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दिल्ली एनसीआर में अंधाधुंध शहरीकरण की भेंट चढ़ गई जीवनदायिनी यमुना

यमुना की जलधारा को सींचने वाले प्राकृतिक जल स्नोत व अरावली की पहाड़ियों से निकलने वाली छोटी-छोटी नदियां आज गटर के नाले में तब्दील हो गई हैं। इस वजह से जिन छोटी-छोटी नदियों से कभी यमुना में स्वच्छ जल पहुंचता था जिससे नदी का प्रवाह बेहतर रहता था।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Published: Wed, 07 Jul 2021 12:27 PM (IST)Updated: Wed, 07 Jul 2021 12:27 PM (IST)
दिल्ली एनसीआर में अंधाधुंध शहरीकरण की भेंट चढ़ गई जीवनदायिनी यमुना
नदी में सीवरेज व औद्योगिक कचरा गिराने का माध्यम बन गए हैं।

नई दिल्ली, [रणविजय सिंह]। जीवनदायिनी यमुना दिल्ली एनसीआर में अंधाधुंध शहरीकरण की भेंट चढ़ गई। यमुना की जलधारा को सींचने वाले प्राकृतिक जल स्नोत व अरावली की पहाड़ियों से निकलने वाली छोटी-छोटी नदियां आज गटर के नाले में तब्दील हो गई हैं। इस वजह से जिन छोटी-छोटी नदियों से कभी यमुना में स्वच्छ जल पहुंचता था, जिससे नदी का प्रवाह बेहतर रहता था, वही जल स्नेत अब नदी में सीवरेज व औद्योगिक कचरा गिराने का माध्यम बन गए हैं।

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हम पेयजल व सिंचाई के लिए यमुना के पानी का दोहन तो भरपूर करते हैं, लेकिन नदी में प्रवाह बना रहे इस पर खास ध्यान नहीं दिया गया। यही वजह है कि यमुना इस हाल में पहुंची। इसलिए यमुना को निर्मल बनाने के लिए पांच सूत्रीय प्रबंधन की कार्ययोजना तैयार कर उस पर अमल करना होगा। यदि पांच सूत्रीय प्रबंधन पर अमल हुआ तो यमुना कुछ ही सालों में दोबारा स्वच्छ हो सकती है।

यमुना के पानी को दिल्ली पहुंचने से पहले ताजेवाला बैराज से डायवर्ट किया जाता है क्योंकि दिल्ली को पीने के लिए पानी चाहिए होता है और हरियाणा में सिंचाई का काम भी होता है। इसलिए दिल्ली आते-आते नदी सूख जाती है। मानसून के दौरान तो बाढ़ का पानी होता है, लेकिन गर्मी में यमुना में खास पानी नहीं होता। कोई भी नदी सतह पर मौजूद पानी व नदी की रेत के नीचे स्थित पानी के साथ मिलकर बहती है। समस्या यह है कि दिल्ली में भूजल स्तर बहुत कम हो गया है।

एक समय अरावली की पहाड़ी से 19 छोटी नदियां निकलती थीं, जिससे यमुना में भी पानी आता था जिसे अब नाला बना दिया गया है। इन जल स्नेतों पर बड़े स्तर पर काम करना होगा। इसके अलावा नदी के किनारे और आसपास स्थित प्राकृतिक जल स्नेतों, झील व तालाबों को पुनर्जीवित करना होगा। इससे नदी की जलधारण क्षमता और आसपास के क्षेत्रों में भूजल स्तर बढ़ेगा। इससे भी नदी में जल की उपलब्धता बढ़ेगी। साथ ही यमुना के आसपास व्यापक स्तर पर पौधारोपण करना होगा। यह सब बहुत सहजता से किए जाने वाले उपाय हैं।

पांच सूत्रीय प्रबंधन जरूरी

- प्राकृतिक जल स्नोतों का विकास व भूजल रिचार्ज

- नदी के क्षेत्र से अतिक्रमण को हटाना

- सीवरेज, औद्योगिक व ठोस कचरा प्रबंधन

- पौधारोपण, जनजागरूकता

औद्योगिक और ठोस कचरे से बचाना है

यमुना के बेसिन को दोनों तरफ एक-एक किलोमीटर तक अतिक्रमण हो गया है। शहरीकरण की दौड़ में यह अतिक्रमण दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। इस वजह से यमुना सिकुड़ती जा रही है। एक समय यमुना का पानी लाल किले तक पहुंचता था। अब वहां से यमुना काफी दूर हो गई है। इसलिए सबसे पहले तो यमुना को अतिक्रमण मुक्त करना होगा, ताकि वह खुलकर सांस ले सके। यमुना में प्रदूषण के लिए घरों से निकलने वाला सीवरेज 80 फीसद जिम्मेदार है। बगैर शोधन के सीवरेज यमुना में गिराया जा रहा है। यमुना की सफाई के नाम पर भारी भरकम रकम खर्च करके कई सीवरेज शोधन संयंत्र बनाए गए। कुछ नए संयंत्र भी बनाए जा रहे हैं, लेकिन भ्रष्टाचार के कारण इसका खास फायदा नहीं मिल पा रहा है।

सीवरेज शोधन संयंत्र ठीक से काम नहीं करते। इसलिए सीवरेज शोधन की व्यवस्था को पुख्ता करना होगा। यह काम सिर्फ सरकार कर सकती है। इसके अलावा औद्योगिक व ठोस कचरा यमुना में प्रदूषण के लिए 20 फीसद जिम्मेदार है। यह सुनिश्चित करना होगा कि यमुना में औद्योगिक व ठोस कचरा न गिरने पाए। लोगों को समझना होगा कि यमुना में ठोस कचरा गिराने से यमुना मैली हो रही है। इसलिए लोगों को अपनी जिम्मेदारी भी समझनी होगी।

यदि इन पांच चीजों पर अमल किया जाए तो यमुना खुद निर्मल हो जाएगी। इसलिए यमुना को पहले की तरह स्वच्छ बनाना संभव है तो इसके लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति सबसे ज्यादा जरूरी है। यमुना का इस्तेमाल अब तक वोट बैंक की राजनीति के लिए ही होता रहा है। इसकी सफाई के लिए राजनीतिक दल बड़े-बड़े दावे व घोषणा पत्र में लुभावने वादे करते हैं। आम आदमी पार्टी की सरकार ने भी अगले चुनाव से पहले यमुना के पानी को नहाने लायक बनाने का वादा किया गया है। मौजूदा परिस्थिति में यह कैसे संभव होगा, समझ के परे है। इस तरह का वादा पहले भी टूट चुका है।

(रमनकांत त्यागी, निदेशक, नीर फाउंडेशन)


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