21 सिखों की हत्या पर 25 साल बाद सामने आया 'सच', सियासत गरमाई
DSGPC ने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह खिलाफ मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज कराने व सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया है। ...और पढ़ें

नई दिल्ली (जेएनएन)। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की आत्मकथा (द पीपल्स महाराजा) में आत्मसमर्पण करने वाले 21 सिखों की हत्या के दावे पर सियासत तेज हो गई है। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डीएसजीपीसी) ने उनके खिलाफ मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज कराने व सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया है।
कमेटी ने कहा कि पंजाब के मुख्यमंत्री को यह बताना चाहिए कि उन्होंने किसके दबाव में 25 वर्षों तक अपना मुंह बंद रखा। मुख्यमंत्री बनने के बाद पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक केपीएस गिल से उनकी मुलाकात पर भी दिल्ली के सिख नेताओं ने प्रश्न उठाया है।
उनका कहना है कि केपीएस गिल पर निर्दोष सिखों की हत्या कराने का आरोप है, इसलिए उनसे पंजाब के मुख्यमंत्री का मिलना अनुचित है।
इस मामले में कमेटी के पदाधिकारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मिलेंगे। डीएसजीपीसी के अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके और महासचिव मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि कैप्टन के हाथ बेगुनाह सिखों के कत्ल से रंगे हुए हैं।
उन्होंने स्वीकार किया है कि पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के कार्यकाल में आत्मसमर्पण करने वाले 21 सिखों की हत्या कर दी गई थी।
जीके ने कहा कि अमरिंदर ने बेशक कुबूलनामा करके अपनी आत्मा से बोझ उतार लिया है, परन्तु वह मारे गए सिखों के परिवारों को किस प्रकार आर्थिक सहायता व इंसाफ दिलवाएंगे, यह देखना अभी बाकी है।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के कुबूलनामे पर संज्ञान लेकर मामला दर्ज कराने की अपील की है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो कमेटी खुद मामला दर्ज कराएगी।
सिरसा ने कहा कि इतने वर्षो तक मौन रहने वाले अमरिंदर का अब बोलना उनके गुनाह को कम नहीं करता है। वह 2002 से 2007 तक पंजाब के मुख्यमंत्री रहे हैं।
इसके साथ ही बतौर सांसद व विधायक भी इस मामले को उठा सकते थे। उन्हें खुद आगे आकर दोषियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाना चाहिए।

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