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IGNCA की 10 सदस्यीय टीम ने कोरोना काल में पांडुलिपियों-कलाकृतियों का संरक्षण किया शुरू

अप्रैल में ही इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आइजीएनसीए) की दस सदस्यीय टीम ने पांडुलिपियों कलाकृतियों के संरक्षण का कार्य शुरू कर दिया था। कोरोना के मामलों में उतार चढ़ाव के बावजूद संरक्षण का कार्य अनवरत जारी है। टीम 300 साल पुरानी अरुणाचल प्रदेश की पांडुलिपि संरक्षित कर चुकी है।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Tue, 24 Nov 2020 01:07 PM (IST)Updated: Tue, 24 Nov 2020 01:14 PM (IST)
IGNCA की 10 सदस्यीय टीम ने कोरोना काल में पांडुलिपियों-कलाकृतियों का संरक्षण किया शुरू
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के 10 सदस्यों की टीम ने पांडुलिपि को संरक्षण का काम शुरू किया है।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। कोविड-19 के चलते मार्च में दिल्ली में लॉकडाउन लगा। इसके बाद लॉकडाउन कई बार बढ़ता रहा, लेकिन इन सबके बीच अप्रैल में ही इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आइजीएनसीए) की दस सदस्यीय टीम ने पांडुलिपियों, कलाकृतियों के संरक्षण का कार्य शुरू कर दिया था। कोरोना के मामलों में उतार चढ़ाव के बावजूद संरक्षण का कार्य अनवरत जारी है। टीम 300 साल पुरानी अरुणाचल प्रदेश की पांडुलिपि संरक्षित कर चुकी है।

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संरक्षण विभाग के अध्यक्ष डॉ. अचल पांडया ने बताया कि 10 सदस्यीय संरक्षणवादियों की टीम है। चूंकि आइजीएनसीए परिसर बड़ा है, इसलिए शारीरिक दूरी का पालन आसान है। हालांकि एहतियात के तौर पर हफ्ते में दो बार ऑफिस सैनिटाइज किया जाता है। इसके अलावा मास्क पहनना अनिवार्य है। प्रवेश द्वार पर थर्मल स्क्री¨नग भी होती है। संरक्षण के लिए ऑर्गेनिक सॉलवेंट्स, राइस पेपर, नेचुरल पिगमेंट आदि की जरूरत होती है। टीम प्रख्यात कलाकार एलिजाबेथ सैस ब्रूनर की कलाकृतियों के संरक्षण में जुटी है। ब्रूनर करीब आधी सदी पहले भारत आई थीं।

ताड़ के पत्तों पर लेखन के संरक्षण की कोशिशकेंद्र ताड़ के पत्तों पर लेखन को संरक्षित करने के लिए विशेष प्रयास कर रहा है। कई सेमिनार भी आयोजित हुए हैं। पदाधिकारी बताते हैं कि भारत में पल्माइरा, श्रीतला समेत तीन तरह के ताड़ पाए जाते हैं। पल्माइरा पर सर्वाधिक लेखन मिलता है। दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा ताड़ के पत्तों पर लेखन हुआ। सबसे पहले पत्ते को तोड़कर छांव में सुखाया जाता था और फिर नम करने के लिए छाया में कई दिनों तक टांग कर रखा जाता था। इसके बाद पत्ते को बड़ी सावधानी से पत्थरों पर रगड़ा जाता।

बाद में नुकीले लोहे से पत्तों में छिद्र करके लिखा जाता था एवं इस पर कार्बन इंक को रगड़ा जाता था। इससे छिद्र में कार्बन भर जाता था और इस तरह लिखावट दिखने लगती थी। पत्ते को कीड़े से बचाने और कार्बन न छूटे, इसके लिए धतूरे का दूध पत्तों पर लगाया जाता था।

केंद्र द्वारा किए गए संरक्षण कार्य 

- 300 साल पुरानी अरुणाचल प्रदेश की पांडुलिपि।

- राष्ट्रपति भवन की पेंटिंग 

- हंगरी-भारतीय कलाकार एलिजाबेथ सैस ब्रूनर की कलाकृतियां।

- पहाड़ी मिनिएचर।

- बृहद्देशी ग्रंथ

- भारतीय शास्त्रीय संगीत आधारित ग्रंथ।

- पर्सियन साहित्यकार निजामी गंजवी की कलाकृति का संरक्षण।

- एक पर्सियन महिला की कलाकृति।

- भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की एक कलाकृति। 

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