दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा सिर पर मैला ढोने की प्रथा 'कलंक' है
दिल्ली उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी में सिर पर मैला ढोने की प्रथा होने को 'कलंक' बताया है। कोर्ट ने कहा ऐसी स्थिति यहां तब है, जबकि कानून मेंं मैला ढोना प्रतिबंधित है।
नई दिल्ली, जागरण संवाददता। दिल्ली उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी में सिर पर मैला ढोने की प्रथा होने को 'कलंक' बताया है। कोर्ट ने कहा ऐसी स्थिति यहां तब है, जबकि कानून मेंं मैला ढोना प्रतिबंधित है। न्यायमूर्ति बीडी अहमद व न्यायमूर्ति आशुतोष कुमार की खंडपीठ ने कहा कि भारत गरीब लोंंगो का देश है, लेकिन गरीब लोगोंं के लिए यहां कोई नहींं है।
सुनवाई के दौरान दिल्ली राज्य विधिक सेवा आयोग ने अदालत मेंं अपनी रिपोर्ट दायर करते हुए कहा कि दिल्ली के विभिन्न इलाको मेंं करीब 233 मैला ढोने वाले हैंं। इस पर अदालत ने कहा कि दिल्ली जल बोर्ड व नगर निगमोंं के अधिकारियोंं ने अपनी रिपोर्ट मेंं एक भी मैला ढोने वालोंं के न होने की बात कही है, जबकि आयोग उनके होने का दावा कर रहा है। ऐसे मे इन सरकारी एजेसियोंं की रिपोर्ट मे घपला नजर आता है। अदालत ने जल बोर्ड व नगर निगमोंं को फटकार लगाते हुए मैला ढोने वालोंं के बारे मेंं स्टेटस रिपोर्ट दायर करने का निर्देश दिया है।
अदालत ने कहा कि रोजगार निषेध व पुनर्वास अधिनियम 2013 होने के बावजूद मैला ढोने वालोंं का होना शहरवासियोंं के लिए अपमानजनक है। आयोग के सदस्य सचिव धर्मेश शर्मा ने जब अदालत को यह बताया कि मैला ढोने वाला एक व्यक्ति स्नातक है तो इस पर अदालत ने कहा कि ये बहुत चौंकाने वाली और हास्यास्पद बात है। अदालत ने कहा कि जिन लोगोंं की मैला ढोने वालोंं के रूप मेंं पहचान हुई है उन्हेंं कानूनी मदद दी जाए और नियमोंं के अनुसार उन्हेंं सहायता प्रदान की जाए। उनका पुनर्वास किया जाए, जिससे कि वह गरिमापूर्ण तरीके से रह सकेंं।