घोषणापत्रों और भाषणों तक ही सिमट गई पर्यावरण की चिता
इसे विडंबना कहें या उदासीनता लेकिन तमाम सरकारी और गैर सरकारी दावों से परे दिल्ली की आबोहवा साल दर साल बद से बदतर होती जा रही है। चाहे वह वाहनों से निकलने वाला धुंआ हो या सड़क पर उड़ने वाली धूल सूक्ष्म और अतिसूक्ष्म कणों की बढ़ती संख्या ने आबोहवा में ढाई गुणा तक जहर घोल दिया है।
दिल्ली का एजेंडा
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-बदतर होती जा रही दिल्ली की हवा, नहीं हो रहे ठोस उपाय
-ग्रीन पीस ने दिल्ली को बताया विश्व का सर्वाधिक प्रदूषित शहर
संजीव गुप्ता, नई दिल्ली
इसे विडंबना कहें या उदासीनता, लेकिन तमाम सरकारी और गैर सरकारी दावों से परे दिल्ली की आबोहवा साल दर साल बद से बदतर होती जा रही है। चाहे वह वाहनों से निकलने वाला धुंआ हो या सड़क पर उड़ने वाली धूल, सूक्ष्म और अतिसूक्ष्म कणों की बढ़ती संख्या ने वातावरण में ढाई गुणा तक जहर घोल दिया है। चिताजनक यह कि पहले से प्रदूषित और जहरीली हवा में कैंसर कारक तत्व भी तेजी से बढ़ रहे हैं। आलम यह है कि दिल्ली के प्रदूषण में 61 फीसद हिस्सा तो वाहनों और औद्योगिक इकाइयों के धुएं का ही है। पीएम 2.5 और पीएम 10 भी यहां तय सीमा से औसतन 76 फीसद ज्यादा है। हैरानी की बात यह कि सरकारी स्तर पर भी प्रदूषण से निपटने के लिए योजनाएं तो तमाम बन रही हैं, लेकिन उनके क्रियान्वयन को लेकर गंभीरता कहीं नजर नहीं आती। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की एक शोध रिपोर्ट में सामने आया है कि दिल्ली की आबोहवा में पोलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाईड्रोकार्बन, डायोक्सीन, बेंजीन और पेस्टीसाइड की मात्रा काफी खतरनाक स्तर पर पहुंच रही है। सीपीसीबी ने इन सभी प्रदूषक तत्वों को कार्सेजैनिक अर्थात कैंसरजन्य की श्रेणी में रखा है। शायद इसीलिए दिल्ली की जहरीली होती आबोहवा पर देश की संसद भी गंभीरता जता चुकी है। हाल ही में गैर सरकारी संस्था ग्रीन पीस ने भी अपनी रिपोर्ट में दिल्ली को विश्व का सर्वाधिक प्रदूषित शहर बताया है।
पराली का विकल्प जरूरी, निगरानी संग कार्रवाई की दरकार
पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली नहीं जलाई जाए, इस दिशा में किसानों को और बेहतर विकल्प देना जरूरी है। इस कार्य के लिए केंद्र सरकार 1152 करोड़ रुपये का बजट आवंटित कर चुकी है। इसके अतिरिक्त दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) तथा हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मिलकर दिल्ली एनसीआर में एयर क्वालिटी मॉनिटरिग स्टेशन तो बढ़ा रहे हैं, इसी माह के अंत तक इनकी संख्या 141 तक पहुंच जाने का अनुमान है। लेकिन निगरानी के साथ-साथ बेहतर एक्शन प्लान बनाना भी जरूरी है। आमतौर पर इसमें लापरवाही बरती जाती है। राष्ट्रीय स्वच्छ वायु अभियान को फंड और प्लान की दरकार
10 जनवरी से दिल्ली-एनसीआर सहित देश के 102 शहरों के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु अभियान शुरू किया गया। इस अभियान के तहत अगले पांच सालों में इन शहरों का प्रदूषण 30 फीसद तक घटाने का लक्ष्य रखा गया है। तात्कालिक के साथ-साथ ही कुछ दीर्घकालिक उपायों पर भी काम होगा। लेकिन, अभियान के लिए पर्याप्त फंड और राज्यों के स्तर पर पुख्ता प्लानिग पर काम ही नहीं किया गया। अभी तक नहीं आए ग्रीन क्रैकर्स
दिल्ली की सेहत के अनुकूल ग्रीन क्रैकर्स लाने की बात दो साल से चल रही है। कहा जा रहा है कि यह पटाखे जलने पर भी प्रदूषण नहीं फैलाएंगे। इनमें पानी की बूंदें समाहित होंगी जोकि धुएं को वहीं दबा देंगी। बताया जाता है कि इस तरह के पटाखे केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की निगरानी में तैयार किए जा चुके हैं। अब सिर्फ उनकी टेस्टिग का काम चल रहा है। लेकिन यह टेस्टिग कब खत्म होगी एवं यह पटाखे बाजार में कब तक आएंगे, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। नहीं लगा औद्योगिक इकाइयों में पॉल्यूशन मीटर
दिल्ली- एनसीआर में खतरनाक श्रेणी वाली सभी औद्योगिक इकाइयों में प्रमाणित पॉल्यूशन मीटर स्थापित करने की योजना है। इस मीटर से प्रदूषण का स्तर ही पता नहीं चलेगा बल्कि यह भी स्पष्ट होगा कि उसे कम करने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं। एनसीआर के ईंट भट्ठों, हॉट मिक्स प्लांट और स्टोन क्रेशरों पर भी खास निगाह रखी जाएगी। लेकिन यह योजना भी कागजों तक ही सिमटी हुई है। नहीं आई ई बसें, नहीं बढ़े मेट्रो कोच और ट्रकों का प्रवेश भी नहीं हुआ बंद
सार्वजनिक परिवहन सेवा को मजबूत करने के लिए दिल्ली में अतिरिक्त बसों को खरीदने की योजना है। इस दिशा में एक हजार लो फ्लोर, एक हजार स्टैंडर्ड और एक हजार इलेक्ट्रिक बसों का ऑर्डर भी दिया जाना है। इसके अलावा मेट्रो में कोच छह से बढ़ाकर आठ करने का प्रस्ताव है। रेडियो फ्रीक्वेंसी तकनीक के जरिये दिल्ली को बायपास करने वाले ट्रकों का प्रवेश दिल्ली में बंद करने की योजना भी शुरू होने को है। लेकिन, इन सभी पर भी कागजी और जबानी जमा खर्च ही ज्यादा होता रहा है। मशीनों से सफाई 40 फीसद बढ़ाने का लक्ष्य अधूरा
दिल्ली में सड़कों की सफाई 40 फीसद तक मशीनों से किए जाने का प्रस्ताव है। अभी यह 15 फीसद तक है। लोक निर्माण विभाग, सिचाई विभाग और तीनों नगर निगमों को सड़क किनारे और नालों के दोनों तरफ घास लगाने को भी कहा गया है। धूल कम करने के लिए सड़कों के किनारे समय-समय पर पानी का छिड़काव करने की योजना भी बनाई गई है। लेकिन इस योजना को भी अभी तक पूर्ण रूप से क्रियान्वित नहीं किया जा सका है। ठोस कचरे के 100 फीसद निपटान की योजना सालों से अधूरी
दिल्ली-एनसीआर के सभी स्थानीय निकायों और जिला उपायुक्तों को ठोस कचरे का 100 फीसद निपटान करने का प्लान तैयार करने का निर्देश दिया गया है। इस प्लान पर हर समय नजर रखे जाने की भी व्यवस्था होगी। लैंडफिल साइट्स का बोझ कम किया जाएगा। वहां मीथेन और एथेनॉल गैस प्लांट लगाने का भी प्रस्ताव है। लेकिन, यह योजना भी कागजों पर तो सालों से चल रही है, हकीकत में कब आएगी, किसी को नहीं पता। तकनीक प्रबंधन पर जोर भी कागजी
हर साल नई नई तकनीकों के सहारे प्रदूषण कम करने की दिशा में काम करने की बातें की जाती हैं। आइटीओ सहित बहुत से चौराहों और 30 बसों की छतों पर प्रदूषित हवा को स्वच्छ करने वाले वायु फिल्टर संयंत्र तो अवश्य लगाए गए, लेकिन इसी तर्ज पर कुछ अन्य प्रयोग नहीं किए जा सके। इसके अलावा प्रदूषण की वजहों तथा स्वास्थ्य पर पड़ने वाले इसके प्रभाव सहित कुछ अन्य विषयों पर शोध अध्ययन भी पाइपलाइन में ही हैं। इन अध्ययनों की रिपोर्ट पर भी विभिन्न उपाय एवं योजनाओं पर काम किया जाना है।
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दिल्ली के प्रदूषण में किसका कितना हिस्सा
-39 फीसद वाहनों से निकले धुएं का।
-22 फीसद औद्योगिक इकाइयों के धुएं का।
-18 फीसद हवा के साथ आने वाली धूल का।
-6 फीसद रिहायशी इलाकों के प्रदूषण का।
-3 फीसद ऊर्जा संयंत्रों से निकले धुएं का।
-12 फीसद प्रदूषण अन्य स्त्रोतों का रहता है।
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दिल्ली-एनसीआर सहित देश भर में प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है। दिल्ली में तो हर नागरिक प्रदूषित हवा में सांस लेने को विवश है। दिल्लीवासी शुद्ध हवा के लिए अन्य शहरों में पलायन करने के बारे में भी सोचने लगे हैं। हालांकि इससे निपटने के लिए योजनाएं तमाम हैं, कांग्रेस के कार्यकाल में इन पर काम भी किया गया है, लेकिन आम आदमी पार्टी सरकार के राज में इन पर गंभीरता से अमल बहुत कम होता है। प्रदूषण से जंग में ईमानदारी और गंभीरता दोनों लानी होंगी।
-शीला दीक्षित, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ----------
मुख्यमंत्री अरविद केजरीवाल आजकल दिल्ली को दुनिया का नंबर वन शहर बनाने के दावे कर रहे हैं। विकास के मामले में तो खैर उन्होंने कुछ किया नहीं, लेकिन दिल्ली को दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी जरूर बना दिया है। केजरीवाल हमेशा बीजेपी के खिलाफ झूठा प्रचार करने और अपनी नाकामियों का ठीकरा केंद्र सरकार के सिर फोड़ने में व्यस्त रहते हैं, लेकिन ग्रीन सेस की राशि का इस्तेमाल करने के लिए तो दिल्ली सरकार स्वतंत्र थी। फिर उन्होंने कोई नीति बनाकर उस पैसे के जरिए दिल्ली को प्रदूषण मुक्त बनाने की पहल क्यों नहीं की? केजरीवाल सरकार ने सत्ता में आते ही दिल्ली से प्रदूषण को कम करने के लिए इलेक्ट्रिक बसें लाने की बात कही थी, लेकिन चार साल बाद भी आज तक सरकार इलेक्ट्रिक बसें खरीदने के लिए टेंडर तक जारी नहीं कर पाई है।
-मनोज तिवारी, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष।
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दिल्ली में वायु प्रदूषण की रोकथाम को लेकर दिल्ली की आप सरकार ने यथासंभव प्रयास किए हैं। सड़कों पर पानी के छिड़काव के लिए पानी के तीन सौ टैंकर चलाए जा रहे हैं। सड़कों की सफाई के लिए मैकेनिकल स्वीपिग मशीनें चल रही है। थर्मल पावर प्लांट बंद कर रखा है। प्रदूषण पर अंकुश के लिए 83 पर्यावरण मार्शल लगाए गए हैं। कूड़े की पत्तियों को जलाने पर प्रतिबंध लगा रखा है। खुले में मलबा डालने पर प्रतिबंध है। मकान बनाने के लिए निर्माण स्थल को चारों ओर टीन से कवर करना है। दिल्ली में हमने 90 फीसद फैक्ट्रियां सीएनजी में बदल दी हैं। तीनों नगर निगमों, नई दिल्ली नगरपालिका परिषद व दिल्ली छावनी प्रशासन को प्रदूषण के मामले में सख्त निर्देश दिए गए हैं। हमें प्रदूषण के स्त्रोत को भी हर हाल में जड़ से समाप्त करना है।
-गोपाल राय, प्रदेश संयोजक, आम आदमी पार्टी