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मुमकिन नहीं आतंकवाद के खात्मे तक फांसी की सजा को नकारना

पिछले डेढ़ दशक में जिन चार लोगों को फांसी पर लटकाया गया है, उनमें से तीन आतंकी थे। इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों से साफ है कि आतंकवाद से निपटने के लिए फांसी की सजा जरूरी है। जब तक आतंकवाद है तब तक फांसी की सजा खत्म होनी

By JP YadavEdited By: Published: Mon, 03 Aug 2015 10:38 AM (IST)Updated: Mon, 03 Aug 2015 06:30 PM (IST)
मुमकिन नहीं आतंकवाद के खात्मे तक फांसी की सजा को नकारना

नई दिल्ली (माला दीक्षित)। पिछले डेढ़ दशक में जिन चार लोगों को फांसी पर लटकाया गया है, उनमें से तीन आतंकी थे। इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों से साफ है कि आतंकवाद से निपटने के लिए फांसी की सजा जरूरी है। जब तक आतंकवाद है तब तक फांसी की सजा खत्म होनी मुश्किल है।

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जब कभी इस सजा को खत्म करने की बात उठी, तो देश की परिस्थितियां आगे आ गईं। मानवाधिकार पर अपराध पीड़ितों की कराह भारी पड़ी। विधि आयोग ने फांसी बनाए रखने के हक में राय देते हुए कहा था कि फांसी के बारे में कोई भी फैसला करते समय समाज की सुरक्षा और मानवता की रक्षा की जरूरत ध्यान में रखनी होगी।

फांसी की जरूरत पर बल देते हुए सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा था कि यहां सवाल भारतीय दंड संहिता का प्रावधान बनाए रखने का नहीं है, बल्कि सवाल यह है कि भय पैदा करने वाले दंड को खत्म करने का क्या प्रभाव होगा? मौजूदा मुश्किल और अशांत माहौल में यह निरोधात्मक (डिटेरेंट) दंड अगर नहीं बनाए रखा गया तो देश में अराजकता छा जाएगी।

अपराधियों को छोड़ने से देश में हजारों निदरेषों की जान खतरे में पड़ जाएगी। 1कुछ ऐसे ही विचार पिछले महीने फांसी की सजा पर मंथन कर रहे विधि आयोग की कार्यशाला में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने व्यक्त किए थे।

दवे ने फांसी का विरोध कर रहे वक्ताओं से कहा था कि यहां मामला सभी दोषियों को फांसी देने का नहीं है। आज की तारीख में फांसी सिर्फ जघन्य विरले अपराध में दी जाती है। उन विरले अपराधियों का पक्ष लेने से पहले देश की एक अरब जनता की सुरक्षा सुनिश्चित होनी चाहिए। नागरिकों की सुरक्षा करना सरकार की जिम्मेदारी है।


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