महिलाओं को उनके स्वास्थ्य से जुड़ी बातों को साझा करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं कॉलेज छात्र
महिलाएं अक्सर अपने स्वास्थ्य विशेषकर माहवारी को लेकर बात करने में हिचकती हैं
शिप्रा सुमन, बाहरी दिल्ली महिलाएं अक्सर अपने स्वास्थ्य विशेषकर माहवारी को लेकर बात करने में हिचकती हैं। पिछड़ी और अशिक्षित महिलाएं ही नहीं बल्कि पढ़ी-लिखी महिलाएं भी इसपर चर्चा नहीं करना चाहती। ऐसे में दिल्ली के कुछ कॉलेज छात्र-छात्राएं इस मसले में जागरूकता का बीड़ा उठाते हुए उन्हें इन पर बात करने के लिए प्रेरित किया है। पिछले तीन वर्षों से विद्यार्थियों का यह समूह इस जागरूकता के लिए प्रयासरत है। वह न केवल महिलाओं को इस मामले में बातचीत करने का हौसला दे रहे हैं बल्कि जरुरतमंद महिलाओं को स्वास्थ्य सेवाएं और सैनेटरी पैड भी बांट रहे हैं। इन छात्राओं का मानना है कि यह महिलाओं से और उनके स्वास्थ्य से जुड़ा गंभीर मामला है जिसमें बदलाव की जरूरत है। झुग्गियों से लेकर स्कूल-कॉलेज में कैंपेन : इस अभियान की वर्तमान अध्यक्ष और पूर्व प्रोजेक्ट हेड काव्या मलहान ने बताया कि वह लगातार महिलाओं से संपर्क में हैं। द क्रिम्नेशन प्रोजेक्ट के तहत उनके समूह में 40 सदस्य हैं जो वोलेंटियर के रुप में भी कार्य करते हैं। उन्होंने बताया कि शुरुआत में निशुल्क सैनेटरी पैड देकर उन्होंने महिलाओं से इसके इस्तेमाल के बारे में बात की और परेशानियों को समझने का प्रयास किया। महिलाओं को यह बताया कि क्यों इसके बारे में बात करना जरूरी है।कैंपेन के दौरान महिलाओं को यह समझाते हैं कि यह कोई बीमारी या शर्माने की बात नहीं है। इस दौरान भी आप खुलकर अपनी दिनचर्या को जी सकते हों बशर्ते कि सैनेटरी पैड का बेहतर प्रयोग किया जाए। अब तक करीब 4000 महिलाओं से जुड़कर उन्हें इसके लिए जागरूक किया जा चुका है। इस कार्य में वालेंटियर काम करते हैं। अलग अलग क्षेत्रों में प्रोजक्ट हेड होते हैं। दक्षिणी दिल्ली, पूर्वी दिल्ली व उत्तरी दिल्ली समेत एनसीआर के स्कूल, कॉलेज व झुग्गियों में यह कैंपेन कार्य किया जा रहा है। सवाल-जवाब का सेशन: दिल्ली के श्री वेकेंटेश्वर कॉलेज के इन विद्यार्थियों ने इस कैंपेन के दौरान महिलाओं से सवाल जवाब का सेशन भी रखा है जिसमें उन्हें हर प्रकार की जिज्ञासाओं को दूर करने का अवसर दिया जाता है। इसमें स्कूली छात्राएं अधिक बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती हैं। वह सवाल तो पूछती ही हैं, साथ ही बाद में फोन पर भी संपर्क करती हैं। इनमें 13-14 वर्ष की आयु की छात्राएं शामिल हेाती है। काव्या ने बताया कि उनके इस प्रोजेक्ट में कई सामाजिक संस्थाओं से भी मदद प्राप्त होती है और वह उन्हें आर्थिक सहायता भी प्रदान करते हैं। इस दौरान महिलाओं के साथ 11 और 15 सेशन चलाए जाते हैं ताकि वह अपनी हर बात को खुलकर कह सकें।साथ ही 45 से अधिक आयु की महिलाओं से भी बात की जाती है जिनकी माहवारी खत्म होने के बाद कई तरह की समस्याएं आती हैं। पुरुष भी करते हैं सहयोग : समूह की सदस्य तान्या ने बताया कि महिलाओं की जागरूकता के दौरान कई पुरुषों से भी मुलाकात होती है। कई लोग बात नहीं करते लेकिन कुछ समझने का प्रयास करते हैं और अपनी बेटी और पत्नि के स्वास्थ्य को लेकर जागरूक होने का प्रयास करते हैं। वह सैनेटरी पैड भी खरीदते हैं । वह कई सवाल भी पूछते हैं। उनसे सवाल पूछते हैं और वह हमसे सवाल करती हैं जिससे यह सेशन और प्रभावी और कारगर साबित होता है। इस कार्य में आस्था मोहंती, अनन्य कुमार, श्वेता तंवर जैसे कई विद्यार्थी इनमें शामिल हैं।