दिल्ली के द्वारका में कैसे बुझेगी प्यास, इस वजह से भूजल स्तर जा रहा नीचे
पर्यावरणविद दीवान सिंह बताते हैं कि द्वारका इलाके में अभी भी 40 के करीब जोहड़ अस्तित्व में हैं लेकिन ये निष्क्रिय जोहड़ डीडीए की लापरवाही व उदासीनता को साफ-साफ बयां कर रहे हैं। इन जोहड़ों में बरसात के पानी जाने का कोई साधन नहीं बचा है।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। जल संरक्षण आज के समय की जरूरत बन गई है। सूख रहे जोहड़, बढ़ रही निर्माण की गति ने पर्यावरण को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। साथ ही विभागीय लापरवाही सबसे बड़ा नासूर बनकर उभर रहा है। ऐसे में अगर अभी ध्यान नहीं दिया गया तो आनेवाले समय में पानी का संकट चहुंओर दिखाई देगा। उपनगरी द्वारका की बात करें तो 22 गांवों की जमीन पर बसी उपनगरी में पहले 50 के करीब जोहड़ हुआ करते थे। यहां का जमीनी जल स्तर काफी उपर था और मीठे पानी से खेती हुआ करती थी। जब से डीडीए ने जमीन के अधिग्रहण की शुरुआत की उसी समय से जोहड़ों के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगने शुरू हो गये और अब हालत यह है कि जोहड़ों के नाम पर अब सिर्फ जमीनें दिखाई देती हैं।
पर्यावरणविद दीवान सिंह बताते हैं कि द्वारका इलाके में अभी भी 40 के करीब जोहड़ अस्तित्व में हैं लेकिन ये निष्क्रिय जोहड़ डीडीए की लापरवाही व उदासीनता को साफ-साफ बयां कर रहे हैं। इन जोहड़ों में बरसात के पानी जाने का कोई साधन नहीं बचा है। परिणामस्वरूप जहां पहले ये जोहड़ पानी से आबाद रहते थे अब निष्क्रिय होकर अपनी लाचारी बयां कर रहे हैं। हालत यह है कि अब पूरी उपनगरी में सेक्टर 23 में स्थित जोहड़ स्थानीय लोगों की मेहनत से आबाद रहते हैं। जोहड़ के आबाद होने और नहीं होने में यह फर्क है कि द्वारका सेक्टर 23 में आबाद जोहड़ के आसपास 70 से 80 फीट पर आपको पानी मिल जाएगा वहीं जहां जोहड़ आबाद नहीं हैं वहां पर 200 फीट के बाद पानी मिलता है। उन्होंने कहा कि जोहड़ों के जीर्णोंद्धार की परिभाषा विभागों ने अलग ही बना रखी है।
वे जोहड़ के चारो ओर चारदीवारी बनाकर एक बोर्ड लगा देते हैं कि यहां जोहड़ है। लेकिन इस जाेहड़ में साफ पानी कैसे आएगा इसकी व्यवस्था नहीं की जाती है। ऐसे में कैसे जल संरक्षण मुहिम का बल मिलेगा। उन्होंने कहा कि हर वर्ष जोहड़ से मिट्टी निकालने व उसका रखरखाव होना चाहिए लेकिन यहां पर कुछ नहीं होता है। ऐसे में द्वारका के अधिकांश जोहड़ निष्क्रिय हो गए हैं। भूजल स्तर को बरकरार रखने के लिए वाटर रिचार्ज सबसे ज्यादा जरूरी होता है लेकिन यहां पर बड़ी-बड़ी इमारतें बनने के बाद बारिश का पानी जमीन के अंदर पहुंच ही नहीं रहा है।
बारिश का पानी नाली के जरिये ड्रेन में जा रहा जिससे द्वारका के भूजल स्तर बढ़ोतरी की आस भी खत्म हो गई। दीवान सिंह ने कहा कि पहले के मुकाबले जोहड़ को जीवित रखना आसान हो गया है। जोहड़ के आसपास के इलाके से गुजर रहे बरसाती नाले को जोहड़ से जोड़ दिया जाए तो बारिश का एक-एक बूंद पानी जोहड़ में जाएगा और देखते ही देखते सभी जोहड़ आबाद हो जाएंगे, लेकिन विभागीय लापरवाही के कारण ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है।
दो झीलों का हुआ निर्माण
निष्क्रिय जोहड़ों की सुध विकास एजेंसियां नहीं ले रही हैं, लेकिन इन सबके बीच द्वारका इलाके में दो झीलों के निर्माण ने जल संरक्षण की मुहिम को बल देने का कार्य किया है। एक झील सेक्टर पांच में दिल्ली विकास प्राधिकरण ने बनाया है तो वहीं एक झील का निर्माण दिल्ली जल बोर्ड ने सेक्टर 16 में किया है।
द्वारका सेक्टर 16 में सात एकड़ क्षेत्र में झील का निर्माण महज सात महीने में किया गया है। यहां पर पप्पनकला सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से दस मिलियन लीटर पानी प्रतिदिन दिया जा रहा है। इसका निर्माण सिटी आफ लेक योजना के तहत किया गया है। इस झील को बनाने में ढाई करोड़ रुपये की लागत आई है। झील के निर्माण से आनेवाले समय में भूमिगत जल स्तर में बढ़ोतरी होगी और इसका उपयोग भी किया जा सकेगा।
उधर, दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने द्वारका सेक्टर 5 में मृतप्राय झील को आबाद कर दिया है। डीडीए अधिकारियों ने बताया कि दो साल पहले तक पांच एकड़ की यह झील महज कागजों पर थी। यहां की जमीन समतल थी। इसके साढ़े तीन एकड़ क्षेत्र को गहरा कर झील का आकार दिया गया। शेष हिस्से पर घास और पेड़ पौधे लगा दिए गए।