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    दिल्ली के रैन बसेरों की खुली पोल: सफाई व्यवस्था बदहाल, जंग लगे अग्निशमन यंत्र दे रहे हादसों को दावत

    Updated: Wed, 03 Dec 2025 02:00 AM (IST)

    दिल्ली के रैन बसेरों की हालत चिंताजनक है। सफाई व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है और अग्निशमन यंत्र जंग खा रहे हैं, जिससे आग लगने की स्थिति में खतरा बढ़ ...और पढ़ें

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    आसफ अली रोड स्थित डुसिब के रैन बसेरे में बरामदे में जमीन पर सोते बेघर। जागरण

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली के रैन बसेरों में आग से ही नहीं बल्कि ठंड से भी बचाव के इंतजाम नहीं है। एक ओर जहां अधिकतर रैन बसेरो में अग्निशमन यंत्र नहीं है और प्रवेश व निकासी के एक ही द्वार है। वहीं, गद्दे व कंबल की कमी के साथ सफाई व्यवस्था बदतर स्थिति में है। दैनिक जागरण की पड़ताल में रैन बसेरों में आग से बचाव के इंतजामों में बड़ी लापरवाही के साथ ही सुविधाओं में भारी कमी देखी गई।

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    जामा मस्जिद के मीना बाजार रैन बसेरे के चार स्थाई कमरों में से किसी में अग्निशमन बचाव यंत्र नहीं था, जबकि एक-एक कमरों में करीब 30-30 लोग एक साथ रह रहे हैं, जिनके बेड आपस में सटे हुए हैं। कमरों में आने-जाने का एक ही रास्ता है। कोई आपातकालीन रास्ता नहीं है।

    उसमें रहते लोगों के मुताबिक अगर यहां आग लगती है तो बचाव के कोई इंतजाम नहीं है। पूरे कमरों में गद्दे, कंबल और कपड़े हैं। ऐसे में अग्निकांड में यहां स्थिति भयावह हो सकती है।

    बचाव के इंतजाम नाकाफी

    इसके उलट, ठंड से बचाव के इंतजाम नाकाफी दिखे। यहां तीन अस्थाई रैन बसेरों में केवल गद्दे रखे गए हैं। ओढ़ने के लिए कंबल नहीं है। गद्दे भी काफी पुराने हैं। किसी पर बेडशीट तक नहीं है। अस्थाई रैन बसेरों में गंदगी मिली तो शौचालय काफी खराब स्थिति में मिले। केयर टेकर से लेकर सफाई कर्मियों की संख्या आधी ही मिली। अस्थाई रैन बसेरों के लिए अभी न सफाई कर्मी तैनात हैं, न केयर टेकर।

    एक बेघर श्यामलाल ने बताया कि यहां गद्दे तो डाल दिए गए हैं, लेकिन कंबल नहीं है। ऐसे में रात में ठंड लगती है। अस्थाई टेंट जगह-जगह से खुले हुए हैं। जिससे हवा आती है। जमीन पर प्लाईवुड बिछाया गया है, जो आग तेजी से पकड़ सकता है।

    गलियारे में सोने को मजबूर

    इसी तरह, आसफ अली रोड स्थित रैन बसेरे में रात्रि में 100 से अधिक बेघर सोने आ रहे हैं। सोमवार की रात्रि में 118 बेघर ठिठुरने वाली रात काटने पहुंचे, लेकिन यहां बिस्तर की संख्या मात्र 68 ही है। ऐसे में कई लोग गलियारे में अपने कंबलों के साथ जमीन पर सोते मिले। यहां भी सफाई व्यवस्था बदहाल मिली।

    दक्षिणी दिल्ली में रैन बसेरों में भी रैन बसेरों में आश्रय लेने वाले लोगों का जीवन खतरे में ही है। संतनगर स्थित आस्थाकुंज पार्क में दो टीन शेड और दो टेंट वाले रैन बसेरे हैं। एक टीन शेड महिला, दूसरा पुरुष के लिए। इसी तरह एक टेंट पुरुष और दूसरा महिलाओं के रहने के लिए हैं। टेंट वाले दोनों रैनबसेरों का फर्श प्लाईवुड से बना है, जिस पर जली बीड़ी के डंठल और माचिस की तीलियां पड़ी मिलीं।

    जंग लगे अग्निशमन यंत्र

    अग्निशमन यंत्र भी जंग लगे, एक्सपायर मिले। आग लगने की सूरत में रेत से भरी रहने वाली बाल्टियां आधी खाली थीं। बोर्ड की तरफ से भोजन मुहैया कराया जाता है, फिर भी चारों टैंट के बाहर चूल्हे लगे छोटे सिलेंडर रखे हुए मिले। वहीं रैन बसेरे में टिनशेड के अंदर खराब गद्दों का ढेर लगा मिला।

    बीड़ी या माचिस की तीली की छोटी सी चिंगारी या अवैध छोटे सिलेंडर बड़े हादसों की वजह बन सकते हैं। जबकि, गद्दे, कंबल समुचित नहीं थे। पूर्वी दिल्ली में इहबास से लेकर जीटीबी अस्पताल पांच रेन बसेरे है। इनका संचालन एक संस्था कर रही है।

    अस्थाई रेन बसेरों में आग बुझाने के सिलेंडर है और रेत से भरी बाल्टी है। जबकि स्थायी बसेरे में आग से निपटने के कोई इंतजाम नहीं है। शास्त्री पार्क स्थित रैन बसेरे में भी इंतजाम खराब मिले।





    रैन बसेरों के संचालन में बड़ी लापरवाही बरती जा रही है। सुरक्षा के साथ सुविधाओं का अभाव है। कर्मचारी भी आधे हैं, जिसके चलते कई रैन बसेरे बिना केयर टेकर व सफाई कर्मचारियों के भगवान भरोसे चल रहे हैं, कर्मचारियों को भी वेतन भी आधा अधूरा मिल रहा है। ऐसे में बेघरों को काफी मुश्किलें आ रही है।

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    अभिषेक वाजपेई, अध्यक्ष दिल्ली शेल्टर्स होम वर्कर्स यूनियन