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Delhi News: कुतुबमीनार परिसर में नमाज पढ़ने पर लगी रोक, ASI ने मांगा था अनुमति पत्र, लेकिन नहीं दे पाए कोई दस्तावेज

Qutub Minar Hindi News Delhi कुतुबमीनार परिसर में स्थित मुगलकालीन मस्जिद में नमाज पढ़ना बंद कराया गया है। एएसआई ने नमाज पढ़ने के लिए अनुमति पत्र मांगा था लेकिन यह किसी के पास नहीं मिला था जिस कारण यह फैसला लिया गया।

By Geetarjun GautamEdited By: Published: Sun, 22 May 2022 09:15 PM (IST)Updated: Mon, 23 May 2022 04:42 AM (IST)
Delhi News: कुतुबमीनार परिसर में नमाज पढ़ने पर लगी रोक, ASI ने मांगा था अनुमति पत्र, लेकिन नहीं दे पाए कोई दस्तावेज
कुतुबमीनार परिसर में नमाज पढ़ने पर लगी रोक

नई दिल्ली [वीके शुक्ला]। अब कुतुबमीनार परिसर में नमाज नहीं हो सकेगी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने कुतुब्रमीनार परिसर में नमाज पर प्रतिबंध लगा दिया है। पिछले चार दिन से नमाज बंद है। एएसआइ ने यहां पर नमाज पढ़ने वालों से अनुमति पत्र या इससे संबंधित अन्य कोई दस्तावेज मांगा था, जिसे वे लोग नहीं दे पाए। इसके बाद यहां स्थित मुगलकालीन मस्जिद में नमाज पढ़ना बंद कराया गया है। इस मस्जिद के बगल में ही कुतुबमीनार और कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद है, इन्हें लेकर विवाद बढ़ने पर एएसआइ ने यह लिया फैसला है।

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सूत्रों का कहना है कि शनिवार को कुतुबमीनार परिसर में निरीक्षण करने गए केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के सचिव गोविंद मोहन ने भी एएसआइ को चेताया है कि वहां न ही पूजा-पाठ और न ही नमाज पढ़ने की अनुमति दी जाए। हालांकि इससे पहले ही एएसआइ इस पर रोक लगा चुका है।

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कुतुबमीनार के अस्तित्व को लेकर भी विवादमहरौली स्थित कुतुबमीनार के अस्तित्व को लेकर विवाद हो रहा है। पुरातत्वविदों और इतिहासकारों का एक वर्ग इसे चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के समय का यानी आज से करीब 1600 साल पहले का मान रहा है, जबकि दूसरा वर्ग कह रहा है कि इसे कुतुबद्दीन ऐबक ने 1192 में बनवाया था।

यहां स्थित कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद पर लगीं मूर्तियों को लेकर भी विवाद बढ़ गया है। कुछ दिन पहले ही हिंदू संगठन वहां हनुमान चालीसा पढ़ने जाने के लिए प्रयास कर चुके हैं। मगर उन्हें कुतुबमीनार परिसर में नहीं घुसने दिया गया। हिंदू संगठन मांग कर रहे हैं कि मस्जिद में मूर्तियां लगी हैं तो उन्हें वहां पूजा-पाठ करने की अनुमति दी जाए।

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नमाज की अनुमति कब दी गई, किसी को नहीं पता

कुतुबमीनार में 2006 के करीब इंजार्च रहे सेवानिवृत्त अधिकारी के के राजदान कहते हैं कि इस मस्जिद में नमाज पढ़ने की अनुमति कब दी गई, यह जानकारी उन्हें नहीं है। उस समय उन्होंने वहां के इमाम से पूछा था कि अगर उनके पास नमाज पढ़ने की अनुमति का कोई आदेश है तो दिखाएं, मगर वे कोई अनुमति पत्र दिखा नहीं पाए। राजदान ने बताया कि उस समय मस्जिद में पांच से सात लोग नमाज पढ़ने आते थे, मगर धीरे-धीरे यह संख्या 2010 तक 40 के करीब पहुंच गई थी।

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उस समय एएसआइ के स्मारक जमाली कमाली में कुछ तत्वों ने जबरन नमाज पढ़ने का प्रयास किया था। विवाद बढ़ जाने पर उस समय कुतुबमीनार में भी नमाज को बंद करा दिया गया था। उसके कुछ समय बाद यहां पर फिर से नमाज शुरू हो गई थी।

अंग्रेज पुरातत्वविद पेज ने कराया था संरक्षण

कुतुबमीनार परिसर में घुसते ही बाईं ओर एक छोटी सी मस्जिद है, जिसमें एक इबादतखाना व तीन कमरे हैं। उनके ऊपर गुंबद बने हैं। इसकी बनावट से ऐसा माना जा रहा है कि यह उत्तर मुगलकालीन है। उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ में यह बहुत ही जर्जर हालत में थी, जिसका तत्कालीन अंग्रेज अधीक्षण पुरातत्वविद पेज ने संरक्षण कार्य कराया था।

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इसी के साथ कुतुबमीनार परिसर की दीवार से मिलते हुए कमरे बने हैं। जहां पर बाहर से आकर यहां आने वाले लोग ठहरते थे। इसी मस्जिद की उत्तर दिशा में एक बगीचा है। इसे चारबाग पद्धति के आधार पर बनवाया गया है। इस पूरे परिसर को देख कर ऐसा लगता है कि मुगल मस्जिद और यह बगीचा एक ही समय बनवाया गया है।


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