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मिड-डे मील : 90% गुणवत्ता की कसौटी पर खरे नहीं उतरे दिल्ली में

स्कूल चाहे किसी भी सरकार या स्थानीय निकाय के हों मिड-डे मील में छिपकली और काकरोच मिलने की एक घटना की पूरी तरह से तहकीकात होती नहीं कि उससे पहले ही नया मामला सामने आ जाता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 19 Jul 2018 04:39 PM (IST)Updated: Thu, 19 Jul 2018 04:40 PM (IST)
मिड-डे मील : 90% गुणवत्ता की कसौटी पर खरे नहीं उतरे दिल्ली में
मिड-डे मील : 90% गुणवत्ता की कसौटी पर खरे नहीं उतरे दिल्ली में

बाहरी दिल्ली [नवीन गौतम]। 15 अगस्त, 1995 को जब राज्य सरकार और केंद्र सरकार के सामूहिक प्रयास से देश के तमाम प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों को भरपेट भोजन के लिए मिड-डे मील योजना की शुरुआत की गई, तब बच्चों को तीन किलो गेहूं या चावल दिए जाने की व्यवस्था की गई। बाद में यह कहते हुए इसमें संशोधन किया गया कि इससे बच्चों को लाभ मिलने की बजाय उनके परिवार वालों को फायदा हो रहा है। इसलिए सितंबर 2004 से बच्चों को स्कूल में पका-पकाया खाना दिया जाने लगा।

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इस उद्देश्य के साथ कि बच्चों को पौष्टिक आहार मिल सके, लेकिन शुरुआत से ही यह योजना हर राज्य में अपनी गुणवत्ता को लेकर सवालों के घेरे में है। आज तक मिड-डे मील को लेकर नजीर पेश करने वाला वाकया सामने नहीं आया। जबकि खाने में छिपकली, कॉकरोच जैसे जहरीले जीव जरूर निकलते रहे हैं और बच्चे बीमार पड़े हैं। खाने की गुणवत्ता हमेशा सेहत से खिलवाड़ ही करती रही है। स्कूल चाहे किसी भी सरकार या स्थानीय निकाय के हों मिड-डे मील में छिपकली और काकरोच मिलने की एक घटना की पूरी तरह से तहकीकात होती नहीं कि उससे पहले ही नया मामला सामने आ जाता है।

अधिकारियों से लेकर मंत्री, मुख्यमंत्री तक दौरा करते हैं, खूब बयानबाजी होती है, लेकिन नतीजा, ढाक के तीन पात। सिर्फ दिल्ली में पिछले कई सालों के दौरान मिड-डे मील के जितने भी नमूने लिए गए उनमें से 90 फीसद गुणवत्ता की कसौटी पर खरे नहीं उतरे। बावजूद इसके इसमें सुधार करने की कोशिश तक नहीं की जा रही है। इससे एक बात तो साफ है कि यह महज कुछ व्यक्तियों की लापरवाही नहीं है, बल्कि इस बात का परिणाम है कि बच्चों के लिए चलाए जाने वाली इस योजना की जिम्मेदारी लेने वाले संगठन, संसाधन और निगरानी बेहद खस्ताहाल और पूरी तरह से ध्वस्त हैं।

जर्जर भवन, हादसों को निमंत्रण

फरीदाबाद के सेक्टर-7 में जिस भवन में मिड डे मील तैयार किया जा जाता है वह काफी पुराना और जर्जर है। यहां कभी भी कोई हादसा हो सकता है। पिछले दिनों केंद्रीय राज्य मंत्री और स्थानीय सांसद कृष्णपाल गुर्जर की अध्यक्षता में हुई जिला निगरानी समिति की मासिक बैठक में जिला उपायुक्त अतुल कुमार ने इस ओर ध्यान इंगित किया था और जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी सुनीता पंवार को इस बाबत उचित कार्रवाई के निर्देश भी दिए हैं। लेकिन इस पर अमल कब होगा कहना मुश्किल है।

मिड-डे मील का भोजन मानकों के अनुरूप ही परोसा जा रहा है। बनाने वाले बर्तनों से लेकर परोसे जाने बर्तनों की शुद्धता और खाद्य सामग्री पर पूरी निगरानी रखी जाती है और औचक निरीक्षण भी किया जाता है, यही वजह है कि पिछले एक साल में कोई शिकायत नहीं आई है। जहां तक भवन की बात है, वो हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण का है और हमने इस बारे में उच्चाधिकारियों को पत्र लिखा है।

सुनीता पंवार, जिला मौलिक शिक्षा

अधिकारी, फरीदाबाद  


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