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दत्तोपंत ठेंगड़ी की थी विश्वव्यापी दृष्टि: मोहन भागवत

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत ने भारतीय मजदू

By JagranEdited By: Published: Sat, 10 Nov 2018 08:41 PM (IST)Updated: Sat, 10 Nov 2018 08:41 PM (IST)
दत्तोपंत ठेंगड़ी की थी विश्वव्यापी दृष्टि: मोहन भागवत
दत्तोपंत ठेंगड़ी की थी विश्वव्यापी दृष्टि: मोहन भागवत

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत ने भारतीय मजदूर संघ, स्वदेशी जागरण मंच व भारतीय किसान संघ के संस्थापक दत्तोपंत ठेंगड़ी की दृष्टि को विश्वव्यापी बताया। वह ठेंगड़ी के जन्मदिवस पर डॉ. अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय केंद्र में आयोजित स्मृति व्याख्यानमाला को संबोधित कर रहे थे।

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उन्होंने कहा कि ठेंगड़ी किसी खास जन, भूमि व समय-विषय के लिए नहीं थे। इसलिए सनातन धर्म आधारित उनकी दृष्टि को आज देश-विदेश के लोग ग्रहण कर रहे हैं। उनके विचार किसी दूसरी विचारधारा के विरोध में नहीं, बल्कि उसके पूरक के तौर पर हैं। उन्होंने मा‌र्क्स का अध्ययन किया और जो बातें सही लगीं, उन्हें सार्वजनिक मंच पर रखने में संकोच नहीं किया। इसी तरह उनके प्रतिपादन में खलील जिब्रान की कविताएं, पैगंबर के जीवन के प्रसंग, बुद्ध की कहानियां व चारू मजूमदार आते हैं। 'देश के लिए करेंगे काम, काम का लेंगे पूरा दाम।' इस दृष्टि को चीन तक में अपनाया गया। वह तत्कालीन स्वार्थ क्या, तत्कालीन हित भी नहीं देखते थे।

उन्होंने कहा कि ठेंगड़ी की दृष्टि एक अविरोधी व सम समावेशी रही है, जिसने उस समय मजदूर, किसान, छात्र व कला के क्षेत्र में प्रचलित अन्य विचारों का विरोध नहीं किया, बल्कि उन्हें पूर्ण रूप प्रदान किया। इसका परिणाम है कि अलग-अलग विचारधारा वाले मजदूर संगठन आज मजदूरों के हित में एक साथ खड़े हैं। यह तभी संभव हुआ, जब ठेंगड़ी ने भारतीय मजदूर संगठन को खड़ा किया। उनकी दृष्टि की एक विशेषता यह रही कि वह सबको साथ लेकर चलते थे। दूसरे विचारों में कोई अच्छाई है तो उसे स्वीकार किया, नहीं तो उसकी कमियों को दूर किया।

वह अतिवादी नहीं, बल्कि मध्यमार्गी पर चले। इसमें सब जुड़ते हैं। शाश्वत पकड़कर उनका चिंतन चला। उन्होंने वर्ष-1989 में ही कह दिया था कि वर्ष 2000 में मजदूरों के बीच लहरा रहे लाल झंडे भगवा हो जाएंगे और यही हुआ। भागवत ने कहा कि सारी दुनिया ठोकरें खाकर अब उसी सोच पर आ रही है, लेकिन हमें विश्व विजेता नहीं, बल्कि वैश्विक सोच में परिवर्तन लाने वाला बनना है। यह तभी होगा, जब देश में स्वालंबी संगठन सुदृढ़ होंगे।


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