रहम की अपील करते पालम गांव के जोहड़
गौतम कुमार मिश्रा, पश्चिमी दिल्ली पालम गांव के निवासी रणवीर ¨सह सोलंकी बचपन की बातें याद कर
गौतम कुमार मिश्रा, पश्चिमी दिल्ली
पालम गांव के निवासी रणवीर ¨सह सोलंकी बचपन की बातें याद करते हुए कहते हैं कि उनके बचपन की बात गांव के जोहड़ों के बिना अधूरी है। रणवीर बताते हैं कि आज के बच्चे भले ही स्वि¨मग पूल में मोटी फीस अदा करके तैरना सीखते हैं पर हमने तो गांव के जोहड़ों में ही अपने साथियों के संग अठखेलियां करते तैरना सीखा। पालम गांव में कभी एक दो नहीं, बल्कि आठ-आठ जोहड़ थे। इनमें गांव वाले तो नहाते ही थे, साथ ही साथ पशु-पक्षियों के लिए भी यह काफी फायदेमंद था।
आज के पालम गांव में बड़ी मुश्किल से आपको जोहड़ों के दर्शन होंगे। यदि आपको जोहड़ों के बारे में बताने वाला कोई नहीं हो तो निश्चित रूप से आप कभी पानी से लबालब रहने वाले इन जोहड़ों को कूड़ा फेंकने की जगह या कोई खाई समझने की भूल कर बैठेंगे। समय के साथ गांव के अधिकांश जोहड़ शहरीकरण की योजनाओं की भेंट चढ़ चुके हैं। जो हैं भी वे अपनी आखिरी सांस गिन रहे हैं। ये जोहड़ भी कब किस दिन किस परियोजना की भेंट चढ़ जाएंगे, यह कोई नहीं जानता। गांव वाले बताते हैं कि पहले जब गांव में इन जोहड़ों का अस्तित्व सही सलामत था तब यहां पानी की कोई दिक्कत नहीं होती थी। पानी का लेवल भी ठीक था पर आज स्थिति यह है कि खारा पानी के लिए भी काफी गहराई तक भारी भरकम मशीनों से खोदाई करनी पड़ती है। तब कहीं जाकर खारा पानी मिल पाता है। मीठा पानी तो सपने जैसा लगता है। गांव वालों की मानें तो जोहड़ों के सूखने का सिलसिला द्वारका उपनगरी के निर्माण के समय शुरू हुआ। जब ये जोहड़ सुख चुके तो सरकार की दिलचस्पी भी इनके विकास में कम, इनकी जमीनों में ज्यादा थी।
आज तो कई जोहड़ों पर पार्क, वाटर कमांड टैंक व अस्पताल आदि विकसित कर दिए गए हैं और जो हैं भी वे सफाई के अभाव में बदहाल पड़े हैं। गांव का पचांद वाड़ी जोहड़ तो लैंड फिल एरिया जैसा दिखाई देता है। शामराज जोहड़ का भी बुरा हाल है। दिल्ली वाले जोहड़ पर डीडीए ने उद्यान कार्यालय खोल रखा है। रावली जोहड़ दिल्ली जलबोर्ड के वाटर कमांड टैंक के रूप में तब्दील हो चुकी है। गुले जोहड़ पर अब बरात घर बन चुका है। हरजोखर जोहड़ सूख चुका है। जोहड़ों की दुर्दशा के बारे में ग्रामीण बताते हैं कि सरकार को जहां जोहड़ों को जीवन देने का काम करना चाहिए, वहीं सरकारी एजेंसियां जोहड़ों के विनाश पर तुली हुई है। अगर इन जोहड़ों का अभी भी ख्याल रखा जाए तो स्थिति सुधर सकती है।