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श्राद्ध सोमवार से, पंडितों को साधने लगे जजमान

जागरण संवाददाता, बाहरी दिल्ली : सोमवार पूर्णिमा से शुरू हो रहे पितृपक्ष श्राद्धों में अपने पूर्व

By JagranEdited By: Published: Fri, 21 Sep 2018 09:18 PM (IST)Updated: Fri, 21 Sep 2018 09:18 PM (IST)
श्राद्ध सोमवार से, पंडितों को साधने लगे जजमान
श्राद्ध सोमवार से, पंडितों को साधने लगे जजमान

जागरण संवाददाता, बाहरी दिल्ली : सोमवार पूर्णिमा से शुरू हो रहे पितृपक्ष श्राद्धों में अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए ब्राह्माणों को भोजन कराने के लिए बड़ी संख्या में जजमान मंदिरों का रुख कर पंडितों को साधने लगे हैं। हालांकि बहुत से परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी निरंतर एक ही ब्राह्माण कुल के वंशजों को भोजन पर बुलाने की परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं मगर कई परिवार ऐसे हैं जो हर बार नए ब्राह्माण को ही भोजन कराने में विश्वास रखते हैं।

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ग्रामीण इलाकों में अधिकतर स्थानीय ब्राह्माण परिवारों ने पितृपक्ष के भोज से किनारा कर लिया है तो कुछ मेजबानी छोड़ अपने ही घर पर भोजन की थाली भेजने का अनुग्रह कर रहे हैं। शहरी इलाकों में घर पर भोजन कराने के लिए सबसे अधिक डिमांड ब्राह्माण महिलाओं की है, जिसके लिए श्रद्धावान बाहरी क्षेत्रों के मंदिरों में सम्पर्क साध रहे हैं। रोहिणी हेलीपोर्ट रोड स्थित प्रसिद्ध धर्मस्थल पंसाली धाम के शिवशक्ति हनुमान मंदिर कीर्तन मंडल की प्रमुख बबिता मिश्रा ने बताया कि कई वर्षो से अशोक विहार, शालीमार बाग, पीतमपुरा, रानीबाग और रोहिणी से आने वाले बवाना औद्योगिक क्षेत्र के अधिकांश उद्यमी मंदिर में ही कीर्तन मंडल की ब्राह्माणियों को भोजन कराकर यथोचित दक्षिणा दे जाते हैं। यहां गोमाता और कौवों को भी एक साथ ही खिलाकर जजमान प्रसन्न होते हैं। कथावाचक पूनम वैष्णव ने बताया कि नियत तिथि के अनुसार अपने पितरों को तर्पण और ¨पडदान को ही श्राद्ध कहा जाता है और तीन पीढि़यों तक अवश्य श्राद्ध करना चाहिए।

बरवाला गांव के बिड़ला मंदिर में प्रवचन कर रहे आचार्य अनिल वैष्णव के अनुसार जब सूर्य की छाया पैरों पर पड़ने लगे यानी दोपहर के बाद ही श्राद्ध कर्म करना चाहिए, क्योंकि सुबह-सुबह या 12 बजे से पहले किया गया श्राद्ध पितरों तक नहीं पहुंच पाता है। पितृ पक्ष में देवकार्य से भी ज्यादा पितृ कार्य को महत्व दिया जाता है। वायु पुराण, मत्स्य पुराण, गरुण पुराण और विष्णु पुराण समेत कई धार्मिक ग्रंथों में भी श्राद्ध कर्म के महत्व का वर्णन मिलता है।

पूर्णिमा से लेकर अमावस्या के बीच अपने घर परिवार के पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए जो श्राद्ध कार्य किए जाते हैं उससे पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। पंडित पंकज मिश्रा शांडिल्य ने बताया यदि किसी को अपने पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो तो अमावस्या तिथि के दिन वे अपने पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं और पितृदोष की शांति करा सकते हैं। उन्होंने बताया की कई सेठ साहूकार मोटी मोटी दक्षिणा का लालच दे रहे हैं, परंतु ब्राह्माणों ने केवल सम्मान करने वाले परिवारों को ही प्राथमिकता के आधार पर हामी भरी है।


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