फार्म में जन्मतिथि की गलत जानकारी देने पर रद नहीं कर सकते उम्मीदवारी
विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली सिविल सेवा परीक्षा-2017 की मुख्य परीक्षा पास करने के बाद साक्षात्कार
विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली
सिविल सेवा परीक्षा-2017 की मुख्य परीक्षा पास करने के बाद साक्षात्कार से पहले अभ्यर्थी की उम्मीदवारी रद करने के मामले में केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण व संघ लोक सेवा आयोग के फैसले को रद करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति रेखा पल्ली व न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ ने कहा कि जन्मतिथि की जानकारी देने में अभ्यर्थी से हुई चूक को गलत तरीके से नहीं देखा जाना चाहिए। वह भी तब, जब वह आइआइटी से इंजीनिय¨रग कर चुका है और अनुसूचित जाति से है। अंतिम दौर में अभ्यर्थी की उम्मीदवारी को रद करना दंडात्मक कार्रवाई होगी।
अभ्यर्थी अनुज प्रताप सिंह ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें अधिकरण ने जन्मतिथि के संबंध में गलत जानकारी देने पर संघ लोक सेवा आयोग द्वारा उसकी उम्मीदवारी रद करने के फैसले को सही ठहराते हुए आवेदन रद कर दिया था। याची ने सिविल सेवा परीक्षा-2016 में जन्मतिथि से जुड़ी गलत जानकारी दी थी। उस समय साक्षात्कार के दौरान उसे शपथ पत्र देकर गलती सुधार करने का मौका दिया गया था। याची ने सिविल सेवा परीक्षा-2017 के आवेदन में भी यही गलती दोहराई। इस पर संघ लोक सेवा आयोग ने उसकी उम्मीदवारी रद कर दी थी, लेकिन आयोग के फैसले को याचिकाकर्ता ने जब केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण में चुनौती दी तो उसने संघ लोक सेवा आयोग को याची को साक्षात्कार के लिए अनुमति देने का आदेश दिया। याचिकाकर्ता का 9 अप्रैल 2018 को साक्षात्कार और 10 अप्रैल को मेडिकल टेस्ट हुआ, लेकिन 27 अप्रैल को जब परिणाम घोषित हुए तो उसका परिणाम रोक लिया गया, क्योंकि उसका मामला अधिकरण में लंबित था। 10 जुलाई को अधिकरण ने याची का आवेदन रद कर दिया। अधिकरण ने कहा कि याची की गलती लापरवाही नहीं, बल्कि जानबूझकर की गई गलती थी। यह मानना संभव नहीं है कि एक व्यक्ति को अपनी जन्मतिथि याद नहीं है। याचिका पर दोनों पक्षों को सुनने के बाद हाई कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने कहा कि यह विवाद का विषय नहीं हो सकता कि याचिकाकर्ता सिविल सेवा परीक्षा-2016 व 2017 के फार्म में जन्मतिथि 30 मार्च 1991 के बजाए 31 मार्च 1991 भरकर कुछ हासिल करना चाहता था। जन्मतिथि में हुई यह गलती पूरी तरह से तब महत्वहीन हो जाती है, जब याची के दसवीं के प्रमाण पत्र में उसकी जन्मतिथि 30 मार्च 1991 ही दर्ज है। पीठ ने कहा कि यहां यह भी ध्यान देने वाली बात है कि संघ लोक सेवा आयोग ने ही याची को इस गलती को साक्षात्कार के दौरान सुधारने की अनुमति दी थी। ऐसा कोई भी साक्ष्य अदालत के समक्ष नहीं आया कि याची ने जानबूझकर जन्मतिथि की गलत जानकारी दी है। पीठ ने अधिकरण के फैसले को रद करते हुए संघ लोक सेवा आयोग को याची का परीक्षा परिणाम घोषित करने और अगर वह सफल है तो मेरिट के आधार पर उसकी चयन प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया है।