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10 दिन तक 'रावण' की भूमिका में रहता है दिल्ली पुलिस का यह हेड कांस्टेबल, पढ़िए रोचक स्टोरी

दिल्ली पुलिस में हेड कांस्टेबल आलोक कुमार रामलीलाओं में रावण की भूमिका निभाते हैं। शरीर से भारी भरकम दिखने वाले आलोक ने अपनी मूछे भी रावण की तरह रखी हुई हैं।

By Mangal YadavEdited By: Published: Fri, 20 Sep 2019 07:36 PM (IST)Updated: Sun, 22 Sep 2019 03:03 PM (IST)
10 दिन तक 'रावण' की भूमिका में रहता है दिल्ली पुलिस का यह हेड कांस्टेबल, पढ़िए रोचक स्टोरी
10 दिन तक 'रावण' की भूमिका में रहता है दिल्ली पुलिस का यह हेड कांस्टेबल, पढ़िए रोचक स्टोरी

नई दिल्ली[शुजाउद्दीन]। सीलमपुर के एसीपी (अतिरिक्त पुलिस आयुक्त) कार्यालय में "रावण' को देखकर हर कोई दंग रह जाता है। वो भी तब जब रावण पुलिस की वर्दी में खड़ा हो। लेकिन यह रावण रामायण वाला रावण नहीं, जो व्यक्ति एक बार उस रावण से बात करता है तो वह उसी का होकर रह जाता है।

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दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल आलोक कुमार (उम्र 50) रामलीलाओं में रावण की भूमिका निभाते हैं। शरीर से भारी भरकम दिखने वाले आलोक ने अपनी मूछे भी रावण की तरह रखी हुई हैं। आलोक प्रताप भाग में होने वाली रामलीला में रावण का किरदार निभाते हैं, वह हरियाणा के रेवाड़ी में भी होने वाली रामलीला में रावण की भूमिका निभा चुके हैं।

आलोक ने बताया कि वह भले ही पुलिस में हेड कांस्टेबल हैं, लेकिन उनके अंदर भी एक कलाकार है। जो दशहरे के समय बाहर आता है। रामलीला में जो संवाद रावण के होते हैं, वह उन्हें बिना पढ़े याद हैं। जिस वक्त वह रावण का अभिनय करते हैं, तब वह पूरी तरह से रावण के किरदार में खो जाते हैं। उन्होंने बताया कि वह अपनी मूछो पर काफी पैसा खर्च करते हैं, क्योंकि उनकी मूछे ही उनकी पहचान है। रामलीला के चक्कर में कई बार उन्हें विभाग से छुट्टी लेनी पड़ती है।

छह साल तक घरों में डाला है अखबार, जेब में नहीं होते थे 50 पैसे

आलोक ने बताया कि छठी कक्षा से लेकर 12वीं कक्षा तक उन्होंने लोगों के घरों में अखबार डालने का काम किया है। शक्ति नगर, रुप नगर, कमला नगर और घंटा घर के इलाके में उन्होंने अखबार घरों में डाले हैं। साइकिल से तड़के अखबार डालते थे और उसके बाद स्कूल में पढ़ाई करने के लिए जाते। आलोक बताते हैं की पढ़ाई के दौरान उन्हें नींद आ जाती थी। 

30 रुपये मिला था पहला वेतन

जीवन में पहली कमाई 30 रुपये उन्हें मिली, उस वेतन को उन्होंने घर जाकर अपने पिता के हाथ में रख दिया।पिता ने खुश होकर 10 रुपये उन्हें सौंपे और 20 रुपये घर के खर्च के लिए अपने पास रख लिए। आलोक ने बताया कि एक वक्त ऐसा भी था जब उनकी जेब में 50 पैसे नहीं होते थे। कड़ाके की सर्दियों में भी वह साइकिल से कांपते हुए लोगों के घरों में अखबार देने जाते थे। उन दिनों में 15 रुपये में चमड़े के चमड़े के ग्लव्स मिलते थे, लेकिन उनके पास इसे खरीदने तक के पैसे नहीं थे। बेटे को ठंड न लगे, इसके लिए मां ऊन के ग्लव्स बनाकर आलोक को देती थीं। आलोक ने बताया की कई बार अखबार न पहुंचने पर लोग अभद्र व्यवहार करते थे, कुछ लोग उन्हें प्यार भी करते थे।

गांधी नगर के सरकारी स्कूल से हुई पढ़ाई की शुरुआत

आलोक ने बताया कि उनका जन्म गांधी नगर में हुआ है। वह पिता शंभू दयाल, मां और तीन भाई और दो बहनों के साथ रहते थे। वह तीसरी कक्षा तक आर्य समाज स्कूल में पढ़े हैं, दस साल तक परिवार गांधी नगर में रहा और उसके बाद राणा प्रताप बाग में जाकर बस गया। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती कॉलेज से बीए की हुई है। आलोक ने बताया की पढ़ाई का सारा खर्च उन्होंने खुद कड़ी मेहनत करके उठाया, घर वालों से मदद नहीं ली।

ऊंचाई कम कहकर सिपाही के पद से अयोग्य कह दिया था

आलोक ने बताया कि वह बचपन से ही परिश्रमी रहे हैं, कॉलेज समय पर दिल्ली पुलिस में सिपाही के पद के लिए भर्ती निकली। उन्होंने घर वालों को बिना बताए पद के लिए फॉर्म भर दिया। फिजिकल टेस्ट में पास हो गए, लेकिन ऊंचाई नापने वाले पुलिसकर्मियों ने उनसे कहा कि पुलिस ने जो ऊंचाई निर्धारित की हुई है, उनकी ऊंचाई उससे कम है। उन्होंने सिपाही पद के लिए अयोग्य कहकर उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया।

आलोक ने हार नहीं मानी और संबंधित अधिकारियों से अपील और जब दोबारा से उनकी ऊंचाई नापी गई तो सिपाही के पद के लिए योग्य निकली। 1989 में दिल्ली पुलिस में भर्ती हो गए, पहली पोस्टिंग सिक्योरिटी में मिली। इसके बाद वह कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर और एचकेएल भगत के सुरक्षाकर्मी भी रहे। मौजूदा समय में वह एसीपी राजेंद्र सिंह अधिकारी के कार चालक हैं।

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