वकीलों की नियुक्ति पर दिल्ली सरकार व एलजी आमने-सामने
वकीलों की नियुक्ति के मामले में दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल निवास आमने-सामने आ गए हैं। उपराज्यपाल ने कुछ माह पहले उत्तरी पूर्वी जिला में हुए सांप्रदायिक दंगों के मामले में पैरवी के लिए दिल्ली पुलिस द्वारा बनाए गए वकीलों के पैनल को सही माना है। जिस पर दिल्ली सरकार ने कड़ा एतराज जताया है। उपराज्यपाल के इस कदम को सरकार के कार्यों में दखलअंदाजी बताया है। दिल्ली सरकार ने कहा है कि वकीलों का पैनल बनाने का अधिकार दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार दिल्ली सरकार के पास। सरकार ने बृहस्पतिवार को कैबिनेट बैठक कर फैसला लिया कि दिल्ली सरकार द्वारा बनाए गए पैनल को मंजूरी दी जाए। दिल्ली सरकार ने कैबिनेट के फैसले की यह ़फाइल उपराज्यपाल के पास भेज दी है।
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : वकीलों की नियुक्ति के मामले पर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल निवास आमने-सामने आ गए हैं। उपराज्यपाल ने उत्तर- पूर्वी जिले में हुए सांप्रदायिक दंगे के मामले में पैरवी के लिए दिल्ली पुलिस द्वारा बनाए गए वकीलों के पैनल को सही माना है। इस पर दिल्ली सरकार ने कड़ा एतराज जताते हुए सरकार के कार्यो में दखल बताया है। कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार वकीलों का पैनल बनाने का अधिकार दिल्ली सरकार के पास है। बृहस्पतिवार को दिल्ली सरकार ने कैबिनेट बैठक के बाद पैनल की सूची उपराज्यपाल को भी भेज दी है।
2015 में आप के सत्ता में आने के बाद से वकीलों की नियुक्ति का मामला कई बार गर्मा चुका है। ताजा तनातनी दिल्ली दंगे में नियुक्त वकीलों के पैनल को लेकर शुरू हुई है। दिल्ली सरकार के सूत्रों का कहना है कि अप्रैल में दिल्ली पुलिस ने इन मामलों में वकीलों का पैनल बनाकर सरकार के पास भेजा था। इसे दिल्ली सरकार ने यह कहकर निरस्त कर दिया कि इसमें पुलिस अधिकारियों के रिश्तेदार वकील हैं। इसके अलावा पैनल में शामिल कुछ वकीलों को प्रैक्टिस करते हुए 10 साल भी नही हुए थे। इसके बाद दिल्ली सरकार ने खुद पैनल बनाकर दिल्ली पुलिस को भेजा था। पुलिस ने इसे न मानकर पुराने पैनल में संशोधन करके उसे फिर सरकार के पास भेज दिया। इस पर दिल्ली सरकार ने पुलिस से पैनल नहीं मानने की वजह पूछी थी। इसी बीच एक मई को उपराज्यपाल ने अपने अधिकारों का प्रयोग कर यह फाइल मंगवा ली और पैनल को मंजूरी देने के साथ ही कहा कि दिल्ली सरकार को पुलिस की बात माननी चाहिए।
इधर 17 मई को दिल्ली के गृह मंत्री सत्येंद्र जैन ने इस मामले में रिपोर्ट बनाई। इसमें लिखा कि मुख्य सवाल यह है कि सरकारी वकील नियुक्त करने का अधिकार दिल्ली पुलिस के पास नहीं बल्कि दिल्ली सरकार के पास है। सीआरपीसी में भी इसका जिक्र है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन का भी हवाला दिया है। उन्होंने कहा कि केवल संविधान को बचाने के लिए ही एलजी चुनी सरकार के निर्णय को लेकर कोई मामला राष्ट्रपति को भेज सकते हैं। अगर जनहित के मसले को खारिज करेंगे तो उसका उन्हें कारण बताना होगा। इसके बाद 21 मई को गृह मंत्री जैन एलजी से भी मिले। उसी दिन दिल्ली सरकार ने एलजी को फाइल भेजी। 23 मई को एलजी ने कहा कि वह संविधान के मुताबिक काम करेंगे। आप अपनी कैबिनेट में फैसला लीजिए, जो फैसला होगा उसे राष्ट्रपति को भेजा जाएगा। इसके बाद बृहस्पतिवार को दिल्ली कैबिनेट ने फैसला लिया कि वकीलों का पैनल दिल्ली सरकार की सूची के मुताबिक तय किया जाए। यह फाइल उपराज्यपाल को भेज दी गई है। दिल्ली हाई कोर्ट ने 2016 में जबकि 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने पब्लिक प्रॉसिक्यूटर नियुक्त करने की शक्ति दिल्ली सरकार को प्रदान की थी।