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तब्लीगी जमात को बचाने आगे आ सकती है तुर्कमान गेट की जमात शूरा

वैश्?विक महामारी कोराना के भारत में विष्?फोट के प्रमुख केंद्र निजामुद्दीन स्?थित तब्?लीगी जमात को बचाने में तुर्कमान गेट स्?थित जमात शूरा आगे आ सकता है। आपराधिक षणयंत्र व महामारी अधिनियम सहित कई धाराओं में मुकदमा दर्ज होने के बाद तब्?लीगी जमात का अमीर मौलान मोहम्?मद साद और उसके करीबी फिलहाल फरार हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 08 Apr 2020 08:34 PM (IST)Updated: Thu, 09 Apr 2020 06:11 AM (IST)
तब्लीगी जमात को बचाने आगे आ सकती है तुर्कमान गेट की जमात शूरा
तब्लीगी जमात को बचाने आगे आ सकती है तुर्कमान गेट की जमात शूरा

नेमिष हेमंत, नई दिल्ली

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वैश्विक महामारी कोरोना के भारत में विस्फोट के प्रमुख केंद्र निजामुद्दीन स्थित तब्लीगी जमात को बचाने में तुर्कमान गेट स्थित जमात शूरा आगे आ सकता है। आपराधिक षड्यंत्र व महामारी अधिनियम सहित कई धाराओं में मुकदमा दर्ज होने के बाद तब्लीगी जमात का अमीर मौलाना मुहम्मद साद और उसके करीबी फिलहाल फरार हैं। इन सभी के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने लुकआउट सर्कुलर जारी किया है। धरपकड़ के लिए दिल्ली, उत्तर प्रदेश में दबिश दी जा रही है।

जमात के जानकारों की मानें तो इस सारे प्रकरण में तब्लीगी पर साद की पकड़ निश्चित ही ढीली होगी। उसकी गिरफ्तारी और सजा की स्थिति में जमात को चलाने के लिए नए अमीर (मुखिया) का चयन करना पड़ेगा। ऐसे में जमात शूरा के नाम से तुर्कमान गेट के दरगाह फैज इलाही में मुख्यालय बनाए तब्लीगी का दूसरा गुट इसके लिए आगे आ सकता है। तब्लीगी जमात के दूसरे गूट जमात शूरा के लोगों का यह भी मानना है कि अगर साद लोगों की बातों व सरकार के दिशा-निर्देशों को मानता, मरकज का आयोजन स्थगित करता तो कोरोना को लेकर इतनी भयावह स्थिति नहीं होती। जमात के दामन पर यह दाग न लगता। वे लोग यह भी मानते हैं कि दो गुट हो जाने की वजह से कई हजार लोगों की जान बच गई, क्योंकि एक होने की स्थित में वहां लोगों की भीड़ और अधिक होती। निजामुद्दीन का मुख्यालय खचाखच भरा होता। वहीं, तुर्कमान गेट वाले गुट ने आने वाले खतरे को पहले ही भांप लिया था और अपने यहां के सारे आयोजन समय रहते स्थगित करते हुए सारे लोगों को उनके-उनके घर भेज दिया था। साद और जुहेरूल हसन के गुट में हुआ था खूनी संघर्ष

शूरा किसी संस्था की निर्णय लेने वाली बड़ी इकाई होती है, लेकिन मौलाना साद ने तब्लीगी जमात पर कब्जा करने को लेकर इसके तब के अमीर मौलाना जुबेर के निधन के बाद इसको भंग कर दिया था। बिना शूरा के निर्णय के ही मौलाना साद ने मौलाना जुबेर की जनाजा नमाज भी पढ़ी थी। यह वही पढ़ सकता है, जो उस समय नायब होगा और अमीर बनेगा। इसे लेकर मौलाना साद और जुबेर के पुत्र मौलाना जुहेरूल हसन के गुट में खूनी संघर्ष भी हुआ था। यह विवाद मौलाना जुबेर के निधन के वर्ष 2015 से वर्ष 2018 तक बना रहा।

आखिरकार वर्ष 2018 में मौलाना जुहेरूल हसन व जमात शूरा के सदस्य मौलाना इब्राहिम व मौलाना अहमद लाठ समेत अन्य ने तुर्कमान गेट को नया ठिकाना बनाया और यहां से जमात शूरा चलाना शुरू किया। यहां सारे निर्णय शूरा के माध्यम से ही लिए जाते हैं। हालांकि, इस पूरे प्रकरण पर इस गुट ने भी चुप्पी साध रखी है। लेकिन अंदरखाने निजामुद्दीन प्रकरण पर इसकी पूरी निगाह है और संभावित हालात को लेकर भविष्य की रणनीति पर विचार चल रहा है।


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