Accident on Roads : सड़क हादसों के लिए वाहनों की खराब सेहत भी जिम्मेदार
वाहनों के लिए फिटनेस जांच अनिवार्य है लेकिन इसका सख्ती से पालन नहीं होता। इसलिए देश के करीब-करीब सभी हिस्सों में खटारा वाहन सड़कों पर फर्राटा भरते सहज ही मिल जाएंगे। यही नहीं भारत में निर्मित कई कारें अंतरराष्ट्रीय क्रैश टेस्ट में फेल हो जाती हैं।
नई दिल्ली, जेनएएन। देश में हर साल होने वाले करीब साढ़े चार लाख हादसों में से दो फीसद से ज्यादा के लिए जर्जर व खटारा वाहन जिम्मेदार हैं। वाहनों के लिए फिटनेस जांच अनिवार्य है, लेकिन इसका सख्ती से पालन नहीं होता। इसलिए, देश के करीब-करीब सभी हिस्सों में खटारा वाहन सड़कों पर फर्राटा भरते सहज ही मिल जाएंगे। यही नहीं, भारत में निर्मित कई कारें अंतरराष्ट्रीय क्रैश टेस्ट में फेल हो जाती हैं।
एनसीएपी क्रैश टेस्ट :
अंतरराष्ट्रीय एनसीएपी क्रैश टेस्ट में वाहनों की सुरक्षा मानकों पर जांच की जाती है। इसमें दुर्घटना की स्थिति में वाहन व उसमें सवार लोगों को होने वाले नुकसान का आकलन किया जाता है। आश्चर्य है कि देश में सबसे ज्यादा बिकने वाली बजट कारें भी इसमें फेल हो जाती हैं।
फिटनेस प्रणाम पत्र :
इस प्रक्रिया में वाहनों के इंजन, स्पीड, स्पीड गवर्नर पिन, प्रदूषण, वजन, सस्पेंशन, लाइट बीम, पेंट, इंडीकेटर, बैक लाइट, हॉर्न व रेट्रो रिफलेक्टिव टेप आदि को परखा जाता है। माना जाता है कि इन सबके दुरुस्त रहने पर हादसे की आशंका कम हो जाती है। हालांकि, ऐसे भी मामले सामने आते रहे हैं, जिनमें बिना जांच के ही वाहनों के फिटनेस प्रमाण पत्र जारी कर दिए गए।
फिटनेस जांच :
कुछ प्रदेशों में नए वाहनों के लिए आठ साल तक हर दो साल पर फिटनेस जांच अनिवार्य है। इसके बाद हर साल फिटनेस प्रमाण पत्र लेना होगा। हालांकि, अलग-अलग राज्यों में इस नियम में अंतर हो सकता है। बड़ी संख्या में वाहन बिना फिटनेस जांच के ही फर्राटा भर रहे होते हैं। जानकारों के अनुसार, इसके दो कारण हैं- एक तो फिटनेस जांच की प्रक्रिया थोड़ी जटिल है और दूसरा वाहन मालिक इसे अनावश्यक बोझ समझते हैं। ऐसे में वे वाहन भी सड़कों पर फर्राटा भर रहे होते हैं, जो फिटनेस जांच की प्रक्रिया में फेल हो जाएं।
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