दिल्ली हाईकोर्ट ने पति के पक्ष में तलाक के फैसले को रखा बरकरार, कहा- पत्नी का व्यवहार मानसिक क्रूरता के बराबर था
दिल्ली हाई कोर्ट ने तलाक से जुड़े एक मामले में पारिवारिक अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए पति के पक्ष में फैसला दिया है। अदालत ने कहा कि शादी शुरू से ...और पढ़ें
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दिल्ली हाई कोर्ट ने पति के पक्ष में दिए गए तलाक के फैसले को बरकरार रखा।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। तलाक से जुड़े पारिवारिक अदालत के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने पति के पक्ष में दिए गए तलाक के फैसले को बरकरार रखा। अदालत ने पाया कि शादी शुरू से ही अधूरी रही और अपील करने वाली पत्नी का व्यवहार मानसिक क्रूरता के बराबर था।
न्यायमूर्ति अनिल क्षत्रपाल व न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने कहा कि छह मई 2017 को शादी के बाद से पति-पत्नी केवल थोड़े समय के लिए एक साथ रहे और 26 जून 2017 से लगातार अलग रह रहे हैं। अदालत ने रिकॉर्ड पर लिया कि पारिवारिक अदालत ने पाया कि काउंसलिंग सेशन और कार्यवाही के दौरान सुलह के कई प्रयासों के बावजूद दोनों पक्ष एक साथ रहना फिर से शुरू नहीं किया।
अदालत ने उक्त टिप्पणी पारिवारिक अदालत के निर्णय को चुनौती देने वाली पत्नी की याचिका पर की। पति ने तर्क दिया था कि शादी शुरू से ही अधूरी रही और अपीलकर्ता ने शारीरिक संबंध और सामान्य वैवाहिक जिम्मेदारियां नहीं निभाई। वहीं, महिला ने आराेपों से इन्कार करते हुए तर्क दिया कि वह हमेशा प्रतिवादी के साथ रहने और अपने वैवाहिक कर्तव्यों का पालन करने के लिए तैयार थी।
महिला ने दलील दी कि याची और उसके परिवार के सदस्यों ने उससे दहेज और पैसे की मांग की और ऐसी गैरकानूनी मांगों को मानने से इन्कार करने पर उसके साथ दुर्व्यवहार किया गया। हालांकि, अदालत ने पाया कि महिला द्वारा लगाए गए दहेज की मांग के आरोपों को पारिवारिक अदालत ने तथ्यों के अभाव में खारिज कर दिया था।
अदालत ने कहा कि शादी के शुरूआत से ही लंबे समय तक लगातार अलग रहना इस नतीजे का समर्थन करती है कि शादी का रिश्ता शुरुआती दौर में ही बुरी तरह टूट गया था।

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