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अमेरिका के रिकॉर्ड को चुनौती, विश्व का सर्वाधिक छोटा बीज होने का दावा

सबसे छोटा बीज होने का रिकार्ड अमेरिकी पौधा कोलरलोराइजा माकूलाटा के बीज के नाम है। अब यह दावा भारत ने किया है।

By JP YadavEdited By: Published: Wed, 04 May 2016 10:29 AM (IST)Updated: Wed, 04 May 2016 01:26 PM (IST)
अमेरिका के रिकॉर्ड को चुनौती, विश्व का सर्वाधिक छोटा बीज होने का दावा

नोएडा (अरुणेश)। विश्र्व का सर्वाधिक छोटा बीज जिसे खुली आंख से नहीं देखा जा सकता है। उसके भारत में होने का दावा नोएडा स्थित बॉटनिक गार्डन के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ शिव कुमार ने किया है।

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पेटेंट कराने की दिशा में बढ़ाए कदम

इतना ही नहीं, अपने इस दावे के समर्थन से जुड़े प्रमाण के आधार पर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के समक्ष भी दावेदारी पेश करते हुए इससे संबंधित तथ्य का पेटेंट कराने एवं गिनीज बुक ऑफ रिकार्ड मे दर्ज कराने प्रक्रिया शुरू कर दी है।

संबंधित मंत्रालय को लिखा खत

मंत्रालय को लिखे गए पत्र मे कहा गया है कि इस बीज की खोज उन्होने बॉटनिक गार्डन के नर्सरी संख्या एक में 25 मार्च को की थी। इसके बाद इस बीज से 268 पौधे की नर्सरी लगाई गई है।

बीज को नहीं देखा जा सकता है खुली आंखों से

बीज की पहचान नॉर्थ ईस्ट और कश्मीर की घाटियों में पाये जाने वाले कोलरलो राइजा ट्राइफिट के नाम से करते हुए कहा है कि इसके बीज को खुली आंखों से नही देखा जा सकता है, क्योंकि इसका आकार एक मिलीमीटर से भी कम अर्थात 8 सौ 36 माइक्रोन है।

अब तक अमेरिका के नाम था रिकॉर्ड

सबसे छोटा बीज होने का रिकार्ड अमेरिकी पौधा कोलरलोराइजा माकूलाटा के बीज के नाम है। उस पौधे के बीज का आकार एक हजार माइक्रोन है, जिसे 2003 मे इस बीज की पैमाइश करने के बाद किया गया था।

लरलोराइजा माकूलाटा नाम का बीज पौधा मूल रुप से अमेरिका, कनाडा और रसिया मे पाया जाता है। 2003 मे डब्ल्यू पी ऑम्सट्रांग एवं उनके सहयोगी वैज्ञानिको ने इसकी खोज करते हुए पहली फोटो खीचने का दावा किया था।

अमेरिकी बीज

वैज्ञानिक नाम : कोलरलोराइजा माकूलाटा
इसका उपयोगः त्वचा रोग के लिए किया जाता है।
लंबाईः1000 माइक्रोन
गोलाईः 200 माइक्रोन

भारतीय बीज

वैज्ञानिक नाम : कोलरलोराइजा माकूलाटा ट्राइफिटा
इसका उपयोगःबुखार को कम करने के लिए औषधि के रूप मे किया जाता है।
लंबाईः799 से 836 माइक्रोन
गोलाईः117 से 124 माइक्रोन

बॉटनिक गार्डन के प्रमुख वैज्ञानिक शिव कुमार का कहना है कि हमने अपनी खोज के बारे में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को अवगत करा दिया है। साथ ही इससे संबंधित शोध संस्था को भी पत्र प्रमाण के साथ प्रस्तुत किया है। पूरा विश्र्वास है कि दावे को स्वीकार करते हुए यह रिकार्ड भारत के नाम किया जाएगा।


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