Move to Jagran APP

Delhi Earthquake Zone: दरारों से झांकती जर्जर व्यवस्था, संकरी गलियों ने बढ़ाई DDA की चिंता

पुलिस दिल्ली विकास प्राधिकरण और नगर निगम के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को रिश्वत खिलाकर मनचाहे ढंग से इमारतें खड़ी कर ली गई हैं।

By Mangal YadavEdited By: Published: Thu, 06 Aug 2020 01:16 PM (IST)Updated: Thu, 06 Aug 2020 01:16 PM (IST)
Delhi Earthquake Zone: दरारों से झांकती जर्जर व्यवस्था, संकरी गलियों ने बढ़ाई DDA की चिंता
Delhi Earthquake Zone: दरारों से झांकती जर्जर व्यवस्था, संकरी गलियों ने बढ़ाई DDA की चिंता

नई दिल्ली। दिल्ली विकास प्राधिकरण ने हाल ही में 300 ऐसी इमारतों की सूची तैयार की है जो भूकंप के तेज झटके के लिहाज से बेहद खतरनाक है। व्यावसायिक इमारतों से लेकर ग्रुप हाउसिंग सोसायटी तक इस सूची में शामिल है। हैरानी की बात तो यह है कि वर्ष 2001 से पूर्व की बनी इन इमारतों का सुरक्षा ऑडिट तक नहीं कराई गई है। दरअसल दिल्ली में खतरनाक इमारतों की समस्या भ्रष्ट व्यवस्था का नतीजा है। जिन विभागों की ओर से इन्हें अदालत के निर्देश पर नोटिस जारी किए जाते हैं, उन्हीं के अधिकारी और कर्मचारी इन्हें खड़ा करवाते हैं। इसीलिए इन पर अमूमन बुलडोजर भी नहीं चलता। कुछ दिन की हाय तौबा के बाद वापस वही स्थिति बहाल होने लगती है।

loksabha election banner

भूकंप के लिहाज से दिल्ली में सबसे ज्यादा खतरा तो यमुना बेल्ट और अनधिकृत कॉलोनियों में है। यहां लाखों इमारतें बन चुकी हैं और किसी के भी निर्माण में न तो भवन उप नियमों का ध्यान रखा गया है और न ही नक्शा पास कराने सहित अन्य मानक अपनाए गए हैं। पुलिस, दिल्ली विकास प्राधिकरण और नगर निगम के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को रिश्वत खिलाकर मनचाहे ढंग से इमारतें खड़ी कर ली गई हैं। जब भी कभी रिक्टर स्केल पर अधिक तीव्रता वाला भूकंप आया तो यहां पर जानमाल का खासा नुकसान होने के आसार हैं।

पुरानी दिल्ली का भी कमोबेश यही हाल है। यहां के कटरे और संकरी गलियों को लेकर कई दशकों से यह चिंता जताई जाती रही है कि जोरदार भूकंप आने पर इस क्षेत्र में काफी भयावह मंजर देखने को मिल सकता है। लेकिन इस चिंता से अधिक कभी कुछ नहीं हुआ। कभी कभार यहां की पुरानी इमारतों में रेट्रो फिटिंग की बात आई भी तो इसलिए अमल में नहीं आई कि उसका खर्च कौन वहन करेगा। इस चक्कर में वहां के हालात आज भी यथावत ही हैं।

अदालत की सख्ती से जागे अधिकारी

लॉकडाउन के दौरान आए भूकंप के अनेक झटकों के बाद एक बार फिर से खतरनाक इमारतों पर कार्रवाई को लेकर कवायद शुरू हो गई है। अदालत की सख्ती के कारण डीडीए और नगर निगम ने ऐसी इमारतों को चिन्हित कर उन्हें नोटिस भेजने भी शुरू कर दिए हैं। डीडीए ने 2001 से पहले की बनी सभी इमारतों के अनिवार्य स्ट्रक्चरल ऑडिट की सार्वजनिक सूचना तक जारी कर दी है। इसमें कहा गया है कि इन इमारतों के मालिकों को किसी भी मान्यता प्राप्त सरकारी संस्था के स्ट्रक्चरल इंजीनियर से उसका सुरक्षा ऑडिट कराना होगा। इसमें देखा जाएगा कि वह इमारत कहां से कितनी मजबूत और कितनी कमजोर है। ऑडिट में इमारत की खामियां दूर करने के लिए जो सुझाव दिए जाएंगे, उन पर भी अमल करना अनिवार्य है।

इस सब पर आने वाला खर्च मालिक द्वारा ही वहन किया जाएगा। यह सारी प्रक्रिया छह माह में पूरी की जानी है और एक महीने के भीतर संबंधित डीडीए को इस आशय की सूचना भी देनी होगी। इस पर अमल नहीं करने पर इमारतों के मालिक पर जुर्माना लगाने सहित अन्य कानूनी कार्रवाई भी की जा सकती है। इस दिशा में डीडीए 300 इमारतों की सूची बना चुका है और 64 को नोटिस भी जारी कर चुका है।

सख्ती से लागू हों मानक

जो इमारतें बन चुकी हैं, जो कॉलोनियां बस चुकी हैं, उन्हें न छेड़ते हुए अगर आगे ऐसे निर्माण पर रोक लगा दी जाए तो वह भी पर्याप्त होगा। डीडीए और एमसीडी सीमांकन कर दे कि कहां के आगे कोई भी निर्माण प्रतिबंधित होगा। निर्माण कार्य के मानक भी सख्ती से लागू किए जाएं। अगर नई इमारतें भी भूकंप रोधी बनने लग जाएं तो इससे भी मौजूदा हालात में काफी सुधार हो सकता है।

कागजी खानापूर्ति से ज्यादा कुछ नहीं

अब सवाल यह है कि यह सारी प्रक्रिया कहां तक चलेगी? मेरा अनुभव कहता है कि जब तक अदालत इस पर थोड़ी बहुत सख्त है तभी तक सरकारी विभाग भी कागजी खानापूर्ति करते रहेंगे। इससे अधिक कुछ नहीं होगा। दिल्ली में तो ऐसी अनगिनत इमारतें हैं, सबको तोड़ा नहीं जा सकता, जुर्माना लगाना भी संभव नहीं है। ऐसा करने पर सबसे बड़ा सवाल तो यही खड़ा हो जाएगा कि इस तरह के हालात बने ही क्यों? किन विभागों और अधिकारियों की लापरवाही से खतरनाक इमारतों की संख्या बढ़ती गई? अगर अदालत का डंडा चलने पर सरकारी विभाग कार्रवाई करने को मजबूर हुए भी तो फिर राजनीतिक हस्तक्षेप आड़े आ जाएगा। वोट बैंक की राजनीति शुरू हो जाएगी। सैटेलाइट मैपिंग भी कराई जाती रही है, लेकिन कोई भी प्रयास, अंजाम तक नहीं पहुंचा। इसके पीछे बड़ी वजह व्यवस्था की खामियां ही है।

(दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के पूर्व उपाध्यक्ष बलविंदर कुमार से संवाददाता संजीव गुप्ता से बातचीत पर आधारित)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.