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डूसू के दोबारा चुनाव होने पर हाई कोर्ट करेगा फैसला

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ (डूसू) के दोबारा चुनाव होंगे या नहीं। इस पर फैसला अब हाई कोर्ट करेगा। मंगलवार को दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) प्रशासन ने एक ओर जहां नियमों का हवाला देते हुए कहा कि अब दोबारा चुनाव नहीं कराए जा सकते। वहीं नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआइ) ने इस मामले में उक्त नियम के लागू होने से इन्कार किया।

By JagranEdited By: Published: Tue, 20 Nov 2018 08:19 PM (IST)Updated: Tue, 20 Nov 2018 08:19 PM (IST)
डूसू के दोबारा चुनाव होने 
पर हाई कोर्ट करेगा फैसला
डूसू के दोबारा चुनाव होने पर हाई कोर्ट करेगा फैसला

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ (डूसू) के दोबारा चुनाव होंगे या नहीं। इस पर फैसला अब हाई कोर्ट करेगा। मंगलवार को दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) प्रशासन ने एक ओर जहां नियमों का हवाला देते हुए कहा कि अब दोबारा चुनाव नहीं कराए जा सकते। वहीं नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआइ) ने इस मामले में उक्त नियम के लागू होने से इन्कार किया।

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एनएसयूआइ ने पूर्व डूसू अध्यक्ष अंकिव बैसोया की फर्जी डिग्री को हाई कोर्ट में चुनौती देते हुए जांच कर दोबारा डूसू चुनाव कराने की मांग की थी। मंगलवार को न्यायमूर्ति योगेश खन्ना की पीठ के समक्ष डीयू प्रशासन की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पिंकी आनंद ने कहा कि लिंगदोह कमेटी के नियमों के अनुसार, अगर दो महीने के अंदर अध्यक्ष पद खाली होता है, तभी दोबारा चुनाव कराया जा सकता है। ऐसे में अब जब दो महीने का कार्यकाल पूरा हो चुका है तो दोबारा से चुनाव नहीं कराया जा सकता। उन्होंने कहा कि चुनाव परिणाम 13 सितंबर को आए थे और दो महीने की समयावधि 13 नवंबर को समाप्त हो चुकी है। डूसू अध्यक्ष पद 14 नवंबर को खाली हुआ है। वहीं दूसरी तरफ एनएसयूआइ के अध्यक्ष पद के प्रत्याशी रहे सनी छिल्लर की ओर से वरिष्ठ वकील पी चिदंबरम ने कहा कि जब डूसू पूर्व अध्यक्ष अंकिव बैसोया की डिग्री एक बार फर्जी साबित हो चुकी है तो ऐसा में लिंगदोह कमेटी का दो महीने के कार्यकाल का नियम लागू नहीं होता। उन्होंने यह भी कहा कि जब डीयू को बैसोया की डिग्री के बाबत वेरीफिकेशन रिपोर्ट मिल चुकी तो चुनाव नामांकन अपने आप ही अमान्य हो जाता है और इस पर दो महीने के कार्यकाल का नियम लागू नहीं हो सकता। उन्होंने यह भी कहा कि डीयू प्रशासन को बैसोया के दाखिले और चुनाव में नामांकन के दौरान प्रमाण पत्रों की जांच करनी चाहिए थी। इतना ही नहीं उन्हें दस्तावेजों की जांच की प्रक्रिया जल्द पूरी करनी चाहिए थी और डीयू को इस बाबत पहले जानकारी होनी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि बैसोया का कभी नामांकन नहीं होना चाहिए था और दोबारा से चुनाव आयोजित कराना ही चाहिए। वहीं, सनी छिल्लर की ओर से एक अन्य वकील राशिद एन अजाम ने आरोप लगाया कि डीयू प्रशासन ने जानबूझकर मामले की जांच और वेरीफिकेशन की प्रक्रिया में देरी की, ताकि दोबारा चुनाव के आयोजन को टालने के लिए यह दलील दी जा सके।


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