पढ़िए एक दंगा पीड़िता का दर्द- पति, बेटे और भाइयों के शवों पर रजाई डाल अंतिम संस्कार
रुंधे गले से जगदीश कौर बताती हैं, परिवार वालों के शव तीन दिन तक घर में ही पड़े थे। मैंने आंखों से देखा था कि सज्जन सिंह की अगुवाई में कैसे कुछ लोग आतंक का माहौल बनाए हुए थे।
नई दिल्ली [सुशील गंभीर]। मुझे आज भी वह दिन नहीं भूलता। रह-रहकर आंखों के सामने मंजर आ जाता है...।मेरे पति, बेटे और भाइयों को ही घर में ही जिंदा जलाकर मार दिया गया था। अधजले शवों का संस्कार करने के भी पैसे नहीं थे। घर में बची रजाई और अन्य कपड़े शवों पर डालकर अंतिम संस्कार किया था। मैं ही जानती हूं कि मैंने कैसे जिंदगी काटी है। वर्ष 1984 के सिख विरोधी दंगों से जुड़े मामले की 34 साल पैरवी करने वालीं 80 वर्षीय जगदीश कौर इतना कहकर फफक पड़ीं।
जगदीश कौर ने कहा कि उनके कलेजे को ठंडक पहुंची हैं, लेकिन वह सज्जन कुमार को फांसी पर लटका देखना चाहती हैं। उस मंजर को नम आंखों से बयां करते हुए जगदीश कौर ने बताया कि उनके पति केहर सिंह, 18 वर्षीय बेटे गुरप्रीत सिंह और मामा के तीन लड़कों रघुविंदर सिंह, नरेंद्र पाल सिंह और कुलदीप सिंह को घर में ही जलाकर मार दिया गया था। उस दिन दोपहर के एक बजे थे। दिल्ली में दंगे हो रहे थे। मैं और मेरे पति व बेटा घर में छिपकर बैठे थे। अचानक दरवाजा खुला और भीड़ अंदर घुस आई।
गुरप्रीत, पति और मामा के बेटों को जलाकर मार डाला और घर को भी आग लगा दी। मैं किसी तरह बचकर घर से बाहर भागी, लेकिन चारों तरफ हिंसा और आग थी। किसी तरह एक हिंदू परिवार के यहां छिप कर खुद को और अपने दूसरे बच्चों को बचाया।
रुंधे गले से कौर बताती हैं, 'परिवार वालों के शव तीन दिन तक घर में ही पड़े थे। मैंने आंखों से देखा था कि सज्जन सिंह की अगुवाई में कैसे कुछ लोग आतंक का माहौल बनाए हुए थे।'
खिड़कियां और रजाई जलाकर किया अंतिम संस्कार जगदीश कौर ने बताया कि उनका सब कुछ लुट चुका था। खाने तक के पैसे नहीं थे और पति और बच्चों के अधजले शव आंखों के सामने पड़े थे, जिनका अंतिम संस्कार भी करना था। घर की खिड़किया तोड़कर और रजाई, कपड़ों को शवों पर डालकर अंतिम संस्कार किया था। उसी दिन ठान लिया था कि परिवार के परिवार तबाह करने वालों को सजा दिलानी है।
कर्ज लेकर दुपट्टे का व्यापार किया जगदीश कौर ने बताया कि उन्होंने खुद को बच्चों के लिए जिंदा रखा और उनके पालन पोषण के लिए कर्ज लेकर दुपट्टे बेचे। वह काफी समय तक अमृतसर में गुरुद्वारे में और मायके में रहीं।
आंखों के सामने पिता को जलते देखा
इस मामले की दूसरी मुख्य गवाह निरप्रीत कौर हैं, जो उस वक्त 16 साल की थीं और कॉलेज में पढ़ाई करती थीं। निरप्रीत कहती हैं, ' मैंने आंखों के सामने पिता निर्मल सिंह को जलते हुए देखा था। भीड़ ने पिताजी को बहुत मारा था। इसके बाद उन्हें जिंदा जला दिया गया था। घर में भी आग लगा दी गई थी। हमारे घर में कई सिख छिपे हुए थे और उन्हें भी बहुत मारा गया था।'