दिल्ली बनी राजधानी, मगर क्यों? ब्रिटिश किंग जॉर्ज पंचम के फैसले के पीछे 1911 के सीक्रेट प्रोजेक्ट की कहानी
दिल्ली, जो आज भारत की राजधानी है, की कहानी 1911 में शुरू हुई जब जॉर्ज पंचम ने कलकत्ता से दिल्ली को राजधानी बनाने का फैसला किया। यह निर्णय 'सीसेम प्रोज ...और पढ़ें

1911 का दिल्ली दरबार। फोटो क्रेडिट: indianculture.gov.in
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आज की नई दिल्ली, जो भारत की राजधानी के रूप में अपनी भव्यता के लिए जानी जाती है, उसके जन्म की कहानी किसी फिल्मी थ्रिलर से कम नहीं है।
क्या आप जानते हैं कि ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम ने कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) से दिल्ली को राजधानी बनाने का फैसला पूरी तरह से गुप्त रखा था? यहां तक कि उस वक्त के वायसराय को भी इस 'सीक्रेट प्लान' की हवा नहीं थी।
लेखक आदित्य अवस्थी की किताब 'दास्तान ए दिल्ली' के अनुसार, राजधानी स्थानांतरण का यह पूरा ऑपरेशन 'सीसेम प्रोजेक्ट' नाम के एक कोडनेम के तहत चलाया गया था।
'सीसेम प्रोजेक्ट': क्यों रखी गई थी इतनी गोपनीयता?
ब्रिटिश राज को इस बात का डर था कि अगर राजधानी बदलने की जानकारी पहले ही कलकत्ता के प्रभावशाली लोगों और व्यापारियों को पता चल गई, तो वे हंगामा खड़ा कर सकते थे। यही वजह थी कि किंग जॉर्ज पंचम समेत सिर्फ 20-25 लोगों को ही इस भनक थी।
यहां तक कि इस घोषणा के वक्त किंग जाॅर्ज पंचम के पास बैठीं क्वीन मैरी तक को इसकी जानकारी नहीं थी, वे भी इस घोषणा से अचंभित रह गईं थीं। दावा किया जाता है कि तत्कालीन वायसराय लाॅर्ड हार्डिंग को भी इसका पता नहीं था। इतिहासकार इसे 'बेस्ट केप्ट सीक्रेट ऑफ इंडिया' भी बताते हैं।
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80 हजार की भीड़ के सामने हुई थी दिल्ली बनाने की घोषणा
12 दिसंबर 1911 को दिल्ली दरबार में किंग जॉर्ज पंचम ने 80 हजार से ज्यादा की भीड़ के सामने यह सामान्य दावा किया कि सरकार कलकत्ता से दिल्ली राजधानी स्थानांतरित करने के लिए कटिबद्ध है।
अजीब बात यह थी कि जब किंग जाॅर्ज पंचम यह घोषणा कर रहे थे, तब उनके पास ऐसी कोई भी योजना नहीं थी। उन्हें बस ब्रिटिश नागरिकों और उनके समर्थकों के सामने 'शासक' की तरह अपना हक जताना भर था।
राजधानी स्थानांतरित करने की असली घोषणा तो 20 मार्च 1912 को हुई थी, जिसके बाद ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स 'एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर' को नई दिल्ली के निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी गई।
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बंगाल विभाजन और राजनीतिक दांव से कलकत्ता से हटी राजधानी
1911 में राजधानी बदलना केवल प्रशासनिक फैसला नहीं, बल्कि ब्रिटिश साम्राज्य का एक राजनीतिक दांव भी था। 1905 में लॉर्ड कर्जन ने बंगाल को विभाजित किया था, जिससे वहां राष्ट्रवादी भावनाएं और भड़क गई थीं। स्वदेशी आंदोलन का जन्म हुआ।
कलकत्ता क्रांतिकारियों की गतिविधियों का केंद्र बनने लगा। अंग्रेजों के लिए वहां शासन करना मुश्किल हो गया। ब्रिटिशों ने प्रशासनिक केंद्रों को अलग-थलग करने के लिए कलकत्ता से छुटकारा पाना चाहा। इस स्थानांतरण को ब्रिटिश सरकार का कलकत्ता से छुटकारा भी माना गया।
दिल्ली को नई राजधानी बनाने का सबसे मुख्य कारण इसकी लोकेशन थी, ये देश के बीतों बीच है। कलकत्ता देश के पूर्व किनारे पर था, जहां से शासन चलाना थोड़ा मुश्किल होता था। दिल्ली का रेल और सड़क मार्ग से जुड़ाव भी बेहतर था। गर्मियों के दौरान कलकत्ता के बजाय दिल्ली से शिमला पहुंचना भी आसान था।
लुटियंस और बेकर ने वायसराय लॉर्ड हार्डिंग को 25 अगस्त 1911 को लिखे पत्र में साफ किया था कि दिल्ली उत्तर भारत की भौगोलिक और सांस्कृतिक राजनीति के संदर्भ में उपयुक्त है।
नियंत्रण में भी आसानी होती, दिल्ली से भारत के बड़े हिस्से और दूर-दराज के प्रांतों पर नियंत्रण बनाए रखना आसान था। वहीं, इसका ऐतिहासिक महत्व भी था। दिल्ली सदियों से भारत की राजधानी रही थी। पुरानी दिल्ली के किले और शहर की भव्यता इसे ऐतिहासिक रूप से भी मुफीद जगह बनाती थी।
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'नई दिल्ली' का जन्म और 'दिल्ली' नाम की दिलचस्प कहानी
राजधानी की घोषणा के बाद प्रशासनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए जिस नए शहर का जन्म हुआ, उसे 'नई दिल्ली' का नाम दिया गया। सर एडविन लुटियंस और सर हर्बर्ट बेकर इसके आर्किटेक्ट थे।
नई दिल्ली बनाने के लिए लुटियंस और बेकर ने जो स्थान चुना, वो था शाहजहानाबाद का दक्षिणी मैदानी इलाका और रायसीना की पहाड़ी पर वायसराय हाउस, यही आज राष्ट्रपति भवन है। राजपथ, नार्थ-साउथ ब्लॉक, संसद भवन आदि की रूपरेखा तैयार की गई।
वायसराय लॉर्ड हार्डिंग इसे चार साल में तैयार करना चाहते थे, लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के कारण काम धीमा पड़ गया। 1927 में इसका नाम 'नई दिल्ली' रखा गया और 1931 में यह आधिकारिक रूप से भारत की राजधानी बन गई।
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ढिल्लू से दिल्ली या ढीली से बनी दिल्ली ?
दिल्ली नाम को लेकर भी कई रोचक कहानियां हैं। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि दिल्ली का नाम मौर्य वंश के राजा 'ढिल्लू या दिल्लू' के नाम पर पड़ा, जिन्होंने इसे पहली बार राजधानी बनाया।
कुछ लोग मानते हैं कि यह इंद्रप्रस्थ है, क्योंकि दिल्ली को पहले इसी नाम से जाना जाता था। कहा जाता है कि पांडवों ने इसे बसाया था। वहीं, चंदबरदाई रचित पृथ्वीराज रासो के अनुसार दिल्ली का नाम ढिली से निकला।
एक किंवदती के मुताबिक तोमर वंश के राजा अतंगपाल ने यहां पर लोहे का एक स्तंभ यानी खंभा लगवाया था, जो ढीला पड़ गया। इसे सुधारने के सारे प्रयास नाकाम रहे, जिसकी वजह से लोग इस क्षेत्र को ढिल्ली कहने लगे।
हालांकि जो भी है, लेकिन जब आधुनिक दिल्ली की बात आएगी तो नई दिल्ली ब्रिटिश वास्तुशिल्प और भारतीय संस्कृति के एक अनूठे संगम के लिए जानी जाएगी, जिसकी बुनियाद एक गुप्त 'सीसेम प्रोजेक्ट' में रखी गई थी।

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