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चिकित्सा की शक्तियां रसायनों पर नहीं, प्रकृति पर निर्भर : अल्फोंस

-केंद्रीय पर्यटन राज्य मंत्री ने प्रगति मैदान में किया कृषि भारत व वेलनेस इंडिया 201

By JagranEdited By: Published: Mon, 20 Aug 2018 08:47 PM (IST)Updated: Mon, 20 Aug 2018 08:47 PM (IST)
चिकित्सा की शक्तियां रसायनों पर 
नहीं, प्रकृति पर निर्भर : अल्फोंस
चिकित्सा की शक्तियां रसायनों पर नहीं, प्रकृति पर निर्भर : अल्फोंस

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली :

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केंद्रीय पर्यटन राज्य मंत्री केजे अल्फोंस ने भारत को कल्याणकारी देश बताते हुए कहा कि आयुर्वेद, योग और दवाओं के साथ अन्य भारतीय प्रणालियों के संयोजन के कारण हमारा अहम राज्य केरल वेलनेस टूरिज्म इंडस्ट्री के दिल में बसता है। उन्होंने यह भी कहा कि चिकित्सा की शक्तिया (दवाओं की पारंपरिक भारतीय प्रणाली) रसायनों पर नहीं बल्कि प्रकृति पर निर्भर हैं।

अल्फोंस सोमवार को प्रगति मैदान में कृषि भारत और वेलनेस इंडिया 2018 एक्सपो के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। ट्रासफॉर्मल एक्सपीरियंस के साथ पंचलाइन के रूप में पर्यटन मंत्रालय की हाल की विज्ञापन फिल्म 'योगी ऑफ द रैसेटैक', जिसने प्रतिमाह 75 मिलियन विचार रिकॉर्ड किए हैं, के बारे में उन्होंने कहा कि 60 सेकेंड के पाच विज्ञापनों के माध्यम से, पर्यटन मंत्रालय एक नई अवधारणा को बढ़ावा दे रहा है और बेहतर स्वास्थ्य के प्रति जागरूक व पर्यटकों को भारत में आकर्षित करने के लिए योग के बेहतर तरीके को प्रोत्साहित कर रहा है। ये विज्ञापन, जो सहस्त्राब्दी की विशेषता रखते हैं, योग और इसकी तकनीक का प्रभाव दिखाते हैं।

पिछले एक सप्ताह से बाढ़ के कहर से जूझ रहे केरल को लेकर अल्फोंस ने अपने राज्य के लोगों की मदद के लिए दान देने की अपील की।

कृषि पर आयोजित सत्र के दौरान तिलहन और दालों के साथ गेहूं और चावल के उत्पादन पर आधारित एक खास विषय था, एक समग्र परिप्रेक्ष्य। यह देखते हुए कि देश के अनाज केंद्रित (गेहूं और चावल तक सीमित) खाद्य सुरक्षा दृष्टिकोण वास्तव में किसानों के हितों को नुकसान पहुंचाता है, पर नीति आयोग के सदस्य डॉ. रमेश चंद ने कहा, 'अनाज की प्रति व्यक्ति खपत 50 साल पहले की तुलना में लगभग बराबर या थोड़ी ही कम है, जबकि 1992-93 से खाद्य तेलों की प्रति व्यक्ति खपत 300 प्रतिशत तक बढ़ गई है। यह अलग बात है कि भारत ने इस वृद्धि का लाभ नहीं उठाया है और हमारी खाद्य तेल माग का 70 प्रतिशत अब भी आयात से उपलब्ध होता है।' उन्होंने यह भी बताया कि 'पानी से पैदा होने वाली धान जैसी फसलों का निर्यात देश या उसके किसानों के हित में नहीं था। अगर हम 2022 तक कृषि आय को दोगुना करना चाहते हैं, तो हमें कम संसाधन से अधिक उत्पादकता प्राप्त करना चाहिए।


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