब्दों में पिरोना
साहित्य..मन की भावनाओं को शब्दों के जरिए दुनिया के सामने रखना। बच्चे, उम्र में भले ही छोटे होते हैं लेकिन वो अपनी भावनाओं का इजहार करना चाहते हैं। यह ना केवल परिवार बल्कि खुद बच्चे के लिहाज से भी अच्छा है। बच्चा गद्य या पद्य शैली में अपनी भावनाओं का इजहार करे तो परिवार उसकी भावनाओं को बेहतर समझ सकता है। इसी भावना के साथ साहित्य कला अकादमी समर कैंप का आयोजन कर रही है। किस्सा ओ कलाम में बच्चों को लेखन के ना केवल प्रेरित किया जा रहा है बल्कि लेखन शैली भी सुधारी जा रही है। आयोजकों ने बताया कि इसमें बच्चों को अपने मन की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए गद्य या पद्य विधा को अपनाने एवं कागज पर शब्दों के जरिए लिखने को प्रोत्साहित किया जा रहा है। दिल्ली समेत एनसीआर के बच्चे इसमें शामिल हैं। हिंदी और अंग्रेजी में बच्चों को साहित्य का ज्ञान भी दिया जा रहा है। आयोजक कहते हैं कि समर कैंप का मकसद बच्चों का मानसिक विकास होता है। यदि बच्चा साहित्य विधा के जरिए अपनी भावनाओं का इजहार करता है तो यह समाज ही नहीं बल्कि साहित्य के लिहाज से भी बेहतर होगा।
मिलेंगे नाट्य संस्कार
आजकल बच्चे बहुत स्मार्ट हो गए हैं। उनकी नटखट अदाएं हर किसी का दिल जीत लेती हैं। यदि आपके बच्चे में थोड़ा सा भी नटखटपन है तो यहां राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में नाट्य संस्कारों में उसका पोषण कर सकते हैं। दरअसल संस्कार रंग टोली बच्चों को एक्टिंग का ककहरा सिखाएगी। इस टोली में एनएसडी के पूर्व और
वर्तमान छात्र शामिल हैं। पदाधिकारियों ने बताया कि 8 से 16 साल के बच्चों के लिए यह समर कैंप काफी लाभदायक होगा। दिल्ली में कुल नौ केंद्र बनाए गए हैं। जहां बच्चों को अभिनय सिखाया जाएगा। लेडी इरविन सीनियर सेकेंडरी स्कूल, लेडी इरविन प्राइमरी स्कूल, ग्रीन वे मार्डन सीनियर सेकेंडरी स्कूल, देव समाज मार्डन
स्कूल, भारती पब्लिक स्कूल, राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय, सेंट जेवियर हाईस्कूल, कैंब्रिज स्कूल जूनियर विंग नोएडा में एक्टिंग की वर्कशाप चलेगी। सुबह आठ बजे से दोपहर एक बजे तक क्लास चलेंगी। इसका मुख्य मकसद छात्रों को अभिनय के माध्यम से अपने आस पास घटित हो रही घटनाओं, मुद्दों का प्रतिकार,
समर्थन करना है।
समर फुटबाल कैंप
खेल ना सिर्फ शारीरिक विकास में सहायक होता है बल्कि बच्चे में इससे टीम भावना विकसित होती है। ऐसे में यदि आपका बच्चा खेलों के प्रति झुकाव रखता है तो यह समर कैंप कई मायनों में फायदेमंद साबित होगा। समर फुटबाल कैंप का आयोजन महरौली स्थित भाटी माइंस में किया जाएगा। जिसमें बच्चों को फुटबाल खेल की बारीकियां सिखाई जाती हैं ताकि वो भविष्य में इसे बतौर करियर चुन सकें। सुबह छह बजे से आठ बजे तक बच्चों को प्रशिक्षित किया जाएगा।