चाहिए पर्यावरण अनुकूल मूर्तियां, आइये दरीबा कलां
प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए इस बार जहां इको फ्रेंडली दीपावली मनाने की बात हो रही है। वहीं, दूसरी ओर बाजार में दिवाली पर पूजन के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां भी इको फ्रेंडली आ रही हैं। पुरानी दिल्ली के दरीबा कलां में इस तरह की मूर्तियों की बिक्री हो रही है।
किशन कुमार, नई दिल्ली
प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए इस बार जहां इको फ्रेंडली दीपावली मनाने की बात हो रही है। वहीं, दूसरी ओर बाजार में दिवाली पर पूजन के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां भी इको फ्रेंडली आ रही हैं। पुरानी दिल्ली के दरीबा कलां में इस तरह की मूर्तियों की बिक्री हो रही है।
आकर्षक मूर्तियां इन दिनों दरीबा कलां में लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं। वैसे तो दरीबा कलां ज्वेलरी की खरीदारी के लिए मशहूर है, लेकिन दीपावली के शुभ अवसर यहां बंगाल से लाई गई मूर्तियों की खूब बिक्री होती है। इसे खरीदने के लिए दिल्ली के विभिन्न इलाकों से लोग यहां आते हैं। कुशल कारीगर बनाते हैं मूर्तियां
दुकानदार विनोद गुप्ता ने बताया कि एक तरफ दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। इसलिए पर्यावरण के अनुकूल बनी मूर्तियों की मांग बढ़ी है, जिसकी खरीदारी करने ग्राहक यहां पहुंच रहे हैं। उन्होंने बताया कि मूर्तियों को आकर्षक रूप देने के लिए विभिन्न कारीगर एक मूर्ति पर काम करते हैं। जो कारीगर आंख बनाने में कुशल है, वह सिर्फ आंख ही बनाता है। इसके साथ ही जो मूर्ति में रंग भरने में कुशल है, वह रंग करता है। इस तरह एक मूर्ति पर तीन से ज्यादा कारीगर काम करते हैं। मूर्तियों को बनाने में गंगाजल का प्रयोग
दुकानदार ने बताया कि मूर्तियों से लोगों की आस्था जुड़ी होती है। ऐसे में बंगाल से आने वाली मूर्तियों को बनाने में किसी अन्य जल के अलावा गंगाजल का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे पवित्रता बनी रहे। इसके बाद मूर्तियों के सूखने के बाद रंगों से सजाया जाता है। उन्होंने बताया कि इस तरह की मूर्तियों के लिए एडवांस में ऑर्डर आ जाते हैं। इसलिए आज भी पीढ़ी दर पीढ़ी लोग यहां का रुख करते हैं। विशेष तरह का लगाया जाता है पदार्थ
एक अन्य दुकानदार हिमांशु बंसल ने बताया कि मूर्तियों को चमक देने के लिए एक खास तरह का तरल पदार्थ लैकर लगाया जाता है। इससे मूर्ति का रंग काफी समय तक हल्का नहीं पड़ता है। उन्होंने बताया कि इन मूर्तियों को लोग आसानी से पानी से साफ भी कर सकते हैं, जिससे रंग के उतरने का भी कोई डर नहीं है।