मनुष्य के अध्यात्म जगत की व्याख्या है गीता: डॉ. दया शंकर
दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज द्वारा आधुनिक भारतीय भाषाओं की विविधता में एकता व श्रीमद्भगवद् गीता एवं तनाव मुक्ति विषय पर दो सत्रीय राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज द्वारा 'आधुनिक भारतीय भाषाओं की विविधता में एकता' व 'श्रीमद्भगवद् गीता एवं तनाव मुक्ति' विषय पर दो सत्रीय राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए कॉलेज की प्राचार्या प्रो. रमा ने भारतीय भाषाओं की आधुनिक विश्व में प्रासंगिकता को रेखांकित किया।
राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो. कमलाकांत मिश्र ने भारतीय भाषाओं के उद्गम, विकास और उनके वर्गीकरण का विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने कहा कि भाषा परिवार में भारोपीय परिवार की संस्कृत भाषा विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। उन्होंने विभिन्न भाषाओं में पारस्परिक बोधगम्यता के लिए संस्कृत भाषा की महत्ता और विभिन्न भारतीय भाषाओं में निकटतम समानता को भी दर्शाया। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के प्रो. डॉ. दया शंकर तिवारी ने गीता का तनाव मुक्ति और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में योगदान के बारे में बताया। श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि क्रोध से सम्मोह का जन्म और स्मृति तथा बुद्धि का नाश हो जाता है। इन सभी के निराकरण के लिए गीता के निष्काम कर्मयोग को अपनाना चाहिए। गीता मानव के अध्यात्म जगत की व्याख्या है। कार्यक्रम का संचालक व संयोजक डॉ. प्रभांशु ओझा ने किया।