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देश के इस एक्सपायरी पुल पर हर दिन गुजरती हैं 150 से ज्‍यादा ट्रेनें, पढ़िए- यह रोचक स्टोरी

लोहे का पुराना पुल से रोजाना डेढ़ सौ से ज्यादा ट्रेनें और मालगाड़ियां गुजरती हैं पुराना व जर्जर हो जाने के कारण इससे ट्रेनें बेहद धीमी गति से गुजरती हैं।

By Prateek KumarEdited By: Published: Mon, 19 Aug 2019 12:47 PM (IST)Updated: Mon, 19 Aug 2019 03:11 PM (IST)
देश के इस एक्सपायरी पुल पर हर दिन गुजरती हैं 150 से ज्‍यादा ट्रेनें, पढ़िए- यह रोचक स्टोरी
देश के इस एक्सपायरी पुल पर हर दिन गुजरती हैं 150 से ज्‍यादा ट्रेनें, पढ़िए- यह रोचक स्टोरी

नई दिल्ली (संतोष कुमार सिंह)। अपनी आयु पूरी करने के बाद भी यमुना पर बना पुराना लोहा पुल राजधानी दिल्ली में रेल व सड़क मार्ग से आवागमन का मुख्य साधन है। 150 साल से ज्यादा पुराने इस पुल के माध्यम से पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन शाहदरा के रास्ते गाजियाबाद से जुड़ती है। इससे रोजाना डेढ़ सौ से ज्यादा ट्रेनें और मालगाड़ियां गुजरती हैं पुराना व जर्जर हो जाने के कारण इससे ट्रेनें बेहद धीमी गति से गुजरती हैं। इस पुल पर रेल लाइन के नीचे सड़क मार्ग है। यमुना नदी में बढ़ते जलस्‍तर के कारण प्रशासन ने एहतियातन तौर पर लोहे के पुल को बंद कर दिया गया है। प्रशासन ने लोगों की सुरक्षा के लिए लोहे के पुल से आवागमन को बंद कर दिया है।
 

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अंग्रेजों ने वर्ष 1866 में किया था इसका निर्माण
दिल्ली को कोलकाता से जोड़ने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने ईस्ट इंडिया रेलवे द्वारा वर्ष 1866 में 16,16,335 पौंड की लागत से इस पुल को बनवाया था। इस समय एक पौंड की कीमत 90.13 रुपया है। इस हिसाब से इसकी लागत भारतीय मुद्रा में करीब साढे़ 14 करोड़ रुपये होगी। उस समय सिर्फ एक लाइन (जिसे नॉर्थ लाइन कहते हैं) बनी थी। उसके बाद 1913 में 14,24,900 पौंड (वर्तमान में करीब 13 करोड़ रुपये) मूल्य की लागत से दूसरी लाइन (साउथ लाइन) बनाई गई। इसमें 202.5 फीट के 12 स्पैन तथा अंतिम दो स्पैन 34.5 फीट के हैं।

इसकी लंबाई 700 मीटर
इसकी लंबाई 700 मीटर है। इसकी क्षमता बढ़ाने के लिए ब्रेवेट एंड कंपनी (इंडिया) लिमिटेड ने वर्ष 1933-34 में 23,31,396 पौंड (वर्तमान में लगभग 21 करोड़ रुपये) की लागत से इस पुल के स्टील गार्डर को बदला था। पुल का ढांचा ब्रिटेन में तैयार करने के बाद इसे यहां लाकर स्थापित किया गया था।

बाढ़ को ध्यान में रखकर तैयार की गई है डिजाइन
इस पुल का डिजाइन यमुना नदी में आने वाली बाढ़ को ध्यान में रखकर तैयार की गई थी। उस समय खतरे के निशान का स्तर 672 फीट माना गया था। इसमें कुल 11 पिलर हैं तथा इन सभी के फाउंडेशन का स्तर अलग-अलग है। सबसे निचला फाउंडेशन (पिलर नंबर छह का) 615 फीट पर है।

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