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    मोदी की तरह कभी बेची थी चाय, अब बन गए MCD के पार्षद, पढ़ें पूरी कहानी

    By JP YadavEdited By:
    Updated: Tue, 02 May 2017 02:50 PM (IST)

    अवतार सिंह 1980 में एक होटल में वेटर की नौकरी करते थे। नौकरी छूट जाने के बाद अजमेरी गेट पर पीपल के पेड़ तले चाय की दुकान लगानी शुरू कर दी।

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    मोदी की तरह कभी बेची थी चाय, अब बन गए MCD के पार्षद, पढ़ें पूरी कहानी

    नई दिल्ली (जेएनएन)। जीवन का सच्चा संघर्ष आदमी को जमीन से फलक पर बिठा देता है। इसकी मिसाल पेश की है दिल्ली नगर निगम के नवनियुक्त पार्षद अवतार सिंह ने। जिंदगी के कठिन दौर में अवतार सिंह ने भी नरेंद्र मोदी की तरह चाय बेची। इससे पहले होटल में वेटर तक की नौकरी की। बावजूद इसके मजबूत इरादों ने उन्हें झुकने नहीं दिया। 

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    बता दें कि 23 अप्रैल को हुए चुनाव में अवतार सिंह दिल्ली की पॉश मानी जाने वाली सिविल लाइंस म्यूनिसिपल वॉर्ड के पार्षद चुने गए हैं। अजमेरी गेट की तंग गलियों में रहने वाले सिख नेता अब पॉश इलाके का प्रतिनिधित्व करेंगे।

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    बकौल अवतार सिंह मैं 1980 में एक होटल में वेटर की नौकरी करते थे। नौकरी छूट जाने के बाद अजमेरी गेट पर पीपल के पेड़ तले चाय की दुकान लगानी शुरू कर दी।

    उन्होंने बताया कि चाय बेचना कोई छोटा काम नहीं है। चाय की दुकान पर मुझे राजनीतिक की जानकारी मिलती थी। इसी दुकान पर कई दोस्त बनाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह ही सिंह भी आरएसएस से गहराई से जुड़े हुए हैं।

    अवतार सिंह देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को अपना आदर्श मानते हैं। अवतार सिंह आज भी वॉर्ड में अपने ग्रे रंग के स्कूटर के साथ ही घूमते हैं और लोगों की मदद की पूरी कोशिश करते हैं।

    जानें अवतार सिंह के संघर्ष की कहानी

    अवतार सिंह की मानें तो 1994 में उन्हें जेल हो गई थी। वह क्षेत्र में रामलीला का आयोजन करवा रहे थे जब एक धार्मिक पोस्टर को लेकर उन्हें तिहाड़ जेल भेजा गया। जेल में ही मेरा संपर्क कुछ राजनेताओं से हुआ और उनके विचारों ने मुझे प्रभावित किया।

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    जेल जाने को दौरान अवतार के पास बच्चों की परवरिश के लिए पैसे नहीं थे। ऐसे मुश्किल समय में पत्नी को चाय की दुकान पर बैठना पड़ा। हैरानी की बात है कि आज फिर अवतार अपने 20 यार्ड के छोटे से घर में ही रहते हैं।

    आर्थिक दिक्कतों ने छुड़वाया स्कूल

    अवतार के मुताबिक, उनका जीवन संघर्षों में बीता है। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। पिता की मौत के बाद स्कूल छोड़ना पड़ा था। घर चलाने के लिए कई छोटे-छोटे काम करने पड़े। इसी क्रम में चाय की दुकान लगानी पड़ी।