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दिल्ली पुलिस में पदोन्नति प्रक्रिया को लेकर रोष

-एक्जिक्यूटिव कैडर ने पदोन्नति प्रक्रिया को गलत बता दिल्ली हाई कोर्ट में दायर की थी याचिका -सा

By JagranEdited By: Published: Mon, 10 Sep 2018 11:30 PM (IST)Updated: Mon, 10 Sep 2018 11:30 PM (IST)
दिल्ली पुलिस में पदोन्नति प्रक्रिया को लेकर रोष
दिल्ली पुलिस में पदोन्नति प्रक्रिया को लेकर रोष

राकेश कुमार सिंह, नई दिल्ली : दिल्ली पुलिस में पदोन्नति प्रक्रिया को लेकर एक्जिक्यूटिव कैडर में भारी रोष है। एक तो पांच सालों से स्टेनो कैडर के साथ ही एक्जिक्यूटिव कैडर को पदोन्नति दिए जाने से कैडर के इंस्पेक्टर पहले से हताश थे। अब पदोन्नति में अनुसूचित जाति व जनजाति के अलावा महिलाओं को भी आरक्षण दिए जाने से उनमें रोष हैं।

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हाल में एक इंस्पेक्टर ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर पदोन्नति प्रक्रिया को लेकर उचित नियम बनाने व ढाई साल पूर्व पदोन्नत किए गए स्टेनो कैडर के 18 एसीपी को अस्थायी ही रहने देने आदि की मांग की गई थी। इंस्पेक्टर की याचिका पहली ही सुनवाई में खारिज कर दी गई। जिसके बाद केंद्रीय गृहमंत्रालय ने पदोन्नत किए गए 165 नए एसीपी की सूची जारी कर दी।

मुख्यालय सूत्रों के मुताबिक जिन 165 एसीपी की सूची जारी की गई है उनमें 110 पुराने एसीपी हैं। जिन्हें 2016 में दिल्ली पुलिस के तत्कालीन पुलिस आयुक्त आलोक कुमार वर्मा की सिफारिश पर गृहमंत्रालय ने लुक आफ्टर यानी अस्थायी एसीपी बना दिया था। इनमें स्टेनो व एक्जिक्यूटिव दोनों कैडर के इंस्पेक्टर शामिल थे। नाराज धड़े का दावा है कि वर्मा ने स्टेनो कैडर में अपने खास इंस्पेक्टर अनिल चटवाल को पदोन्नति दिलाने के लिए उनके साथ 17 अन्य स्टेनो कैडर के इंस्पेक्टरों को भी शामिल कर लिया था। ताकि चटवाल को लेकर कोई विवाद न खड़ा हो। वर्मा 11 महीने तक ही आयुक्त के पद पर रहे थे। कहा जाता है कि 11 महीने में सिपाही से लेकर एसीपी तक जितने भी तबादले हुए चटवाल की उसमें महत्वपूर्ण भूमिका थी। अबतक 110 एसीपी स्थायी नहीं हो पाए थे। दो साल से गृहमंत्रालय में डिपार्टमेंटल प्रमोशनल कमेटी (डीपीसी) की बैठक भी नहीं हो रही थी, जिस कारण ऐसा हश्र हुआ। अब जाकर पिछले हफ्ते डीपीसी की बैठक होने पर 165 को स्थायी रूप से एसीपी बनाने के लिए चयनित किया गया। जिनमें ढाई साल पहले अस्थायी बनाए गए 110 एसीपी को स्थायी कर दिया गया और इस बार नए 55 इंस्पेक्टरों को स्थायी एसीपी बना दिया गया।

दिल्ली पुलिस में मिनिस्ट्रियल जिसे स्टेनो कैडर कहा जाता है। इसमें सीधे हवलदार अथवा एएसआइ के पद पर भर्ती होती है। जबकि एक्जिक्यूटिव कैडर में सब इंस्पेक्टर पद पर भर्ती होती है। दोनों की भर्ती अलग-अलग होते हैं। स्टेनो कैडर के कर्मी आइपीएस अधिकारियों के कार्यालय, थानों व अन्य यूनिटों में कार्यालय के कामकाज संभालते हैं। उनकी फील्ड ड्यूटी नहीं लगती है। वे इंस्पेक्टर बनने के बाद महज तीन सालों में पदोन्नत पाकर एसीपी भी बन जाते हैं, जबकि एक्जिक्यूटिव कैडर की फील्ड ड्यूटी होती है। सब इंस्पेक्टर केस के जांच अधिकारी होते हैं। इंस्पेक्टर बनने पर थानाध्यक्ष बनाया जाता है। कानून व्यवस्था संभालने की जिम्मेदारी रहती है। वे इंस्पेक्टर बनने के करीब 17-18 साल बाद एसीपी बन पाते हैं।

इंस्पेक्टर अतुल सूद द्वारा दायर याचिका में इन्हीं मसलों को हाई कोर्ट में रखा गया था कि जब दोनों कैडर की भर्ती अलग-अलग होती है तब पदोन्नति के नियम भी अलग-अलग होने चाहिए। इंस्पेक्टर तक जब दोनों के कैडर अलग-अलग होते हैं तो एसीपी बनने पर कैडर मर्ज क्यों कर दिए जाते हैं। इससे एग्जिक्यूटिव कैडर की वरीयता पर प्रभाव पड़ता है। स्टेनो कैडर को जूनियर रहते हुए एक्जिक्यूटिव कैडर के बराबर लाकर खड़ा कर दिया जाता है। इससे फोर्स में अनुशासन पर भी प्रभाव पड़ सकता है।

सोमवार को हाई कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए याचिकाकर्ता इंस्पेक्टर को कैट में जाने को कहा। कैट से समस्या का हल न होने पर दस्तावेज के साथ दोबारा हाई कोर्ट में आने को कहा है।


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