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गंभीर आपराधिक मामलों में मध्यस्थता पर हाई कोर्ट ने उठाए सवाल

दुष्कर्म, छेड़छाड़ और आर्थिक धोखाधड़ी जैसे गंभीर अपराध के मामलों को हाई कोर्ट में मध्यस्थता के लिए भेजे जाने के निचली अदालत के तरीके पर सवाल उठाया है। न्यायमूर्ति आरके गौबा ने कहा कि गंभीर या गंभीर अपराधों के मामलों यह अहम सवाल है कि पक्षकार उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द करने इसलिए जाते हैं कि उनके बीच समझौता हो चुका है। उन्होंने कहा कि इसमें से एक मामला जहां दुष्कर्म, अप्राकृतिक संबंध, छेड़छाड़ और धमकी देने का मामला था, जबकि दूसरा मामला एक निजी बैंक के साथ धोखाधड़ी का था। पीठ ने सवाल उठाया कि क्या इस तरह के मामलों में सीआरपीसी की धारा 4

By JagranEdited By: Published: Mon, 19 Nov 2018 11:18 PM (IST)Updated: Mon, 19 Nov 2018 11:18 PM (IST)
गंभीर आपराधिक मामलों में मध्यस्थता पर हाई कोर्ट ने उठाए सवाल
गंभीर आपराधिक मामलों में मध्यस्थता पर हाई कोर्ट ने उठाए सवाल

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली :

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दुष्कर्म, छेड़छाड़ और आर्थिक धोखाधड़ी जैसे गंभीर अपराध के मामलों को हाई कोर्ट में मध्यस्थता के लिए भेजे जाने के निचली अदालत के तरीके पर सवाल उठाया है। न्यायमूर्ति आरके गौबा ने कहा कि गंभीर अपराध के मामले में पक्षकार उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद करने इसलिए जाते हैं कि उनके बीच समझौता हो चुका है। उन्होंने कहा कि इसमें से एक मामला जहां दुष्कर्म, अप्राकृतिक संबंध, छेड़छाड़ और धमकी देने का मामला था, जबकि दूसरा मामला निजी बैंक के साथ धोखाधड़ी का था। पीठ ने सवाल उठाया कि क्या इस तरह के मामलों में सीआरपीसी की धारा 482 में अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग करने के लिए इस अदालत को बुलाया जाना चाहिए। अगर इसका जवाब नहीं में है तो यह भी सवाल उठता है कि इस तरह के मामलों को आपराधिक अदालतों द्वारा मध्यस्थता की प्रक्रिया में लाना चाहिए।

दुष्कर्म मामले में आपराधिक कार्यवाही रद करने की याचिका को पीठ ने खारिज कर दिया। दोनों मामलों में अपील का दिल्ली सरकार के वकील ने विरोध किया। 2003 में पांच लोगों के खिलाफ आर्थिक धोखाधड़ी के मामले में रिपोर्ट दर्ज हुई थी। इस मामले में इस साल की शुरुआत में आरोपी और बैंक ने सुनवाई के दौरान निचली अदालत को बताया था कि मामले में निपटारे की संभावना है, जिसके बाद मामला मध्यस्थता केंद्र के लिए भेजा गया था। जुलाई में बताया था कि आरोपी पक्ष ने बैंक को 12 लाख रुपये दे दिए हैं। आरोपी पक्ष ने इसके बाद हाई कोर्ट में याचिका दायर कर उनका मामला रद करने मांग की थी। उन्होंने दलील दी थी कि बैंक अब मामला आगे नहीं बढ़ाना चाहता। इस पर पीठ ने कहा कि 15 साल से लंबित मामला अब भी प्री-ट्रायल स्टेज पर ही है, जो कि ¨चता का विषय है। पीठ ने सवाल उठाया कि इतने बड़े आर्थिक धोखाधड़ी के मामले में बैंक ने समझौता कैसे कर लिया। पीठ ने साथ ही समझौता कराने वाले बैंक के कर्मचारी को कोर्ट में पेश होकर बताने को कहा कि उसने ये कैसे किया। साथ ही दिल्ली सरकार को धोखाधड़ी के चार मामलों में आरोप पत्र दाखिल होने के 15 साल बाद भी आरोप नहीं तय होने पर एक प्रगति रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए। वहीं, चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट से पूछा कि दिसंबर 2003 में आरोप पत्र दाखिल होने के बावजूद भी मामले में देरी होने के कारण क्या हैं।


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