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हर बरसात में डूब रही दिल्ली, एक दशक से कागजों में बह रहा ड्रेनेज मास्टर प्लान

जलभराव न केवल हादसों बल्कि बड़े पैमाने पर दिल्ली वासियों की परेशानी का सबब भी बनता है। बावजूद इसके आज तक दिल्ली का अपना ड्रेनेज मास्टर प्लान नहीं बन सका है और एक दशक से भी अधिक समय से यह कागजों से जमीन पर उतरने का इंतजार कर रहा है।

By Jp YadavEdited By: Published: Wed, 21 Jul 2021 08:36 AM (IST)Updated: Wed, 21 Jul 2021 08:36 AM (IST)
हर बरसात में डूब रही दिल्ली, एक दशक से कागजों में बह रहा ड्रेनेज मास्टर प्लान
हर बरसात में डूब रही दिल्ली, एक दशक से कागजों में बह रहा ड्रेनेज मास्टर प्लान

नई दिल्ली [वीके शुक्ला]। इसे विडंबना ही कहेंगे कि देश की राजधानी एक दिन की जोरदार बारिश भी नहीं ङोल पाती। नालों की सफाई न होने से सीवर ओवरफ्लो होने लगते हैं तो अंडरपास और सड़कों पर भारी मात्र में जलभराव हो जाता है। यह जलभराव न केवल हादसों, बल्कि बड़े पैमाने पर दिल्ली वासियों की परेशानी का सबब भी बनता है। बावजूद इसके हैरत की बात यह है कि आज तक दिल्ली का अपना ड्रेनेज मास्टर प्लान नहीं बन सका है और एक दशक से भी अधिक समय से यह कागजों से जमीन पर उतरने का ही इंतजार कर रहा है।

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आइआइटी दिल्ली ने राजधानी को लेकर एक रिपोर्ट तैयार की थी, जिसमें दिल्ली के ड्रेनेज मास्टर प्लान की सिफारिश भी की गई थी। 2009 में दिल्ली के तत्कालीन उपराज्यपाल तेजेंद्र खन्ना ने भी स्थानीय निकायों और अन्य सभी एजेंसियों से दिल्ली के वाटरशेड और ड्रेनेज सिस्टम के लिए एक मास्टर प्लान तैयार करने को कहा था। इसके बाद 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने भी कहा कि जल निकासी मास्टर प्लान आखिरी बार 1976 में बना था, जबकि तेजी से बदलते शहर के विकास के परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए नई योजना तैयार की जानी चाहिए। लेकिन अभी तक भी शहर का मास्टर प्लान अटका हुआ है, जबकि मध्यम स्तर की वर्षा में भी दिल्ली को बड़े पैमाने पर जलभराव का सामना करना पड़ रहा है।

खास बात यह कि आइआइटी के विशेषज्ञों की टीम ने दिसंबर 2016 में ड्रेनेज मास्टर प्लान का ड्राफ्ट भी तैयार कर लिया, जिसकी प्रमुख सिफारिशों में से एक दिल्ली के प्राकृतिक ड्रेनेज सिस्टम को बहाल करना थी। 2019 में दिल्ली सरकार ने ड्रेनेज मास्टर प्लान की सिफारिश को स्वीकार भी कर लिया, लेकिन जमीन पर शायद ही कुछ बदला हो। नालों का प्रबंधन करने वाली एजेंसियों के अधिकारियों का कहना है कि कुछ प्रारंभिक कदम उठाए गए थे, लेकिन महामारी ने उनके क्रियान्वयन को रोक दिया। ऐसे में यह योजना, जिसे अंतिम रूप देने में तकरीबन एक दशक का समय लगा, अभी भी काफी हद तक कागजों पर ही अटकी हुई है।

बहु निकाय व्यवस्था और एक सामान्य ढांचा न होने से बढ़ी परेशानी

यमुना जिये अभियान के संयोजक मनोज मिश्र ने बताया कि 1976 की जल निकासी योजना में चिन्हित किए गए 18 बड़े प्राकृतिक नाले गायब हैं। इस मास्टर प्लान को तैयार करने के लिए काफी समय, संसाधन और धन का उपयोग किया गया था, लेकिन इसे लागू क्यों नहीं किया जा रहा है। प्लान में मानसूनी-जल निकासी प्रणाली को सीवेज और ठोस कचरे से मुक्त रहने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला गया था। उन्होंने बताया कि अन्य प्रमुख सिफारिशों में सीवरेज सिस्टम और मानसूनी-पानी की नालियों को अलग करना, एकीकृत ढांचा, सतह से वर्षा जल को आसपास के पार्कों या जलाशयों में ले जाने के लिए पाइप बिछाना शामिल है। उन्होंने यह भी बताया कि दिल्ली की बहु निकाय व्यवस्था और एक सामान्य ढांचा न होने से भी साल दर साल शहर की जल निकासी प्रबंध प्रभावित हो रहे हैं। वहीं, नगर निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस बाबत मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली संयुक्त समिति की कई बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन महामारी ने इसे लागू करने में देरी की है।


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