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आदिवासियों के परंपरागत गूढ़ ज्ञान पर शोध करेगा जेएनयू

मनोज भंट्ट, नई दिल्ली जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) भारत के आदिवासियों के परंपरागत गूढ़

By JagranEdited By: Published: Sun, 22 Apr 2018 11:02 PM (IST)Updated: Sun, 22 Apr 2018 11:02 PM (IST)
आदिवासियों के परंपरागत गूढ़ ज्ञान पर शोध करेगा जेएनयू
आदिवासियों के परंपरागत गूढ़ ज्ञान पर शोध करेगा जेएनयू

मनोज भंट्ट, नई दिल्ली

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जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) भारत के आदिवासियों के परंपरागत गूढ़ ज्ञान पर शोध करने की तैयारी कर रहा है। इसका मकसद आदिवासियों के छिपे हुए ज्ञान व परंपराओं के महत्व को समाज के हित में लाने और तकनीक की मदद से आदिवासियों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए कार्ययोजना तैयार करना है। इसके लिए जेएनयू इसी सत्र से साइंस एंड टेक्नोलॉजी प्रोग्राम फॉर ट्राइबल स्टडीज शुरू करने की तैयारी कर रहा है।

प्रोग्राम फॉर ट्राइबल स्टडीज के बारे में जानकारी देते हुए जेएनयू शोध विकास कार्यक्रम के निदेशक प्रोफेसर रूपेश चतुर्वेदी ने बताया कि आदिवासी समुदाय के ज्ञान व उनकी समस्याओं पर शोध के लिए इसे प्रोग्राम की तरह शुरू किया जा रहा है। इस प्रोग्राम की शुरुआत पूर्वोत्तर के आदिवासी समुदाय के बीच से शुरू करने की योजना है। आने वाले दो वर्षो में इस प्रोग्राम को बतौर मास्टर व पीएचडी पाठ्यक्रम की तरह पढ़ाया जाएगा, जिसका दायरा विस्तृत होगा।

उन्होंने कहा कि इस प्रोग्राम के तहत आदिवासी समुदायों की चिकित्सा पद्धति, जड़ी-बूटियों के प्रयोग, कृषि व्यवस्था व पर्यावरण संतुलन के साथ-साथ उनके जीवन से जुड़ी समस्याओं का अध्ययन व शोध किया जाएगा। इन शोध कार्यो को जेएनयू के सभी स्कूलों से चयनित प्रोफेसरों व छात्रों की टीम आदिवासी समुदायों के साथ रहकर पूरा करेगी। इसमें विज्ञान व मानविकी दोनों संकाय के पीएचडी छात्र शामिल किए जाएंगे। शोध कार्य पूरा होने के बाद जहां आदिवासियों के परंपरागत ज्ञान को बाकी समाज से जोड़ा जाएगा और उसका प्रयोग समाज हित में किया जाएगा, वहीं शोध के बाद तकनीक से उनके जीवन स्तर को सुधारने की कार्ययोजना भी तैयार की जाएगी। ज्ञान से अर्जित आर्थिक संपदा समुदाय को दी जाएगी

उन्होंने बताया कि इस प्रोग्राम की सबसे खास बात यह है कि आदिवासी समुदाय के जिस ज्ञान का प्रयोग समाज में किया जाएगा, उसका बौद्धिक संपदा अधिकार भी इसी समुदाय के नाम पर दर्ज किया जाएगा। जबकि समाज हित में प्रयोग होने से जो भी आर्थिक संपदा प्राप्त होगी, वह उसी समुदाय के नाम पर स्थानांतरित की जाएगी। प्रो. रूपेश चतुर्वेदी ने बताया कि अभी तक आदिवासियों के सामाजिक, सांस्कृतिक परंपराओं पर काफी शोध हुए हैं, लेकिन यह पहला शोध है जो विज्ञान व तकनीकी दृष्टिकोण से आदिवासी समुदायों के बीच रहकर किया जाएगा। इसके लिए काम शुरू किया जा चुका है, जो शिक्षक पहले से इस पर काम कर रहे हैं, उन्हें एक मंच पर लाकर उनका ग्रुप बनाया जा रहा है।


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