क्या से क्या हो गए देखते देखते..
कनॉट प्लेस स्थित सेंट्रल पार्क में चल रहे जश्न-ए-विरासत-ए-उर्दू महोत्सव के पांचवें दिन खूब भीड़ जुटी। इस दौरान जुल्फी खान की गजल 'हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पर दम निकले..' पर लोग झूम उठे।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : कनॉट प्लेस स्थित सेंट्रल पार्क में चल रहे जश्न-ए-विरासत-ए-उर्दू महोत्सव के पांचवें दिन खूब भीड़ जुटी। इस दौरान जुल्फी खान की गजल 'हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पर दम निकले..' पर लोग झूम उठे।
महोत्सव की शुरुआत टैलेट ग्रुप द्वारा 'किस्सा बचपन के खेलों' का के मंचन से हुई, जो बाल दिवस के मौके पर विशेष था। इसके बाद महफिल ए कव्वाली में शाहिद शमी नियाजी ने 'क्या से क्या हो गए देखते देखते..' कव्वाली गाकर श्रोताओं को सुरों के सागर में डूबो दिया। हर कोई कव्वाली के सुरों व तबले की संगत पर झूम रहा था। इसके बाद 'पहले आप' नामक उर्दू नाटक का मंचन किया गया, जिसमें दो दोस्तों की कहानी को दर्शाया गया। जो दोस्ती से शुरू होकर अंत में तलवार बाजी के समय 'पहले आप' की जिद दोस्ती के रूप में बदल कर खत्म हुआ। इसके बाद शाम-ए-गजल में कोच्चि से आई गजल गायिका सिथारा ने अपनी मनमोहक प्रस्तुति से लोगों को खूब आनंदित किया। दक्षिण भारत से होने के कारण उनकी हिंदी कमजोर थी, लेकिन गजलों की प्रस्तुति में कोई कमी नहीं थी।
ढलती शाम के बीच रंग-बिरंगी रोशनी से नहाए हुए मंच पर दी जा रही प्रस्तुति का दृश्य देखते ही बन रहा था। दीर्घा में बैठा हर श्रोता तालियों से गायिका का उत्साह बढ़ा रहा था। खास बात रही की गजलों को सुनने के लिए विदेशी सैलानी भी बड़ी संख्या में पार्क में मौजूद थे। इस दौरान तबला व अन्य वाद्य यंत्रों पर संगत दे रहे संगीतकार माहौल को रंगत दे रहे थे।
इसके बाद राधिका चोपड़ा की गजलों से लोग आनंदित हुए। अंत में महफिल-ए-कव्वाली में असलम वारसी श्रोताओं को गजलों के सागर से सूफी कलाम की ओर ले गए, जिसमें शानदार कव्वालियों का दौर चला।